भीड़ में भेड़ बनने का मजा (व्यंग्य)

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By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त | Apr 16, 2021

भीड़ में भेड़ बनने का मजा (व्यंग्य)

भजनखबरी साहब ने देशभक्ति की नई पाठशाला खोल रखी है। सोचा मैं भी प्रवेश ले लूँ। किसे मालूम बैठे बिठाए महात्मा गांधी, नेहरु, सरदार पटेल, भगत सिंह, चंद्रशेखर, सुभाष चंद्र बोस ही बनने का मौका मिल जाए! इनमें से कुछ बनने का अवसर न भी मिले तो कोई बात नहीं कम-से-कम भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्मश्री के योग्य तो अवश्य बन जाऊँगा। वैसे भी इन दिनों देशभक्त बनने का शौक सर चढ़कर बोल रहा है। अब तो बित्ते भर के बच्चे अपने शौकों में खेलना-कूदना हटाकर देशभक्ति लिख रहे हैं। बड़े-बुजुर्ग होते तो कुछ बात होती, ये बित्ते भर के बच्चों से देशभक्ति में होड़ लेना और उसमें भी हार जाने का डर बना रहे तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है। ऐसी ही किसी शर्मिंदगी से बचने-बचाने के लिए गाँव-गाँव और शहर-शहर कुकुरमुत्तों की तरह देशभक्ति कोचिंग सेंटर खुल गए हैं।

मैं तो बड़ा सौभाग्यशाली हूँ कि मेरे दूर के किसी रिश्तेदार के रिश्तेदार भजनखबरी से मेरा परिचय हो गया। उनकी देशभक्ति की गाथा बड़ी गौरवशाली है। अंग्रेजों की तरह बेहया, बेशर्म, बेकाबू नाखूनों को काटकर उन्होंने अपनी देशभक्ति का जो परिचय दिया है, उसके बारे में जितना लिखा जाए कम है। तीन दर्जन से अधिक किताबों में उनकी नाखून शहादत गाथा चीख-चीखकर बयान करती है। ऊपर से इन किताबों की टीका की टीका लिख-लिखकर सौ से अधिक किताबें हो गयी हैं। मेरा अहोभाग्य कि ऐसे जमाने में जहाँ पुलिस, सेना में भर्ती के लिए पैसे लेकर लोग मुकर जाते हैं, वैसे जमाने में भजनखबरी जैसे महान देशभक्त ने मुझसे कुछ रुपए लेकर ईमानदारी से अपनी देशभक्ति पाठशाला में मेरी एक सीट उठाकर रख दी है।

 

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देशभक्ति पाठशाला का प्रवेश द्वार अत्यंत भव्य है। द्वार के इधर-उधर दो महान देशभक्तों की मूर्तियाँ लगी हुई हैं। भजनखबरी चाहते तो अपना भी लगा सकते थे। फिर ख्याल आया कि पाठशाला से अच्छा है किसी स्टेडियम का नाम होता। जब भी टीवी में सीधा प्रसारण होता बार-बार उनका नाम चलाया जाता। जीते जी अपनी मूर्ति न लगवाने का उनका त्याग इतिहास के पन्नों में बड़े आदर के साथ दर्ज किया जाएगा। चूंकि खून के नाम पर पानी बह रहे मेरे शरीर में बाहर की गर्मी अंदर उबाल मार रहा था। मैंने प्रवेश द्वार पर लगी देशभक्ति नियमावली पढ़ी। लिखा था– चांदनी रात में आँखों में चाँदनी, साहित्य सृजन का बगल वाले के कानों तक प्रसार, भोजन के निवाला का मुँह तक पहुँच, रात के घनघोर अंधेरे में बेखौफ गीत, वाक् स्वंतत्रता का उपयोग, सरकारी संस्थाओं के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाना आदि देशद्रोह माना जाएगा। मैंने आँखें मूंदी और देशभक्ति की भीड़ में खुद को भेड़ बनाने के लिए मचलता हुआ भीतर घुस गया।

 

-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

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