By अभिनय आकाश | May 29, 2023
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन कर दिया। लेकिन पीएम मोदी द्वारा इसके उद्घाटन किए जाने पर कांग्रेस समेत विपक्ष के 21 दलों ने समारोह का बायकॉट किया। वहीं बीजेपी की तरफ से कांग्रेस की सरकार के दौरान विभन्न विधानसभाओं के उद्घाटन में सोनिया गांधी को बुलाए जाने और राज्यपाल से किनारा करने के मुद्दे को रेखांकित किया। वहीं हाल ही में एक टीवी चैनल में मणिपुर विधानसभा के शिलापट पर सोनिया गांधी के नाम को लेकर चल रही डिबेट में ये मुद्दा उठा। उस वक्त एक टीवी चैनल में कांग्रेस के एक प्रवक्ता इस बात को डिफेंड करते-करते यूपीए चेयरपर्सन के पद को संवैधानिक तक बता डाला। वहीं यूपीए सरकार के दौर में सोनिया गांधी की भूमिका पर चर्चा भी शुरू हो गई है। इस क्रम में साल 2006 का घटनाक्रम जानना आवश्यक हो जाता है जिसमें सोनिया गांधी को लाभ का पद धारण करने के मामले में संसद के अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
सोनिया गांधी की गई थी सदस्यता
ये यूपीए-1 के शासनकाल यानी 2006 की बात है जब लाभ के पद को लेकर विवाद की वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा था। सांसद होने के साथ सोनिया को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का चेयरमैन बनाए जाने से लाभ के पद का मामला बन गया था। ये कॉउन्सिल नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देगी। हालांकि, ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि ये कॉउन्सिल असल मायनों में सुपर सरकार की भूमिका में कार्य करती थी। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार अगर किसी सांसद या विधायक ने 'लाभ का पद' लिया है तो उसकी सदस्यता जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं।
लाभ का पद क्या होता है?
संविधान के आर्टिकल 102 (1) (ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या बाकी फायदे मिलते हों। इसके अलावा आर्टिकल 191 (1)(ए) और पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव एक्ट के सेक्शन 9 (ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।