वर्षों से हम ट्रकों के पीछे 'बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला' पढ़ते आ रहे हैं। ट्रक नया हो या खटारा किसिम का, हमने नब्बे प्रतिशत ट्रकों के पिछवाड़े पर यही ब्रह्मवाक्य लिखा देखा है। ये बात अलग है कि हमको आजतक बुरी नजर वाला ऐसा कोई शख्स नहीं मिला जिसका मुँह ट्रक पर नजर डालने के कारण काला हुआ हो। उल्टा ऐसे बहुतेरे किस्से जरूर सुने हैं जब 'बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला' लिखवाने वाले ट्रकों के ड्रायवरों ने हायवे के किनारे बने ढाबों पर अपना मुँह काला किया है। मुझे लगता है ऐसा लिखवाने वालों को भ्रम है कि यह पढ़ कर बुरी नजर वाला अपनी नजरें फेर लेता है और ट्रक बुरी नजर से बच जाता है। हो सकता है केवल रस्म अदायगी के तौर पर ऐसे वाक्य लिखवाए जाते हों जैसे नए बन रहे मकानों पर काले मुँह और नुकीले दाँतों वाला पुतला टांग दिया जाता है या फिर सबसे ज्यादा उधारी देने वाला दुकानदार प्रवेश द्वार पर ही 'आज नगद कल उधार' का स्टिकर चिपका कर रखता है।
मुझे ट्रकों के पीछे लिखे इस वाक्य को पढ़ने का अनुभव भले ही आधी सदी से ज्यादा का है लेकिन इसे लेकर मैं कभी गंभीर नहीं हो पाया था। मुझे यह वाक्य मनोरंजक तो लगता था लेकिन तार्किक नहीं। उस दिन बटुक जी ने इसे तार्किक क्या बनाया गजब ही हो गया। एक झटके में ही मुझे ऐसे वाक्यों की सार्थकता पर विश्वास हो गया। ये वाक्य मुझे स्वयंसिद्ध मंत्र की तरह लगने लगा।
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कहानी कुछ ऐसी है। हमारे मोहल्ले में बटुक जी और मुरारी जी अगल-बगल में रहते हैं। दोनों ही मेरे पड़ौसी हैं और दोनों ही एक दूसरे को फूटी आँख देखना पसंद नहीं करते। दोनों ही हमेशा एक दूसरे का अहित करने की तिकड़म में लगे रहते हैं। बटुक जी बीए पास हैं लेकिन ऑटो-रिक्शा चलाते हैं। मुरारी जी बीए फेल हैं लेकिन जुगाड़ की दम पर नगर निगम में बाबू हैं। दोनों के बीच झगड़े की वजह भी यही है। मुरारी जी स्वयं को बटुक जी के मुकाबले ऊँची हैसियत वाला समझते और बटुक जी मुरारी को बीए फेल होने के कारण ज्यादा भाव नहीं देते। रात के अंधेरे में कई बार मुरारी जी बटुक जी के ऑटो को पंचर कर चुके हैं। बटुक जी सुबह जागने पर उन्हें पहले मध्यम फिर उच्च स्वर में गरियाते और मोहल्ले वाले दोनों के वाकयुद्ध का लाइव प्रसारण देखते। हफ्ते में ये नजारा मोहल्ले वालों को एक बार जरूर देखने को मिलता। जिस दिन की मैं बात कर रहा हूँ उस दिन मुरारी जी अपने घर के बाहर बैठे जोर-जोर से अखबार पढ़ते हुए बटुक जी को सुना रहे थे- "हरियाणा में ऑटो चालकों के चालीस-चालीस हजार के चालान कट रहे हैं लेकिन हमारे शहर की पुलिस तो ऑटो चालकों जैसी ही निकम्मी है- अभी तक एक रुपए का भी चालान नहीं काटा किसी ऑटो चालक का।
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उम्मीद के विपरीत बटुक जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उन्होंने चुपचाप ऑटो स्टार्ट किया और निकल गए। दोपहर में जब वह वापस आए तो मैंने देखा कि वह ऑटो के पीछे- 'बुरी नजर वाले तेरा चालान कटे' लिखवा कर आए हैं। आते ही उन्होंने अपने ऑटो को मुरारी जी के घर के सामने ऐसा लगाया कि आते जाते सबकी नजर उनके ऑटो पर जरूर पड़े। मैं पढ़कर अपने काम में लग गया। शाम को मैंने देखा कि मुरारी जी लुटे-पिटे से अपना स्कूटर घसीटते हुए चले आ रहे हैं। पूछा- "क्या हुआ मुरारी भाई, आप बहुत परेशान दिख रहे हैं।" "क्या बताऊँ यार, सरे राह लुट कर आ रहा हूँ- ऑफिस से लौटते समय ट्रैफिक पुलिस ने पकड़ लिया और तेइस हजार का चालान काट दिया।" मुरारी जी की बात सुनकर मेरी आँखों के सामने से सैंकड़ों ट्रक धड़धड़ाते हुए निकल गए। उनके पीछे-पीछे बटुक जी का ऑटो हिचकोले खाते हुए चल रहा था। मैंने जिंदगी में पहली बार बुरी नजर का कमाल देखा था।
-अरुण अर्णव खरे