By अनन्या मिश्रा | Nov 24, 2024
भारत के इतिहास में ऐसे कई महान और क्रांतिकारी पुरुषों का जन्म हुआ। जिन्होंने अपने आदर्शों, संस्कृति, धर्म और मूल्यों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। ऐसे ही महान पुरुष सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह थे। उनको 'हिंद की चादर' भी कहा जाता है। गुरु तेग बहादुर ने मुगल शासक औरंगजेब का खुलकर विरोध किया और अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी। आज ही के दिन यानी की 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब ने हत्या करवा दी थी। इसलिए 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर का शहीदी दिवस भी मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु तेग बहादुर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
पंजाब के अमृतसर में 21 अप्रैल 1621 को गुरु तेग बहादुर का जन्म हुआ था। इनके पिता 6वें सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद थे और माता का नाम नानकी था। बचपन में इनका नाम त्यागमल था। यह अपने पिता के सबसे छोटे बेटे थे।
त्यागमल से बने तेग बहादुर
बताया जाता है कि एक बार गुरु तेग बहादुर अपने पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ करतारपुर की लड़ाई के बाद किरतपुर जा रहे थे। इस दौरान उनकी उम्र 13 साल थी। तभी फगवाड़ा के पास मुगलों की सेना ने उन पर अचानक से हमला कर दिया। इस युद्ध में अपने पिता के साथ गुरु तेग बहादुर ने भी मुगलों का सामना किया। छोटी उम्र में उनका साहस और जज्बा देखकर उनको नाम त्यागमल से तेग बहादुर रख दिया गया।
ऐसे बने 9वें गुरु
गुरु तेग बहादुर की शादी 1632 में जालंधर के नजदीक करतारपुर में बीबी गुजरी से हुई। शादी के बाद वह अमृतसर के पास बकाला में रहने लगे। वहीं 8वें सिख गुरु हरकृष्ण साहिब की मृत्यु के बाद मार्च 1665 में गुरु तेग बहादुर साहिब अमृतसर के गुरु की गद्दी पर आसीन हुए और सिखों के 9वें गुरु बने।
धर्म का प्रचार-प्रसार
धर्म के प्रचार-प्रसार व लोक कल्याणकारी कार्य के लिए गुरु तेग बहादुर ने कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर से कीरतपुर, रोपड, सैफाबाद के लोगों को सहजता और संयम का पाठ पढ़ाते हुए वह खिआला पहुंचे। यहां पर धर्म का प्रचार करते हुए गुरु तेग बहादुर दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे। फिर प्रयाग, बनारस, असम और पटना गए। जहां पर उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए। इसी दौरान पटना साहिब में 1666 में उनके पुत्र पुत्र गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म हुआ, जो आगे चलकर सिखों के 10वें गुरु बने।
कश्मीरी पंडितों के लिए औरंगजेब से विद्रोह
तेग बहादुर के समकालीन मुगल बादशाह औरंगजेब था। उसकी छवि कट्टर बादशाह के रूप में थी। औरंगजेब के शासनकाल में हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। इसका सबसे ज्यादा शिकार कश्मीरी पंडित हुए। ऐसे में औरंगजेब के अत्याचार से बचने के लिए कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल श्री आनंदपुर साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब से मदद मांगने के लिए पहुंचा।
महीनों तक कैद में रखा
कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म की रक्षा का आश्वासन देकर गुरु तेग बहादुर हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का खुले स्वर में विरोध करने लगे। वहीं उन्होंने कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा का जिम्मा भी अपने सिर ले लिया। उनके इस फैसले से औरंगजेब गुस्से से भर गया और जब 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने 5 सिख साथियों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए निकले तो औरंगजेब ने उनको रास्ते में पकड़ लिया और महीनों कैद में रखकर अत्याचार की सारी सीमाएं पार कर दीं।
औरंगजेब के आगे नहीं झुके गुरु तेग बहादुर
औरंगजेब के सिपाही गुरु गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर करने लगे। गुरु तेग बहादुर की हत्या करने से पहले औरंगजेब ने उनके सामने तीन शर्तें रखी थीं। जिसमें पहली शर्त कलमा पढ़कर मुस्लिम बनने, दूसरी चमत्कार दिखाने या फिर तीसरी मौत स्वीकार करने की। गुरु तेग बहादुर ने पहली दो शर्तें मानने से इंकार कर दिया। जिसके बाद 24 नवंबर 1675 में जल्लाद जलालदीन ने अपनी तलवार से दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया।