By अनन्या मिश्रा | Apr 01, 2024
भारत के गौरवपूर्ण इतिहास में कई ऐसे क्रांतिकारी पुरुषों का जिक्र मिलता है, जिन्होंने अपनी संस्कृति, धर्म, आदर्शों और मूल्यों की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति दे दी। इनमें से एक सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह का नाम शामिल है। उनको 'हिंद की चादर' भी कहा जाता है। उन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी। आज ही के दिन यानी की 01 अप्रैल को गुरु तेग बहादुर का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु तेग बहादुर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
जन्म और शिक्षा
पंजाब के अमृतसर में 01 अप्रैल 1621 को गुरु तेग बहादुर का जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम नानकी और पिता गुरु हरगोबिंद सिखों के छठे हुरु थे। इनका बचपन में नाम त्यागमल था। त्यागमल गुरु हरगोबिंद साहिब के सबसे छोटे थे। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा अपने भाइयों से ली थी।
ऐसे बने त्यागमल से गुरु तेग बहादुर
एक बार पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ त्यागमल करतारपुर की लड़ाई के बाद किरतपुर जा रहे थे। उस दौरान उनकी उम्र महज 13 साल थी। मुगलों के फौज की एक टुकड़ी ने उनका पीछा करते हुए फगवाड़ा के पास पलाही गांव में अचानक हमला कर दिया। इस युद्ध के दौरान पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ मुगलों से गुरु तेग बहादुर ने भी दो-दो हाथ किए। छोटी सी उम्र में त्य़ागमल के साहस ने उन्हें तेग बहादुर बना दिया।
ऐसे बनें 9वें गुरु
गुरु तेग बहादुर की शादी साल 1632 में जालंधर के नजदीक करतारपुर में बीबी गुजरी से हुई। फिर वह अमृतसर के पास बकाला में रहने लगे। वहीं सिखों के 8वें गुरु हरकृष्ण साहिब जी के निधन के बाद साल 1665 में गुरु तेग बहादुर अमृतसर के गुरु की गद्दी पर बैठे और सिखों के 9वें गुरु बने। इसके बाद बाबा बकाला नगर में गुरु तेग बहादर जी ने कई वर्ष घोर तपस्या की।
मुगलों से किया विद्रोह
गुरु तेग बहादुर के दौरान मुगल शासक औरंगजेब था। वहीं औरंगजेब की छवि एक कट्टर मुगल बादशाह के रूप में थी। औरंगजेब के शासनकाल में हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। इसका शिकार सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडित हुए। तब श्री आनंदपुर साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण में कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल मदद के लिए पहुंचा। इस दौरान गुरु तेग बहादुर ने उनके धर्म की रक्षा का वचन दिया।
महीनों कैद में रहे गुरु तेग बहादुर
गुरु तेग बहादुर ने हिंदुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का खुले स्वर में विरोध किया था। साथ ही कश्मीरी पंडितों के धर्म की रक्षा का जिम्मा अपने सिर पर लिया। सिखों के 9वें गुरु के इस कदम से मुगल शासक औरंगजेब गुस्से में भर गया। उसने गुरु तेग बहादुर की चुनौती को स्वीकार किया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक गुरु तेग बहादुर पांच सिखों के साथ साल 1675 में आनंदपुर से दिल्ली के लिए रवाना हो गया। वहीं मुगल बादशाह औरंगजेब ने उनको रास्ते से ही पकड़ लिया और 3-4 महीने कैद में रखकर तमाम अत्याचार किए।
मृत्यु
औरंगजेब की कैद में गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। औरंगजेब ने उनके सामने तीन शर्तें रखीं। जिनमें कलमा पढ़कर मुस्लिम बनना, चमत्कार दिखाने या फिर मौत स्वीकार करने की शर्त ऱखी। लेकिन गुरु तेग बहादुर ने धर्म छोड़ने और चमत्कार दिखाने से इंकार कर दिया। गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब से कहा कि वह मृत्यु स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन अपने बाल नहीं कटवा सकते हैं। जिस पर 24 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया।