बाल ब्रह्मचारी माने जाने वाले, चारों युग में अपना प्रताप रखने वाले भगवान बजरंग बली को भला कौन नहीं जानता है!
श्रीराम के अनन्य भक्त, अनंत ताकतवर, समुद्र को एक छलांग मे लाँघ जाने वाले, सोने की लंका को अपनी पूंछ की आग से जला देने वाले बजरंगबली, अपने स्वामी भगवान राम को अत्यंत प्रिय थे। ये तो सभी जानते हैं कि हनुमान जी ने आजीवन विवाह नहीं किया था, किंतु क्या आप जानते हैं कि बावजूद इसके उनका एक पुत्र भी था?
आखिर यह कैसे संभव है, और क्या है इसकी कथा, आइए जानते हैं...
यह कथा तब की है, जब रावण को युद्ध में अपनी हार दिखने लगी थी, और वो परेशान हो गया था। रावण का महा प्रतापी पुत्र मेघनाथ और अत्यंत बलशाली भाई कुंभकर्ण युद्ध भूमि में मारे जा चुके थे। ऐसी स्थिति में रावण ने, पाताल लोक के स्वामी अहिरावण को मजबूर किया कि वह श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करे। अहिरावण अत्यंत मायावी राक्षस राजा था। वह हनुमान का रूप धारण करके, अपनी माया से, श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करके पताल लोक ले जाने में सफल भी हो गया।
सुबह जब सब ने देखा, तो श्री राम के शिविर में हाहाकार मच गया और उनकी खोज होने लगी।
एक बार पुनः बजरंगबली श्रीराम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पताल में जाने लगे। चूंकि पाताल लोक के सात द्वार थे, और हर एक द्वार पर एक पहरेदार था। परन्तु सभी पहरेदारों को हनुमान जी ने अपने बल से परास्त कर दिया, किंतु अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली, स्वयं एक बानर पहरा दे रहा था। अपने समान रूप देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ और उस बानर से हनुमान जी ने परिचय पूछा, तो उसने अपना नाम मकरध्वज बताया और अपने पिता का नाम हनुमान बताया।
जैसे ही मकरध्वज ने अपने पिता का नाम हनुमान बताया, तो बजरंगबली अत्यंत क्रोधित हो गए, और बोले, कि यह असंभव है, क्योंकि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं! तुम ऐसा झूठ क्यों बोल रहे हो?
फिर मकरध्वज ने बताया कि जब हनुमान जी लंका जला कर समुद्र में आग बुझाने को कूदे थे, तब उनके शरीर का तापमान अत्यंत बढ़ा हुआ था।
ऐसे में जब वह सागर के ऊपर थे, तब उनके शरीर के पसीने की एक बूंद सागर में गिर गई थी, जिसे एक मकर ने पी लिया था, और उसी पसीने की बूंद से वह गर्भावस्था को प्राप्त हो गयी।
बता दें कि वह मकर पूर्व जन्म में कोई अप्सरा थी, जो श्राप के कारण मकर बन गई थी। बाद में उसी मकर को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया और मार दिया, और उसी के गर्भ से मकरध्वज का जन्म हुआ।
बाद में वह अप्सरा भी श्राप से मुक्त हो गई। यह कथा जानकर हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने गले से लगा लिया। हालाँकि अपने पिता के रूप में हनुमान जी को पहचानने के बाद भी मकरध्वज हनुमान जी को अंदर जाने देने को तैयार नहीं हुआ।
अपने पुत्र को स्वामी भक्ति पर अटल देखकर हनुमान जी उससे और प्रसन्न हुए और पुनः दोनों में भयंकर युद्ध हुआ, किंतु अंत में हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसे बांधकर दरवाजे से हटा दिया, और हनुमान जी ने राम और लक्ष्मण को अंततः मुक्त कराने में सफलता प्राप्त कर ली। बाद में मकरध्वज को ही पताल का नया राजा, स्वयं श्रीराम ने घोषित किया।
खास बात यह है कि भारत में मकरध्वज के मंदिर भी हैं, जिन पर काफी श्रद्धालु जाते हैं।
इनमें से पहला मंदिर द्वारिका गुजरात में है। यह गुजरात की मुख्य द्वारिका से लगभग 2 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर को 'दांडी हनुमान' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर अपने पुत्र मकरध्वज से हनुमान जी पहली बार मिले थे। दोनों पिता-पुत्र की यहां पर बगैर किसी शस्त्र के प्रतिमा है।
दूसरा मंदिर ब्यावर राजस्थान में है। यहां भी पिता-पुत्र, दोनों ही की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस स्थान पर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, साथ ही तमाम बाधाओं से भी उसकी रक्षा होती है।
देखा जाए तो रामायण में एक से बढ़कर एक कहानियां हैं, और उन कथाओं से मनुष्य को उत्तम जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। वहीं इन कहानियों से सत्य, अहिंसा, स्वामी भक्ति, श्रद्धा जैसे गुणों का विकास भी होता है।
- विंध्यवासिनी सिंह