By रेनू तिवारी | Nov 26, 2024
पटना: बिहार की राजनीति में काफी समय से मुस्लिम वोटों को लेकर चर्चा हो रही हैं। जेडी(यू) ने मुस्लिमों और यादवों के लिए काफी कार्य किया है लेकिन इसके बाद भी मुस्लिम समुदाय के लोग नीतिश कुमार की पार्टी का समर्थन नहीं कर रहे हैं। पिछले काफी समय से मुसलमानों की बेवफाई की बात उठ रही हैं। और अब ताजा बयानबाजी से ये साफ हो गया हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार की पार्टी मुस्लिम समुदाय की बेफवाई पर अपनी नाराजगी कुछ इस तरह से जता चुकी हैं।
-जेडीयू ललन सिंह सिंह बोले-मुस्लिम उनकी पार्टी को नहीं देते वोट
-जेडीयू सांसद देवेश चंद्र ठाकुर भी कह चुके हैं मुस्लिम नहीं देते उन्हें वोट
-पटना में वक्फ बोर्ड की बैठक में आमंत्रण के बाद भी नहीं पहुंचे नीतीश कुमार
जेडी(यू) के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने यह कहकर राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है कि मुसलमान चुनावों में उनकी पार्टी को वोट नहीं देते हैं। उनके इस बयान की आलोचना हो रही है, जिसमें उनकी अपनी पार्टी के सहकर्मी भी शामिल हैं, जिन्होंने उनके इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों ने हाल के चुनावों में जेडी(यू) का समर्थन किया है। उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर में जेडी(यू) कार्यकर्ताओं की बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सिंह ने तर्क दिया कि नीतीश कुमार सरकार द्वारा उनके लिए लागू की गई विकास परियोजनाओं के बावजूद मुसलमानों ने जेडी(यू) को वोट नहीं दिया है।
केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का मुसलमानों पर बड़ा बयान
सिंह ने कहा, "यह कहना गलत है कि अल्पसंख्यकों ने पहले हमें वोट नहीं दिया, लेकिन अब वे हमारे समर्थन में वोट देते हैं। सच्चाई यह है कि अल्पसंख्यकों के लिए चाहे कितना भी विकास किया जाए, वे कभी हमारे पक्ष में वोट नहीं देते।" उन्होंने आगे कहा कि राजद के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों की स्थिति दयनीय थी, लेकिन नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद इसमें काफी सुधार हुआ है। मंत्री ने दुख जताते हुए कहा, "पहले मदरसा शिक्षक को सिर्फ 4,000 रुपये प्रतिमाह मिलते थे, लेकिन अब उन्हें सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन दिया जा रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण के लिए इन सभी पहलों के बावजूद हमें उनका वोट नहीं मिलता।" उन्होंने कहा, "कुछ अल्पसंख्यक नेता दावा करते हैं कि मुसलमान नीतीश को वोट देते हैं, लेकिन हम किसी भ्रम में नहीं रहते। हकीकत यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय नीतीश कुमार को वोट नहीं देता। इसके बजाय वे उस पार्टी को वोट देते हैं, जिसने आज तक उनके विकास के लिए कुछ नहीं किया।" सिंह के विचारों का खंडन करते हुए जदयू नेता मोहम्मद जमाल ने दावा किया कि बेलागंज विधानसभा उपचुनाव के दौरान मुसलमानों ने पार्टी को वोट दिया था, जैसा कि नतीजों में भी दिख रहा है।
उन्होंने यह भी बताया कि लोकसभा चुनाव में सीतामढ़ी और शिवहर जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों ने जेडी(यू) उम्मीदवारों को वोट दिया था। जेडी(यू) के एक अन्य वरिष्ठ नेता और मंत्री अशोक चौधरी ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए नीतीश कुमार सरकार द्वारा किए गए व्यापक कार्यों पर प्रकाश डाला। चौधरी ने दावा किया, "पहले अल्पसंख्यकों के लिए बजट 2,200 करोड़ रुपये था; आज यह लगभग 7,000 करोड़ रुपये है। निश्चित रूप से उनके कल्याण के लिए काम किया गया है। बिहार भारत के उन कुछ राज्यों में से एक है, जहां हमारे नेता (नीतीश) ने अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को बीपीएससी और यूपीएससी की कोचिंग प्रदान की है।"
सिंह के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "ललन सिंह को भूल जाइए। जब वे हमारे साथ थे, तो वे प्रधानमंत्री और अमित शाह के बारे में तरह-तरह के बयान देते थे। वे राजनीतिक सुविधा के आधार पर अपना रुख बदलते हैं। उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है।" असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने भी विवादास्पद मुद्दे पर इसी तरह के विचार व्यक्त किए, सिंह की टिप्पणी की आलोचना की और अल्पसंख्यक कल्याण के बारे में जेडी(यू) के दावों की ईमानदारी पर सवाल उठाया।
मदनी ने वक्फ पर प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी की आलोचना की
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद (एएम) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस टिप्पणी के लिए रविवार को तीखी आलोचना की जिसमें उन्होंने कहा है ‘‘वक्फ कानून का संविधान में कोई स्थान नहीं है।” पटना में संगठन द्वारा आयोजित ‘‘संविधान बचाओ एवं राष्ट्रीय एकता’’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए मदनी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके आंध्र प्रदेश के समकक्ष चंद्रबाबू नायडू से वक्फ संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकने का भी आग्रह किया। मोदी सरकार इस संशोधन विधेयक को संसद के अगले सत्र के दौरान पेश कर सकती है। मदनी ने प्रधानमंत्री के ‘वक्फ कानून का संविधान में कोई स्थान नहीं है’ बयान पर हैरानी जताते हुए कहा कि कल वह यह भी कह सकते हैं कि नमाज, रोजा, हज और जकात का उल्लेख संविधान में कहीं नहीं है, इसलिए इन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमें प्रधानमंत्री से इतने कमजोर बयान की उम्मीद नहीं थी, अगर उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता है तो वह संविधान के जानकार लोगों से इस बारे में जानकारी ले सकते थे।” मदनी ने दावा किया कि वक्फ संपत्तियों को नष्ट करने और जब्त करने का रास्ता साफ करने वाला यह विधेयक अगर संसद में पेश किया गया तो जमीयतहिंदू, अन्य अल्पसंख्यकों और सभी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाले लोगों के साथ मिलकर देश भर में इसका विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि मुसलमान कोई भी नुकसान बर्दाश्त कर सकता है लेकिन “शरीयत में कोई दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं कर सकता।” मुस्लिम नेता ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री को पता होना चाहिए कि वक्फ इस्लाम का अभिन्न अंग है और इसका उल्लेख हदीस में मिलता है, जो हमारे पैगंबर द्वारा कहे गए शब्द हैं।” मदनी ने कहा कि संविधान में देश के सभी अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है और यह (वक्फ) इस धार्मिक स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जमीयत प्रमुख ने कहा, “यह हमारा धार्मिक मामला है इसलिए इसकी रक्षा करना और इसे जीवित रखना हमारा धार्मिक कर्तव्य है।” उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी नीतीश और नायडू से आग्रह किया कि वे विधेयक का समर्थन न करें और कहा कि ऐसा करना ‘‘मुसलमानों की पीठ में छुरा घोंपने के समान होगा।’’
राजग ने मोदी और नीतीश पर निशाना साधने पर मदनी की आलोचना की
बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर टिप्पणी करने के लिए जमीयत-उलेमा-ए-हिंद (एएम) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की सोमवार को आलोचना की। मदनी ने एक दिन पहले यहां जमीयत द्वारा आयोजित संविधान बचाओ और राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के दौरान मोदी और नीतीश पर तीखा प्रहार किया था। मौलाना मदनी ने मुख्यमंत्री कुमार को लेकर कहा था कि अगर उनकी पार्टी जनता दल (यू) वक्फ विधेयक का विरोध नहीं करती है, तो वह मुसलमानों का समर्थन खो सकते हैं। इस पर मदनी पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री के करीबी सहयोगी अशोक चौधरी ने कहा, हमें मदनी या किसी मौलवी, पंडित या शंकराचार्य की कोई चिंता नहीं है। चौधरी ने कहा, हमारे नेता लोगों के लिए काम करते हैं और मुख्यमंत्री के रूप में अपने प्रदर्शन के आधार पर उनसे वोट मांगते हैं।”
उन्होंने कहा कि कुमार को अपने और जनता के बीच किसी मध्यस्थ की जरूरत नहीं है। जद(यू) के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्य सरकार में मंत्री ने मदनी के इस आरोप को खारिज कर दिया कि मुख्यमंत्री का जमीयत के कार्यक्रम में शामिल न हो पाना वक्फ मुद्दे पर पार्टी के अस्पष्ट रुख को दर्शाता है। चौधरी ने कहा, हमारे नेता बिना किसी शर्त के अल्पसंख्यक संगठनों के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। हो सकता है कि वह पूर्व प्रतिबद्धताओं के कारण मदनी के कार्यक्रम में नहीं आए हों। मुझे यह भी संदेह है कि मदनी ने उन्हें उचित तरीके से निमंत्रण नहीं दिया हो। चौधरी ने पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ललन के मुसलमान हमें वोट नहीं देते हैं वाले बयान का भी बचाव करते हुए कहा, कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि नीतीश कुमार ने समुदाय के लिए किसी और से ज्यादा काम किया है।
उन्होंने कहा, यहां तक कि मुस्लिम मुख्यमंत्री भी अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति हमारे नेता की उदारता की बराबरी नहीं कर सकते। ललन ने सही कहा है कि जद(यू) को मुसलमानों का उचित समर्थन नहीं रहा है। इससे मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का ध्यान मदनी की टिप्पणी की ओर आकर्षित किये जाने पर उन्होंने इस्लामी विद्वान की तुलना एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से की और आरोप लगाया कि वह नकारात्मकता से भरे हुए हैं। वह आलोचना तो कर सकते हैं, लेकिन कोई रचनात्मक सुझाव नहीं दे सकते। राज्य सरकार में मंत्री जायसवाल ने कहा, हम नरेन्द्र मोदी के सबका साथ सबका विकास के नारे में विश्वास करते हैं।” वक्फ विधेयक पर पूछे गए सवाल का उन्होंने सीधा जवाब देने से बचते हुए कहा, चाहे मंदिर हों या मस्जिद, इनका अस्तित्व राष्ट्र के कारण है। इसलिए इन्हें भी कुछ वापस देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना है, जो 25 नवंबर से शुरू होगा और संभवतः 20 दिसंबर को समाप्त होगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में वक्फ विधेयक पारित करने का संकल्प लिया है। सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू नेता नीतीश कुमार वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर सरकार का समर्थन करेंगे या विपक्ष का। इस विधेयक ने विपक्षी दलों और अल्पसंख्यक संगठनों के बीच बहस छेड़ दी है, जो आरोप लगा रहे हैं कि यह वक्फ संपत्तियों पर सरकार के नियंत्रण को केंद्रीकृत करने का प्रयास करता है, जिससे राज्य के अधिकार और मुस्लिम समुदाय की स्वायत्तता कमज़ोर होती है। 28 जुलाई को संसद के 2024 के मानसून सत्र के दौरान पेश किए गए इस विधेयक ने सदन में हंगामा मचा दिया और फिर इसे व्यापक जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया।