काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास अनादि काल से माना जाता है। यहां तक कि कई उपनिषदों में और महाकाव्य 'महाभारत' में इसका वर्णन मिलता है।
इसके ज्ञात इतिहास की बात करें तो मोहम्मद गौरी ने 1194 ईस्वी में इस को ध्वस्त करने की नापाक कोशिश की थी। इतना ही नहीं 1447 ईस्वी में जौनपुर के मोहम्मद शाह नामक सुल्तान ने भी इसको तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन इसका महत्त्व और इसका सम्मान कभी कम नहीं हुआ।
विडंबना यह है कि जिस शाहजहां को हम ताजमहल जैसी इमारत के निर्माण के लिए जानते हैं, उस शाहजहां ने भी 1632 ईस्वी में शासनादेश द्वारा कशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए एक बड़ी सेना भेजी थी। हालांकि तमाम सनातनी इसके विरोध में खड़े हो गए थे और वह सेना काशी विश्वनाथ के मुख्य मंदिर को नहीं तोड़ पाई थी, किंतु काशी के दूसरे तमाम मंदिर मुगल सेना ने ध्वस्त कर दिया था।
कालान्तर में शाहजहां को उसकी करनी का फल मिला और उसके अपने ही बेटे औरंगजेब ने उसे बंदी बनाकर रखा।
हालाँकि, खुद औरंगजेब मंदिर तोड़ने के कुकर्म से बाज नहीं आया और 1669 ईस्वी में उसने मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाने का निर्देश जारी किया। औरंगजेब मुगल शासकों में सर्वाधिक क्रूर शासक की संज्ञा पाता है और वह इसलिए कि मंदिर तोड़ने के बाद उसने हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का शासनादेश भी पारित किया। जाहिर तौर पर यह ऐसा कृत्य था जिसे सदियों तक सनातन धर्मी सहने को विवश हुए।
हालांकि इन तमाम आक्रमणों के बावजूद भी, तमाम कुत्सित प्रयासों के बावजूद भी काशी विश्वनाथ की महिमा उसी तरह से बरकरार रही, जिस प्रकार से ईसा पूर्व राजा हरिश्चंद्र, सम्राट विक्रमादित्य जैसे महान शासकों ने मंदिर की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाए थे। एक तरफ जहां मंदिर तोड़ने वाले थे, वहीं दूसरी तरफ राजा टोडरमल जैसे महान व्यक्तियों ने इसके पुनरुद्धार का कार्य किया। तमाम मराठा लोगों ने इसकी मुक्ति के लिए जान की बाजी लगा दी। अहिल्याबाई होल्कर और महाराणा रंजीत सिंह जैसे शासकों ने इस मंदिर की महिमा हमेशा बरकरार रखी और उसमें वृद्धि ही की।
इस मंदिर की महिमा आप इस बात से ही समझ लीजिए कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रमुख इस स्थान को प्रथम लिंग माना गया है। ऐसा माना जाता है कि साक्षात भगवान शंकर माता पार्वती के साथ इस स्थान पर विराजमान हैं। बाबा विश्वनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह पहला ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहाँ भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजते हैं। शिव और शक्ति के संयुक्त रूप वाले इस धाम को मुक्ति का द्वार बताया जाता है।
विद्वान पंडितों का मानना है कि पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के बाद अगर बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर लिए जाएँ तो आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। विश्वनाथ मंदिर के बारे में एक बात और प्रचलित है कि जब यहाँ कि मूर्तियों का श्रृंगार होता है तो सभी मूर्तियों का मुख पश्चिम दिशा की तरफ रहता है।
- विंध्यवासिनी सिंह