अपने देश में अधिकतर लोगों को यह पता भी नहीं होता है कि कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) क्या चीज है, इसके सहारे कैसे और कितनी बचत की जा सकती है, इसके क्या-क्या अन्य फायदे हैं तथा कौन-कौन से लोग इसके दायरे में आते हैं और कौन-कौन से लोग नहीं। इसलिए हम आपको बताएंगे ईपीएफ से जुड़े उन मूलभूत तथ्यों के बारे में, जो आमतौर पर पूछे जाने वाली बातों, उनसे जुड़े पूरक प्रश्नों एवं समीचीन उत्तरों की बानगी बन सकते हैं।
सवाल है कि मेरे दोस्त का ईपीएफ क्यों नहीं कट रहा है?
जवाब स्वरूप यह बताया जा सकता है कि कोई भी नियोक्ता अपने कर्मचारियों के वेतन में से दो सूरतों में ही ईपीएफ की कटौती नहीं करता है- पहला, यदि किसी प्रतिष्ठान में 20 से कम कर्मचारी हों तो वहां पर पीएफ कटौती आवश्यक नहीं है। दूसरा, यदि किसी प्रतिष्ठान में 20 से अधिक कर्मचारी हैं और सभी कर्मचारियों का मूल वेतन एवं महंगाई भत्ता (डीए) दोनों मिलाकर 15 हजार रुपये मासिक से अधिक है और यदि इन सबने फार्म 11 भरकर ईपीएफ से बाहर रहने का निर्णय लिया है तो ऐसी दशा में कतई पीएफ की कटौती नहीं होगी।
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लिहाजा, सहज ही सवाल उठ रहा है कि क्या कोई पीएफ से अलग रह सकता है?
जवाब है- हां, क्योंकि यदि कोई नियोक्ता ईपीएफ की सुविधा देता है, लेकिन किसी कर्मचारी का वेतन और डीए दोनों मिलाकर 15,000 रुपये से अधिक है तो वह फार्म 11 भरकर खुद को ईपीएफ से अलग रखने के लिए आवेदन दे सकता है। हालांकि, गौर करने वाली बात यह है कि ऐसा कोई भी विकल्प नौकरी शुरू करते वक्त ही चुनना होगा। कहने का तातपर्य यह कि यदि किसी कर्मचारी ने जीवन में एक बार भी ईपीएफ में योगदान किया है तो फिर वह इससे कतई बाहर नहीं रह सकता है।
जानिए कि ईपीएस कर्मचारी पेंशन स्कीम क्या है?
यदि आपको नहीं पता तो यह जान लीजिए कि ईपीएस यानी कि कर्मचारी पेंशन स्कीम का आगाज सन 1995 में हुआ था। जिसे फैमिली पेंशन स्कीम (एफपीएस) की जगह लाया गया था। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इसमें कर्मचारी के मासिक ईपीएफ (अधिकतम 15000 रुपये) योगदान के 8.33 फीसद (अधिकतम 1250 रुपये) के अलावा सरकार की तरफ से भी 1.77 फीसद योगदान होता है। जिसका उद्देश्य कर्मचारी को 20 साल की नौकरी अथवा 58 साल की उम्र में रिटायर होने पर पूर्ण पेंशन या फिर 20 साल की नौकरी किन्तु 58 साल से कम उम्र में नौकरी जाने पर सेवानिवृत्ति पेंशन या स्थायी पूर्ण विकलांगता पेंशन या 10 साल से अधिक किंतु 20 साल से कम अवधि तक सेवा पर अल्प सेवा पेंशन प्रदान करना है।
बहुत से लोग यह सवाल करते हैं कि यदि ईपीएस में योगदान न करूं तो क्या होगा? ऐसे लोगों के लिए यहां पर यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि ईपीएस ऐसे सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है, जिनका बेसिक और डीए 15000 रुपये मासिक या उससे कम है। परन्तु, पहली सितंबर 2014 को या उसके बाद ईपीएफ सदस्य बनने वाले को और 15000 रुपये से अधिक बेसिक एवं डीए वाले नए कर्मचारियों का संपूर्ण योगदान केवल ईपीएफ खाते में ही जाएगा, और कोई राशि ईपीएस में जमा नहीं होगी। हालांकि, 15000 रुपये से अधिक बेसिक व डीए वाले मौजूदा ईपीएफ सदस्यों का ईपीएस में योगदान पहले की ही भांति यथावत होता रहेगा।
अब नौकरियां बदलने पर भी यथावत रहेगा ईपीएफ नम्बर
सवाल है कि यदि किसी कर्मचारी ने कई नौकरियां बदलीं जिसके चलते उसे ईपीएफ नंबर भी याद नहीं है तो क्या उसे ईपीएफ मिलेगा?
जवाब होगा कि अवश्य मिलेगा। क्योंकि ईपीएफओ ने बीटा वर्जन में एक लिंक उपलब्ध कराया है, जो सम्बन्धित कर्मी को एक ऑनलाइन पोर्टल पर ले जाएगा। जहां वह अपने पिछले रोजगार व नियोक्ता का ब्यौरा देकर अपने ईपीएफ खाते का मेंबर आईडी तथा सम्बन्धित राशि निकालने का तरीका भी देख सकते हैं।
आपके लिए यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि किन परिस्थितियों में कोई कर्मचारी ईपीएफ निकाल सकते हैं?
आप यह समझ लीजिए कि निम्नलिखित मामलों में आप फार्म 31 जमा करके पीएफ से अपनी राशि निकाल सकते हैं:- पहला, जगह, मकान, फ्लैट खरीदने या किसी एजेंसी से मकान बनवाने या हाउसिंग लोन अदा करने के लिए और दूसरा अपने बेटे, बेटी, भाई या बहन की शादी के लिए।
सवाल है कि यदि कोई नियोक्ता केवल 15000 रुपये पर पीएफ काट रहा है तो? यहां आपके यह जानना जरूरी है कि यदि कोई नियोक्ता अपने कर्मचारी के खाते में अधिक वेतन बतौर टेक होम सैलरी दिखाना चाहता है तो वह न्यूनतम 1800 रुपये, जो 15000 रुपये या बेसिक व डीए का 12 फीसद है, की कटौती करने को स्वतंत्र है। लेकिन यदि कोई कर्मचारी ईपीएफ में इससे अधिक योगदान करना चाहता है तो फिर उसे वीपीएफ अपनाना होगा।
एक सवाल यह भी है कि क्या पीएफ निकासी पर कोई टैक्स लगता है? यहां जवाब यह होगा कि यदि कर्मचारी ने पांच साल से कम अवधि का योगदान किया है तथा धारा 80सी के तहत कर लाभ प्राप्त किया है तो निकाले गए पीएफ पर पिछले चार साल के औसत टैक्स ब्रैकेट स्लैब के अनुसार टैक्स लगेगा।
एक अन्य सवाल यह है कि क्या पीएफ निकासी के लिए न्यूनतम छह माह का योगदान जरूरी है?
जवाब होगा- नहीं। क्योंकि पीएफ में योगदान की गई छोटी से छोटी राशि भी निकाली जा सकती है।
एक अन्य पूरक सवाल है कि क्या छह महीने से कम योगदान करने पर कर्मचारी पेंशन स्कीम में जमा राशि जब्त हो जाएगी?
जवाब होगा- हां। केवल छह महीने से अधिक और साढ़े नौ साल तक ईपीएस में योगदान होने पर ही उसे निकाला जा सकता है, अन्यथा कतई नहीं।
अब ऐसे कीजिये ईपीएफ की गणना
जहां तक ईपीएफ की गणना का सवाल है तो यह जानना सबके लिए जरूरी है कि किसी भी कर्मचारी के मूल वेतन और डीए को मिलाकर जो कुल राशि बनती है, उसका 12 प्रतिशत योगदान कर्मचारी करता है, और इतना ही नियोक्ता की ओर से भी पीएफ में किया जाता है। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि किसी भी नियोक्ता के हिस्से के 12 फीसद योगदान में से 8.33 फीसद या 1250 रुपये, जो भी कम हो, का योगदान कर्मचारी पेंशन योजना यानी ईपीएस में होता है। जबकि, शेष 3.67 फीसद राशि का योगदान कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में होता है। इसके विपरीत, कर्मचारी के हिस्से का पूरा 12 फीसद योगदान ईपीएफ में ही जाता है।
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यहां तीन उदाहरण देकर हम इसे और स्पष्ट करेंगे :
पहला, यदि कर्मचारी का बेसिक व डीए 15 हजार रुपये से कम, जैसे कि 10,000 रु. मात्र है तो योगदान(रु)-गणना (फीसद)-राशि(रु.) क्रमशः 10000- 12- 1200, 10000- 8.33- 833 और 10000- 3.67- 367 होगा।
दूसरा, यदि कर्मचारी का बेसिक व डीए 15 हजार रुपये ही है तो योगदान- गणना (फीसद)- राशि रु. क्रमशः 15000-12-1800, 15000-8.33-1250 और 15000-3.67- 550 होगा।
तीसरा, यदि बेसिक व डीए 15 हजार रुपये से अधिक, जैसे कि 20 हजार रु. है तो योगदान- गणना (फीसद)- राशि रु. क्रमशः 20000-12- 2400, 20000- 8.33-1250 और 20000-12 (-1250 रु.)-1150 होगा। मुझे विश्वास है कि अब आप समझ चुके होंगे कि ईपीएफ क्या है, कैसे कार्य करता है और इससे किनका हित सधता है। इसलिए विलम्ब मत कीजिए और इस सुविधा का लाभ उठाकर खुद को आर्थिक तौर पर सुरक्षित कीजिए। गुजरा वक्त कभी लौट कर नहीं आएगा।
-कमलेश पांडे