By अभिनय आकाश | Sep 15, 2021
एक दौर में बिहार में एक कहावत मशहूर हुई थी, जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू। हालांकि ये कहावत एक टाइम के बाद गलत साबित हुई। सनी देओल की गदर फिल्म का एक डॉयलॉग याद आता है- हिन्दुस्तान जिंदाबाद था, हिन्दुस्तान है और हिन्दुस्तान जिंदाबाद रहेगा। लेकिन अगर ऐसी ही कोई लाइन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए बने तो "पुतिन थे, पुतिन हैं, पुतिन ही रहेंगे" तो खूब जंचेगी। सोवियत और अमेरिका की अदावत की कहानी को दशकों पुरानी है और जगजाहिर भी। लेकिन दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों पर नजर डालें तो पुतिन के सामने अमेरिका के पांच राष्ट्रपति बदल गए। उन्होंने बिल क्लिंटन को देखा, फिर जॉर्ज बुश के दो कार्यकाल देखे और बराक ओबामा के भी दो कार्यकाल देखने के बाद ट्रंप को भी रूकसत होते और जो बाइडेन को सत्ता संभालते देख लिया। भारत के संदर्भ में देखें तो एक ही कॉमन बात नजर आएगी की जब पुतिन आए तो उस वक्त भी देश में बीजेपी की सरकार थी और वर्तमान दौर में भी बीजेपी की ही सरकार है। मतलब पुतिन ने 1999 के वाजपेयी शासन के दौरान रूस की सत्ता संभाली थी और उसके बाद के यूपीए-1 और यूपीए-2 के बाद मोदी सरकार 1 और 2.0 के दौर में भी अपने पद पर बने हुए हैं। आप कह रहे होंगे कि पुतिन की बात बताते-बताते लालू से लेकर ओबामा- ट्रंप वाया वाजपेयी-मोदी पर आ गए। दरअसल, ये सब बताने का सीधा सा मतलब ये है कि दुनिया इतनी बदल गई, लेकिन पुतिन ज्यों के त्यों रूस के तख्त पर अंगद की तरह पांव जमाए खड़े हैं। रूस में 17 से 9 सितंबर के बीच संसदीय चुनाव होने हैं। वैसे तो राष्ट्रपति पुतिन के सत्ता में आने के बाद रूस में चुनाव नाममात्र के ही रह गए हैं, क्योंकि देश के राजनैतिक समीकरणों पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पहले रूस में राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता था। 2012 में संविधान संशोधन करके इसे बढ़ाकर छह साल कर दिया गया। यानी वो 2024 तक राष्ट्रपति बने रहेंगे। फिर शायद वो दोबारा प्रधानमंत्री बन जाएं। ऐसे पुतिन पहले भी 2008 में ऐसा कर चुके हैं ताकि फिर से राष्ट्रपति हो सकें। क्योंकि रूस में दो बार के बाद कोई राष्ट्रपति नहीं हो सकता। ऐसे में जब सब कुछ इतना तय हो, तो लोग वोट डालने की मेहनत क्यों करें? लेकिन आज के इस विश्लेषण में आपको बताएंगे कि रूस में चुनाव कैसे होता है, रूस का राजनैतिक सिस्टम कैसा है और साथ ही आपको एक केजीबी एजेंट के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचने की कहानी सुनाएंगे।
पुतिन 15 साल तक केजीबी एजेंट रहे
एक लड़का रोज दफ्तर जाकर पूछता है कि मुझे आपके जैसा बनने के लिए क्या करना होगा? वहां मौजूद अधिकारियों ने बच्चे को देखकर कहा कि कॉलेज में जाकर पढ़ाई करो या फौज में भर्ती हो जाओ। उस लड़के ने लॉ में डिग्री लेने के बाद सिक्योरिटी एजेंसी में काम करना शुरू किया। वहां वो खुफिया अधिकारियों की नजर में आया और फिर यही केजीबी का अफसर भी बना। आगे चलकर वही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बने। रूस की सत्ता के शिखर पर पहुंचने की कहानी पूरी फिल्मी है, जिसमें हीरो भी खुद पुतिन हैं और विलेन भी। साल 1952 में 7 अक्टूबर को लेनिनग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) में पुतिन का जन्म हुआ। पुतिन के पिता सोवियत नेवी का हिस्सा थे और मां एक फैक्ट्री वर्कर थीं। उनका जीवन गरीबी और आभाव में बीता। पुतिन विद्रोही स्वभाव के थे। बच्चे अपने टीचर्स के लिए फूल लेकर जाते थे। लेकिन पुतिन अपने टीचर्स को पौधें भेंट करते थे। उनके पिता ने उन्हें बॉक्सिंग सीखानी चाहिए लेकिन उन्होंने जूडो सीखा। पुतिन खुद कहते हैं कि मार्शल आर्ट ने उनकी जिंदगी बदल दी। पुतिन जब स्कूल में थे तभी उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का स्कूल लीडर चुना गया। उनका सपना था कि वो सोवियत सीक्रेट एजेंट बने। उनका ये सपना तो पूरा नहीं हुआ लेकिन वर्ष 1975 में उन्होंने रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ज्वाइन की। जहां वो एक सामान्य जासूस माने जाते थे। पुतिन ने रूसी की खुफिया एजेंसी केजीबी के विदेश में जासूस के रूप में 15 साल तक काम किया। 1989 की क्रांति के दौरान पुतिन ड्रेसडेन में रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी के एजेंट के तौर पर तैनात थे। ये जगह जर्मनी के उस हिस्से में थी जिसे तब कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी के नाम से जाना जाता था। साल 1990 में वो केजीबी से लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक से रिटायर हो गए और रूस वापस लौट आए। 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। उस वक्त के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव पर कई सारे आरोप लगे। रूस में निराशा फैली थी औऱ इसी को भांपते हुए एक सीक्रेट सर्विस का एजेंट से पुतिन राजनीतिज्ञ पुतिन बन गए। साल 1997 में पुतिन रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार में शामिल हुएं। उन्हें संघीय सुरक्षा सेवा का प्रमुख (प्रधानमंत्री) बनाया गया। येल्तसिन ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया और पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया। साल 2000 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और 53 फीसदी वोट पाकर उन्होंने जीत हासिल की। 2004 में पुतिन एक बार फिर चुनाव लड़े और 71.2 फीसदी वोटों से राष्ट्रपति बने। वहीं 2012 में पुतिन 63.3 फीसदी वोट पाकर एक बार फिर जीते। 2018 में भी पुतिन की जीत हुई। इस बीच बस चार साल के लिए ही पुतिन राष्ट्रपति नहीं थे। इन चार सालों में जब पुतिन राष्ट्रपति नहीं थे, तब वो प्रधानमंत्री थे। 2008 से 2012 के बीच। रूस का संविधान राष्ट्रपति को लगातार बस दो कार्यकाल की ही इजाजत देता है। इस नियम का तोड़ निकालने के लिए पुतिन अपने शुरुआती दो कार्यकालों के बाद पीएम बन गए और अपने भरोसेमंद दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनाया।
एलेक्सी नवालनी को दो बार जहर देकर मारने की साजिश के आरोप लगे
पेश से वकील एलेक्सी नवालनी का रूस की राजनीति में उभार 2008 से दिखता है । जब वो रूस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू करते हैं। राष्ट्रवादी नेता के तौर पर उनकी छवि बन जाती है। सरकारी कांट्रैक्ट में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाते हैं। ब्लाॅगिंग और यूट्यूब के जरिये इन तमाम मुद्दों को उठाते हुए रूस में लोकप्रिय हो जाते हैं। आलम ये हुआ कि साल 2012 में अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपने खबर की शीर्षक में एलेक्सी का परिचय देते हुए एक खबर प्रकाशित की The Man vladimir Putin fears most यानी वो आदमी जिससे ब्लादिमीर पुतिन को सबसे ज्यादा डर लगता है। 2013 में उन्होंने मास्को में मेयर का चुनाव लड़ने का ऐलान किया। वो लड़े लेकिन पुतिन के उम्मीदवार से हार गए। एलेक्सी ने चुनाव में धांधली का इल्जाम लगाया। उसके बाद उनपर कई केस लगाए। एक में एलेक्सी को पांच साल की सजा हुई और दूसरे में साढ़े तीन साल की। कुछ साल जेल में रहने के बाद एलेक्सी नजरबंद कर दिए गए। 2016 में बाहर आए तो फिर प्रदर्शन जारी कर दिया। 2017 में उन्हें पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए 3 बार जेल हुई। साल 2017 में ही उन पर हमला हुआ और इस हमले की वजह से एलेक्सी की दाहिनी आंख केमिकल बर्न से प्रभावित हुई। 2018 में रूस के राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त एलेक्सी के पुतिन को तगड़ी चुनौती देने के कयास लगाए जा रहे थे। तभी चुनाव आयोग ने एलेक्सी को अयोग्य घोषित कर दिया गय। लेकिन जुलाई 2019 में रूस में विरोध प्रदर्शन का आह्वान करने की वजह से उन्हें 30 दिन की जेल हुई। जेल में ही उनकी तबीयत बिगड़ी और आरोप लगे कि एलेक्सी को जहर देने की कोशिश हुई है।
कुछ ऐसा है रूस का राजनीतिक सिस्टम
भारत के परिपेक्ष से रूस के राजनीतिक सिस्टम को समझने की कोशिश करें तो जैसे भारत में दो संसदीय प्रणाली है- राज्यसभा जिसे उच्च सदन कहा जाता है और दूसरा लोकसभा जिसे निचला सदन कहते हैं। इसी तरह रूस की फेडरल असेंबली के दो हिस्से हैं। काउंसिल ऑफ फेडरेशन यानी उच्च सदन और स्टेट डुमा यानी निचला सदन। रूस में नाम और काम दोनों ही लिहाजे से राष्ट्रपति को सर्वशक्तिमान माना जाता है। जिसका बाद नंबर आता है प्रधानमंत्री का और हियार्की में तीसरा नंबर फेडरल काउंसिल के अध्यक्ष का होता है। इसे कुछ इस प्रकार से समझ सकते हैं कि अगर एक ही वक्त में रूस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को कुछ हो गया तो ऐसे में फेडरल काउंसिल के चेयरमैन कार्यकारी राष्ट्रपति की भूमिका में आ जाएंगे।
रूस की संसदीय प्रणाली
फेडरल काउंसिल को सबसे शक्तिशाली माना जाता है औऱ सभी कानून यहीं से मूर्त रूप लेते हैं। अगर देश में सैन्य शासन लगाने पर फैसला लेना हो तो भी उसे यही से मंजूरी चाहिए होती है। इसके अलावा देश के बाहर जंग लड़ने के फैसले और राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने, रूस की ऊपरी अदालतों के जजों की नियुक्ति सब यही से तय होता है। अब आप कह रहे होंगे कि सब काम यही से होता है तो निचला सदन क्या करता है। तो ये भी जान लीजिए, संसदीय प्रणाली के दूसरे हिस्से यानी स्टे डुमा का नाम प्रधानमंत्री की नियुक्ति को मंजूरी देना है। इसके अलावा देश के सबसे बड़े बैंक "सेंट्रल बैंक" के चेयरमैन को नियुक्त करने या हटाने का निर्णय भी यही से लिया जाता है। फेडरल काउंसिल में पास होने के लिए भेजे जाने वाले जरूरी बिल पहले स्टेट डुमा में आते हैं। स्टेट डुमा से पास होने के बाद ही इसे मंजूरी के लिए ऊपरी सदन में भेजा जाता है। स्टेट डुमा में बिल पास होने के बाद फेडरल काउंसिल की तरफ से इसमें कोई बदलान नबीं किया जा सकता है। उसके पास इसे मंजूर या नामंजूर करने का अधिकार है।
वोटिंग सिस्टम क्या है
भारत में तो लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग का पैटर्न सीधा सा है। घर से निकलो और अपने निकटतम पोलिंग बूथ पर जाकर मोदी जी को, राहुल जी को या फिर किसी और जी को जो भी आपके पसंद की पार्टी नेता हो उसे ईवीएम दबाकर वोट कर आते हैं। लेकिन रूस में मामला थोड़ा अलग है। यहां पहले फर्स्ट राउंड की वोटिंग होती है। कई सारे उम्मीदवारों में से अगर किसी एक कैंडिडेट को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो दूसरे चरण की वोटिंग होती है। वैसे इस तरह के हालात की नौबत कम ही आती है। पिछले छह राष्ट्रपति चुनावों के दौरान बस एक बार ही इसकी जरूरत 1996 में पड़ी, जब बोरिस येल्तसिन के खिलाफ गेनाडी ज्यूगानोव थे। दूसरे राउंड की वोटिंग में बोरिस येल्तसिन की जीत हुई थी।
बहरहाल, कुछ लोग पुतिन को रूस का जार भी कहते हैं। रूस की संस्कृति में जार उस नेता या राजा को कहते हैं जो अपने विरोधियों को समाप्त कर देता है। लेकिन जनता उसे अपना पूरा समर्थन देती है। पुतिन को लेकर ये भी अफवाहें चलती हैं कि वो डेढ़ सौ साल से जिंदा हैं और रूस की रक्षा कर रहे हैं। इन सब बातों से इतर पुतिन मिलिट्री जेट उड़ाना, मॉर्शल आर्ट, घुड़सवारी, राफ्टिंग, फिशिंग, साइबेरिया में नंगे बदन घूमना, भालू मारना, मोटरबाइक, फायरफाइटिंग, व्हेल पकड़ना सब करते हैं और उसकी फोटो मीडिया में भी आती रहती है। - अभिनय आकाश