By अभिनय आकाश | May 21, 2021
वृक्षमित्र और एक ऐसा कालजयी महापुरूष जो न केवल उत्तराखंड, भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल हैं। तमाम तरह के पुरस्कार जिनके हाथों में जाकर खुद सम्मानित हुए। आज बात दुनिया को जल, जंगल और जमीन बचाने में अपना जीवन समर्पित करने वाले सुंदरलाल बहुगुणा की करेंगे। कोरोना काल में इस वटवृक्ष को भी इस महामारी ने अपने आगोश में ले लिया है। सुंदरलाल बहुगुणा का एम्स, ऋषिकेश में कोविड-19 से निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे। आठ मई को बहुगुणा को एम्स में भर्ती कराया गया था। ऑक्सीजन स्तर कम होने के कारण उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी। चिकित्सकों की पूरी कोशिश के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के सिलयारा में हुआ था। उन्हें बहुचर्चित चिपको आंदोलन का जनक भी कहा जाता है। इस आंदोलन के कारण वो वृक्षमित्र के नाम से मशहूर हुए। साथ ही उन्हें पर्यावरण गांधी भी कहा जाने लगा। पर्यावरण को बचाने के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयासों को सरकार ने सराहा और 26 जनवरी 2009 को पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उन्हें वर्ष 1981 में पदम्श्री से भी सम्मानित करने की घोषणा हुई, लेकिन उन्होंने ये सम्मान लेने से इनकार कर दिया।
पेड़ से चिपककर खड़ी हो गई थी महिलाएं
महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया जिसकी व्यापकता संपूर्ण देश ने महसूस की। इसी दौरान गढ़वाल हिमालय में पेड़ों की कटाई के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाया गया। 26 मार्च 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गई जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए।
हिमालय की लंबी यात्रा
80 के दशक में सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय की 5 हजार किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया।