बहुमत कितना बड़ा हो विपक्ष की उपेक्षा नहीं करेंः अंसारी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 28, 2017

वारसा। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने आज कहा कि भारत में लोकतंत्र की सफलता के बावजूद चुनौतियां हैं और बहुमत चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, विपक्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अंसारी ने वारसा विश्वविद्यालय में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा, ''सच्चे लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण परीक्षा होती है कि वह किस प्रकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करता है और उनके अधिकारों का सम्मान करता है।’’

 

उन्होंने कहा, ''लोकतंत्र तभी फलताफूलता है जब भिन्न भिन्न आवाजों को बिना किसी डर से मुक्त भाव से सुना जा सके।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र अंतत: जनता से जुड़ा होता है। भारत के लोग, हमारे लोकतांत्रिक भविष्य की सर्वश्रेष्ठ गारंटी है। जब तक सामान्य भारतीय सच्चे लोकतांत्रिक मूल्यों और सांस्कृतिक आस्थाओं को थामे रहेगा, जब तक हमारे लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग रहेंगे और सांप्रदायिक एवं भेदभाव पर आधारित विचारों को हावी नहीं होने देंगे, ‘‘तब तक यह उम्मीद है कि लोकतंत्र आगे बढ़ता रहेगा, दूसरों को प्रेरित करता रहेगा।’’

 

अंसारी ने कहा कि लोकतांत्रिक ढांचे के कारण भारत में कई तरह के द्वंद्वों से निपटा जा सकता है। पिछले 70 वर्षों में हमने अपनी पूरी क्षमता से काम किया है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं सतत रूप से आगे बढ़ती हैं और भारत में लोकतंत्र की सफलता के बावजूद इसे गहरा एवं मजबूत बनाने को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि तीन दशक पहले एक जाने माने समाजवादी ने भारतीय लोकतंत्र को आधुनिक विश्व में धर्मनिरपेक्ष चमत्कार और विकासशील देशों के लिए आदर्श बताया था।

 

अंसारी ने कहा, ''आजादी के सात दशक बाद भी भारतीय लोकतंत्र का चमत्कार ऐसे लोगों के लिए उम्मीद की किरण बना हुयी है, जो बुनियादी मानवीय मूल्यों पर आधारित स्वतंत्रता में आस्था रखते हैं।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक द्वंद्व को रोकने की चुनौती होने के बावजूद आजादी के सात दशक बाद भी भारतीय लोकतंत्र मानवीय मूल्यों के बुनियादी आधार के साथ स्वतंत्र मूल्यों का अंगीकार करने वालों के लिए ‘‘उम्मीद की किरण बना हुआ है।’’ वारसा विश्वविद्यालय में अंसारी ने कहा कि सामाजिक द्वंद्व को नियंत्रण में रखना एक चुनौती है। हमारे समाज के सभी वर्गों का अपने अतीत में गहरा विश्वास रहा है और यह सामाजिक आर्थिक वर्गीकरण आस्थाओं से परे है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे क्षेत्रीय, सामाजिक, भाषायी और धार्मिक विविधता से परिपूर्ण देश में तनाव की स्थिति से नहीं बचा जा सकता है, जो कई बार संघर्ष की स्थिति तक पहुंच जाती हैं, लेकिन इनका स्वरूप अक्सर स्थानीय होता है और इसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत अच्छे कदमों से समाधान का रास्ता भी निकाला जा सकता है। अंसारी ने कहा कि जन जागरूकता, कट्टरपंथ से दूरी बनाना और त्वरित प्रशानिक एवं उपचारात्मक कदमों से प्रक्रियाओं को सुगम बनाने में मदद मिलती है। इनके अभाव में चीजें विकट हो सकती है और इसे सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुंच सकता है, चाहे वह किसी कारण से क्यों न हो।

 

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में लोकतंत्र समानता और सामाजिक समावेशिता पर आधारित है। लोकतांत्रिक संस्थाएं एक ऐसे माध्यम के रूप में काम करती हैं जो लोगों को सम्मान एवं आर्थिक समानता के साथ बढ़ने को प्रेरित करती हैं। उन्होंने कहा कि यह कल्पना करना भी कठिन था कि भारत की बहुविविधता को एक देश के रूप में सुव्यवस्थित रखा जा सकता है, लेकिन यह लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं राजनीति के दायरे में हुआ। अंसारी ने कहा कि हमारा संविधान सभी नागरिकों को सार्वभौम व्यस्क मताधिकार प्रदान करता है और यह 1951 से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में देखा गया है। मतदाताओं की संख्या काफी बढ़ी है। अंसारी ने कहा कि संविधान विविध लोगों को उनके अधिकारों और पहचान का अक्षुण्ण बनाए रखने की गारंटी प्रदान करता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि पोलैंड का स्वतंत्र संघर्ष और लोकतंत्र की बहाली का घटनाक्रम अनुकरणीय है और यह गणतंत्र के प्रति पोलैंड के लोगों की भावना को प्रदर्शित करता है।

 

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