By नीरज कुमार दुबे | Jul 17, 2023
पूर्वांचल में लोकसभा की 28 सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भाजपा लगातार प्रयास कर रही है। भाजपा की कोशिश है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने सहयोगियों की मदद से पूर्वांचल की हर सीट पर कमल खिला दिया जाये। इसके लिए पूर्वांचल को विकास की तमाम सौगातें देने के अलावा इस क्षेत्र को माफिया से मुक्त करा कर जनता को बड़ी राहत प्रदान की गयी है। लेकिन भाजपा जानती है कि इतने भर से काम नहीं चलने वाला इसीलिए जातिगत और राजनीतिक समीकरणों को साधने का काम भी तेजी से चल रहा है। इसके अलावा, रूठों को मनाने, छोड़ कर चले गये नेताओं/दलों को वापस लाने और असंतुष्टों को संतुष्ट करने की प्रक्रिया भी साथ-साथ चल रही है।
पूर्वांचल में भाजपा की बड़ी ताकत
देखा जाये तो भाजपा के दो बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल से ही जनप्रतिनिधि हैं। प्रधानमंत्री वाराणसी के सांसद हैं तो मुख्यमंत्री योगी गोरखपुर शहर के विधायक हैं। योगी जितना गोरखपुर जाते हैं लगभग उतना ही वाराणसी भी जाते हैं और अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक दिन में ही वाराणसी और गोरखपुर का दौरा कर उत्तर प्रदेश को करोड़ों की सौगात भी दी थी। भाजपा में केंद्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के उभार के बाद पूर्वांचल हालांकि भाजपा का गढ़ बन चुका है लेकिन इसके बावजूद भाजपा अति-आत्मविश्वास में नहीं रहना चाहती। भाजपा जानती है कि तीसरी बार भी दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से ही होकर जायेगा इसलिए क्षेत्रवार इस प्रदेश के लिए अलग-अलग रणनीति पर काम किया जा रहा है।
पूर्वांचल की समीकरण
पूर्वांचल की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा का इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन रहा था लेकिन पार्टी आजमगढ़ और गाजीपुर जैसी दो महत्वपूर्ण सीटों पर चुनाव नहीं जीत पाई थी। हालांकि बाद में उपचुनाव में आजमगढ़ सीट भाजपा के पास आ गयी थी। इसके अलावा 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को पूर्वांचल में आजमगढ़ और गाजीपुर जिलों में ही सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ा था इसलिए पार्टी का पूरा प्रयास है कि पूर्वांचल में सारी कमियों को समय रहते दुरुस्त कर लिया जाये। इसके लिए ओम प्रकाश राजभर को वापस एनडीए में लाया गया। फिर दारा सिंह चौहान की भाजपा में एंट्री कराई गयी। पूर्वांचल में प्रभाव रखने वाले अपना दल (सोनेलाल पटेल) और निषाद राज पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन पहले से ही है।
राजभर की राजनीति
पूर्वांचल में राजभर समाज की अच्छी खासी आबादी है और इसमें ओम प्रकाश राजभर की अच्छी पकड़ है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के समय जब हमने इस क्षेत्र का दौरा किया था तब पाया था कि राजभर मतदाताओं का झुकाव किसी पार्टी की ओर नहीं बल्कि इस बात की ओर था कि ओम प्रकाश राजभर किसको वोट देने के लिए कहते हैं। लगभग ऐसा ही रुतबा निषाद राज पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद का उनके सजातीय लोगों के बीच देखने को मिला था। ओम प्रकाश राजभर ने लोकसभा चुनाव 2019 से ऐन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलकर भाजपा गठबंधन से नाता तोड़ा था और 2022 का विधानसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लड़ा था लेकिन चुनाव परिणाम के बाद से ही वह अखिलेश यादव पर हमलावर हो गये थे और तभी से यह संकेत दे रहे थे कि उनके लिए सभी विकल्प खुले हैं। राजभर की पार्टी ने पिछले साल जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के बजाय राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया। अब एक साल बाद, सुभासपा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बन चुकी है। देखा जाये तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी उत्तर प्रदेश के आठ जिलों की लगभग 10 लोकसभा सीटों और 40 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती है।
चौहान की चालाकी
वहीं उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी से त्यागपत्र देने वाले दारा सिंह चौहान भी अब भाजपा में लौट आये हैं। घोसी (मऊ) विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक रहे दारा सिंह चौहान के बारे में माना जा रहा है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। दारा सिंह चौहान ने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में वन मंत्री से इस्तीफा देकर सपा की सदस्यता ग्रहण की थी और मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से वह सपा के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। तब दारा सिंह चौहान ने भाजपा सरकार पर पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सपा के पक्ष में जमकर चुनाव प्रचार किया था लेकिन वहां अपेक्षित महत्व नहीं मिलने से फिर उन्होंने घर (भाजपा में) वापसी कर ली। दारा सिंह चौहान के साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म पाल सैनी भी मंत्री पद से इस्तीफा देकर ऐन विधानसभा चुनावों के समय सपा में चले गये थे लेकिन इन तीन नेताओं में से सिर्फ दारा सिंह चौहान ही चुनाव जीत पाये थे बाकी दोनों नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म पाल सैनी अपना चुनाव हार गये थे।
दारा सिंह चौहान बसपा और सपा से राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं और 2009 में वह घोसी लोकसभा सीट से बसपा उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए थे। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी और 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले वह सपा में चले गये थे। माना जा रहा है कि बसपा में उनके साथी रहे ब्रजेश पाठक जोकि अब राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं, वह दारा सिंह चौहान को भाजपा में फिर से शामिल कराने के प्रयास काफी समय से कर रहे थे क्योंकि घोसी में दारा सिंह चौहान का व्यापक प्रभाव है। वह बड़े ओबीसी नेता हैं और उनके आने से उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूती मिलेगी। दारा सिंह चौहान ने भाजपा में शामिल होने के बाद कहा भी है कि 2024 में नरेन्द्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बनेंगे।
बहरहाल, ओम प्रकाश राजभर के भी भाजपा के साथ आ जाने के बाद उत्तर प्रदेश लगभग विपक्ष मुक्त हो चुका है क्योंकि समाजवादी पार्टी के गठबंधन में अब सिर्फ अपना दल का दूसरा गुट और राष्ट्रीय लोक दल ही बचे हैं। बसपा का संगठन और वोटबैंक अस्त-व्यस्त हो चुका है तो कांग्रेस के केंद्रीय नेता ही उत्तर प्रदेश से पलायन कर गये हैं। इसलिए राजभर भी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष खत्म हो चुका है। देखा जाये तो राजभर की इस बात में दम भी है क्योंकि देश में संसदीय सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विपक्ष सिर्फ टि्वटर पर ही नजर आता है। यहां के विपक्षी नेताओं को अगर बैठक करनी होती है तो वह लखनऊ की बजाय पटना, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नई या बेंगलुरु जाते हैं। नेताओं की नीति और नीयत में खोट होने की बात तो सुनी थी लेकिन उत्तर प्रदेश में विपक्ष के हालात देखकर अब तो नेताओं की रणनीति में भी खोट स्पष्ट नजर आने लगा है।
-नीरज कुमार दुबे