पचमढ़ी-शिमला के अधिवेशन से खींची गई UPA 1 की रूप-रेखा, जयपुर में राहुल का सत्ता जहर है वाला बयान, ऐसा रहा है 'चिंतन शिविर' का इतिहास

By अभिनय आकाश | May 09, 2022

कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में चल रही है। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई दिग्गज नेता मौजूद हैं। ये बैठक ऐसे वक्त आयोजित की जा रही है, जब 13-15 मई तक तीन दिवसीय चिंतन शिविर उदयपुर में आयोजित किया जाएगा। वैसे कांग्रेस के 137 सालों के इतिहास में चिंतन शिविर का इतिहास कोई दशकों पुराना नहीं है। पहले कांग्रेस के अधिवेशनों में ही पार्टी की रणनीति और मुद्दों पर चर्चा होती थी। लेकिन वर्तमान दौर में सोनिया गांधी की अध्यक्षता तके दौरान चौथा ऐसा शिविर होगा जो पहले 1998, 2003 और 2013 के बाद आयोजित किया गया है। केवल 2003 का शिविर पार्टी के लिए फायदेमंद रहा था जिसने 2004 में 10 सालों के लिए सत्ता हासिल करने में मदद की थी। 

चिंतन शिविर से निकलेगी आगे की राह 

ये शिविर पार्टी के लिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 2014 से चुनाव हार चुकी है और उसके बाद से कुछ राज्यों को छोड़कर लगातार हार का ही सामना करना पड़ा है। हाल के विधानसभा चुनावों में पार्टी उन सभी पांच राज्यों में हार गई, जहां चुनाव हुए थे और पंजाब में अपनी सत्ता आम आदमी पार्टी के हाथों गंवा दी। लेकिन पार्टी के लिए असली चुनौती हिंदुत्व की उस राजनीति को हराना है जिसका वह मुकाबला नहीं कर पाई है। कांग्रेस में चिंतन शिविर के इतिहास को देखें तो इसमें उम्मीद और निराशा दोनों देखने को मिलेंगी। सोनिया गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए चिंतन शिविरों ने कई ऐसे प्रस्ताव और फैसले आए जिसने 21वीं सदी में कांग्रेस के दस साल के शासन की नींव रखी। पचमढ़ी अधिवेशन में सोनिया गांधी ने चुनावी हार को रेखांकित किया, जिसे उन्होंने अपरिहार्य बताया और चिंता का कारण नहीं बताया। लेकिन उन्होंने बताया कि जो बात परेशान कर रही है वह है सामाजिक आधार का नुकसान।

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चिंतन शिविर की तैयारियों पर चर्चा

 सीडब्ल्यूसी की बैठक से पहले 3 मई को कांग्रेस वार रूम में एक बैठक हुई, जिसमें वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक और पार्टी महासचिव, संगठन के.सी. वेणुगोपाल ने चिंतन शिविर की तैयारियों पर चर्चा की। जिसके बाद पिछले दिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में एक और बैठक बुलाई गई जिसमें कृषि विषय पर चर्चा हुई। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि विचार-मंथन सत्र में खुली चर्चा होगी लेकिन असंतुष्टों से सावधान रहा जाएगा जो बिगाड़ने वाले हो सकते हैं। 

चिंतिन शिविर का इतिहास

कांग्रेस का पहला चिंतन शिविर 1998 में पंचमढ़ी में जबकि दूसरा पांच साल बाद 2003 में शिमला में आयोजित हुआ था। जबकि तीसरा चिंतन शिविर 2013 में जयपुर में आयोजित हुआ था और अब नौ साल बाद राजस्थान के उदयपुर में चौथा शिविर हो रहा है। साल 1998 के चिंतन शिविर में पंचायती राज को लेकर 14 सूत्रीय योजना, खेती से जुड़े आठ सूत्रीय योजना, सांप्रदायिकता के बढ़ते खतरे और  बीजेपी के तेजी से बढ़ते असर से निपटने के लिए विस्तृत योजना। साल 2004 के यूपीए 1 के नाम पर बनी गठबंधन सरकार के पीछे भी कहीं न कहीं पंचमढी और शिमला के चिंतन शिविर का अहम रोल रहा है। जिसके बाद कांग्रेस नीत यूपीए ने एक दशक तक शासन किया। 

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जयपुर का शिविर और राहुल का सत्ता एक जहर है वाला भावुक भाषण

कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनने के बाद भावनाओं और संवेदनाओं से भरे राहुल गांधी के पहले भाषण ने जयपुर चिंतन शिविर में मौजूद कार्यकर्ताओं सहित राजनीतिक दिग्गजों की आंखें भी नम कर दी थी। बीते दौर की यादें राहुल की जबान पर आईं तो कई आंखों में आंसुओं का सैलाब सा उमड़ता दिखा। शनिवार रात मेरी मां सोनिया गांधी मेरे कमरे में आईं और मेरे गले लगकर खूब रोईं। वह इसलिए रोईं क्योंकि वह अच्छी तरह समझती हैं कि सत्ता एक जहर के समान है, जो आपकी और आपके साथ वालों की जिंदगी को पूरी तरह बदल देता है।

साल 2022 का चिंतिन शिविर  

कांग्रेस में खींचतान और गुटबाजी का इतिहास पुराना रहा है। लेकिन हर बार मजबूत नेतृत्व ने हर गुटबाजी और खींचतान को सख्ती के साथ काबू में किया है। लेकिन मौजूदा वक्त में नेतृत्व इसमें खुद को कहीं न कहीं नाकाम पा रहा है। ऐसे में इस बार कांग्रेस का चिंतन शिविर समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ लाकर बीजेपी से मुकाबला करने पर केंद्रीत रह सकता।  

 

 

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