त्योहारों का मौसम खुशहाली चमकने का मौसम होता है। व्यावसायिक घराने इंतज़ार में रहते हैं कि त्योहार आएं और बिजनेस में उठान आए। सरकारजी की भी कोशिश रहती है कि देश के बाज़ारों में किसी तरह बहार रहे। सरकारी खेतों में उपजाऊ बीज बोने की ज़िम्मेदारी अफसरशाही खूब निभाती है। अधिकारी पूरा साल सेवा करते हैं तभी बड़ी पार्टी करने का वक़्त इस मौसम में मिलता है।
हर बरस की तरह, ‘हाई क्लास आफिसर्ज एसोसिएशन’ ने त्योहारों के मौसम में खुशहाल गोष्ठी का आयोजन किया। यहां सब अन्दर के बंदे होते हैं तभी खुलकर अनुभव बंटते हैं। सबसे ज्यादा तालियां वसूलने वाले उदगार अनुभवी वरिष्ठ अफसरों ने पेश किए। उन सबकी बातों का रस कुछ ऐसा था, ‘आम आदमी त्योहार घर लेकर जाता है लेकिन हमारे यहां त्योहार खुद चलकर आते हैं। बढ़ती तन्खवाह में वो मज़ा नहीं जो आनंद त्योहारों में है। कहां कहां से लोग नायाब चीजें लेकर सांस्कृतिक परंपरा निभाने आते हैं। बिलकुल अनजान लोगों से मिलने, सम्बन्ध जोड़कर सेवा करने का अवसर भी मिलता है।’
‘नए, मंहगे, शानदार रिर्सोट्स में निर्मल आनंद का अवसर मिलता है। लोग मना करने के बावजूद घर का फर्नीचर बदल देते हैं। इतने समझदार, बाकायदा पूछते हैं कि बच्चों के लिए क्या लाएं। रात के समय निवास पर आकर कहते हैं, मैडम माफ़ करना डिस्टर्ब किया, प्लीज़ बताएं, क्या नया पसंद करेंगी। सम्बंधित साइट्स बारे पूरी जानकारी देते हैं। क्रिएटिव डिज़ाइनर साथ लेकर आते हैं। कई बार लगता तो है यह कुछ ज्यादा हो रहा है। लेकिन क्या करें, बंदे, त्योहारों पर भाईचारा बढ़ाने की हमारी प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा का वास्ता देते हैं। कहते हैं बची खुची संस्कृति को कैसे छोड़ दें।’
उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में होने वाली बेटी की शादी के सम्बन्ध में कुछ लोगों का डेपूटेशन उनसे मिलने आया और मैरिज की लगभग सभी आईटम्स प्रायोजित करने के बाद ही गया। एक पत्नी ने शान से बताया कि पिछली दीवाली पर इतने ड्राईफ्रूट्स आ गए थे कि रिश्तेदारों व जानकारों को बांटने के बाद अभी भी खत्म नहीं हुए और नई दीवाली फिर आ पहुंची है। पिछले साल जब इनकी ट्रांसफर हुई तो जानने वाले ने सामान पैक करने के लिए एक दर्जन बॉक्स भिजवा दिए थे। त्यौहारों का मौसम पूरे साल रहे तो…लुत्फ़ सलामत रहे।
उद्योग विभाग के अधिकारी ने सहर्ष सूचित किया कि यह खुशहाल गोष्ठी, क्षेत्र में लगाई जा रही नई मिनरल वाटर कंपनी ने प्रायोजित की है। इस घोषणा के बाद सभी को और अच्छा लगने लगा। गोष्ठी में यह भी संजीदगी से विचार किया गया कि बढ़ते राजनीतिक अनुशासन के युग में पारम्परिक खुशहाली कैसे बरकरार रखी जाए।
- संतोष उत्सुक