धर्म की रक्षा हेतु अपना शीश कुर्बान कर दिया था गुरु तेग बहादुर ने

By सुखी भारती | Apr 01, 2021

'हिन्द की चादर तेग बहादर' व 'हिन्द की ढाल' कह कर सम्बोधित किए जाने वाले विलक्षण शहीद जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु अपना शीश कुर्बान किया और इनके पुत्र श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए अपने माता श्री गुजरी जी, चार पुत्रों व अपने अनेकों शिष्यों को धर्म की रक्षा हितार्थ कुर्बान किया। श्री गुरु तेग बहादुर जी एक ऐसी हस्ती हैं जिनकी दरकार हर एक युग को रहती है। उन्होंने समस्त मानव जाति को प्रेरणा देते हुए अपने धर्म पर अडिग रहने का मार्ग प्रशस्त किया। आज से लगभग 347 वर्ष पूर्व घटित हुई सिख इतिहास की जिस महान घटना पर हम चिंतन−मनन कर रहे हैं। यह घटना श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी है, जो 1675 ई को घटित हुई थी। शहीद अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है गवाही देने वाला, खुदा के नाम पर अद्वितीय कुर्बानी की मिसाल कायम करने वाला। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने भी अपनी शहीदी से यही मिसाल कायम की। यह इतिहास की वह घटना थी जिस पर हाहकार भी हुआ और जय−जयकार भी हुई। अगर इसके कारणों पर दृष्टिपात किया जाए तो इसके मूल में जबरन किए जा रहे धर्मिक उथल−पुथल की तस्वीर सामने आती है। क्योंकि औरंगजेब हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाना चाहता था। एक और ज़बर जुल्म था और दूसरी तरफ अन्याय का शिकार हुए लोग व उनका रखवाला था। प्रभु खुद श्री गुरु तेग बहादुर जी के रुप में भारतीय लोगों के धर्म, संस्कृति की रक्षा कर रहा था। इसलिए श्री गुरु महाराज जी को 'तिलक जंझू का राखा' कहकर भी नवाज़ा जाता है।

इसे भी पढ़ें: देश की हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है शहीद भगत सिंह का बलिदान

श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाश 1 अप्रैल 1621 को श्री अमृतसर साहिब में, श्री गुरु हरगोबिंद जी के घर माता नानकी जी की कोख से हुआ। श्री गुरु तेग बहादुर जी महान तपस्वी, त्यागी, दिव्य महापुरुष, उदारचित्त, परोपकारी, देग−तेग के धनी, धर्म की चादर एवं पीडि़तों के रक्षक हैं। 


बाल्य अवस्था से ही गुरु जी समाधि में लीन रहते। जब माता नानकी जी ने इस सम्बन्ध में गुरुदेव के पास चिंता व्यक्त की तो गुरु साहिब कहने लगे−'तेग बहादुर ने शक्तिशाली गुरु बनना है एवं धर्म की रक्षा हेतु बलिदान देना है। वह विश्व के समक्ष एक अद्वितीय मिसाल पेश करेगा जिसे अनादि काल तक याद रखा जाएगा।'


उस समय औरंगज़ेब का ज़बर चरम पर था। वह अनैतिक तरीके से लोगों का जबरन धर्म परिवर्तित कर रहा था। या यों कह सकते हैं कि वह पूरी कट्टट्ठरता व निर्ममता से इस्लाम का प्रचार कर रहा था। वह इतना क्रूर था कि इस्लाम को प्रफुलित करने के लिए, निर्दयता पूर्वक खून की नदियां बहा रहा था। उसे सिर्फ मुसलमान चाहिए थे। ताकि वह हिन्दुस्तान की धरती पर निरंकुश राज्य कर सके। 


उधर श्री गुरु तेग बहादुर जी की लोकप्रियता दिन−ब−दिन बढ़ रही थी। लोग अपने धर्म संस्कृति की तरफ आकर्षित हो उनसे जुड़ते जा रहे थे। श्री गुरुदेव की बढ़ती प्रसिद्धि धर्म के ठेकेदारों की आँख की किरकिरी बन रही थी। लोग धर्म परिवर्तन करने के लिए राजी नहीं हो रहे थे व मुगलों द्वारा भारतीय जनता पर फेंके जा रहे सभी हथकंडे निष्फल हो रहे थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु जी को भांति−भांति से परेशान करना शुरु कर दिया। 


श्री गुरु नानक देव जी ने अपने उपदेशों द्वारा संसार को 'किरत करो, वंड छको' भाव ईमानदारी से अपना कर्म करते हुए, गरीब जरुरतमंदों की सहायता करते हुए इस संसार में अपना जीवन यापन करो। उन्होंने समाज में फैली अनेकों कुरीतियों का खत्म करके लोगों को धर्म मार्ग पर अग्रसर किया। अज्ञानता का ताप में झुलस रही मानवना को ज्ञान अमृत से सींचकर 4 उदासियां की एवं तत्पश्चात अपनी ज्योति श्री गुरु अंगद देव जी में स्थापित कर गए। और यह क्रम दशम गुरु तक निरंतर चलता रहा। इसी बीच श्री गुरु अर्जुन देव जी को जहाँगीर द्वारा शहीद कर दिया गया। क्योंकि वह हिन्दु धर्म का नामों निशान ही मिटाना चाहता था। 

इसे भी पढ़ें: स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिन्दुओं के उद्धार हेतु चलाया शुद्धि आंदोलन

श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी के पश्चात श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने देश−धर्म की रक्षा हेतु दो तलवारें मीरी−पीरी धरण की। उनकी मीरी की तलवार मुगलों के संग टकराई उन्होंने जालिमों को यह बता दिया कि अगर हमें शांति से नहीं रहने दिया जाएगा तो हमें तलवार उठाने में कोई समस्या नहीं। 


और इधर औरंगज़ेब भी एक ज़ाहिल व ज़ालिम हाकिम था। जिसकी विकृत मानसिकता का कोई पारावार न था। वह दंड, भेद किसी भी तरीके से हिन्दुओं को अपने पैरों तले रौंदना चाहता था। राजा बनते ही उसने मंदिरों व ठाकुर द्वारों को तोड़ना शुरु कर दिया। जिसके तहत मथुरा, बनारस व उदयपुर के 236 से भी ज्यादा मंदिर, अंबर के 66 एवं जयपुर, उज्जैन, विजयपुर एवं महाराष्ट्र के अनेकों मंदिर नेस्तोनाबूद कर दिए गए। दिल्ली में हिंदुओं के जमुना किनारे संस्कार पर रोक लगा दी गई। हिंदुओं का घोड़े व हाथी पर सवारी करना मना कर दिया गया। संक्षिप्त में कहे तो वह हिंदुओं के आत्म सम्मान पर कुठाराघात करना चाहता था। इन सबके पीछे उसका एक ही मकसद था कि हिन्दु तंग आकर इस्लाम स्वीकार कर लें। जब इतना सब कुछ करके भी उसकी दाल न गली तो उसके शैतानी दिमाग ने बहुत ही खुरापाती व दर्दनाक खाका तैयार किया। 


कश्मीर उस समय हिन्दुओं की सभ्यता संस्कृति का गढ़ माना जाता था। वहाँ के पंडित अपनी विद्वता के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे। इसलिए औरंगजे़ब के गंदे दिमाग ने चाल चलते हुए वहाँ के हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने के लिए उन पर अमानवीय अत्याचार शुरु कर दिए। जो भी इस्लाम स्वीकार करने से मना करता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता। इतने जुल्म के बाद भी उनकी सार लेने वाला कोई नहीं था। इसलिए कशमीरी पंडितों ने निर्णय किया कि इस समय श्री गुरु नानक देव जी की गद्दी पर आसीन श्री गुरु तेग बहादुर जी के पास जाकर धर्म की रक्षा हेतु पुकार करनी चाहिए। क्योंकि वही एक ऐसे महापुरुष हैं जो निष्पक्ष रुप से धर्म के पक्ष में हैं।

 

कश्मीरी पंडितों पर हो रहे अत्याचारों की दासतां सुनकर गुरुदेव का हृदय द्रवित हो उठा, और वे विचारमग्न हो गए। उन्हें इस प्रकार विचारों में खोया देखकर उनके पास ही बैठे बाल गोबिंद राय ने कहा−पिता जी आप इतने चिंतित क्यों हो गए ? तो श्री गुरु तेग बहादुर जी कहने लगे कि यह सब लोग औरंगजे़ब के अत्याचारों से बहुत त्रास्त हैं। और इन्हें उसके जुल्मों से फिर ही राहत मिल सकती है अगर कोई महापुरुष इनके धर्म को बचाने के लिए कुर्बानी दे देंगे। 


बालक गोबिंद ने गुरुदेव से कहा कि फिर आप से बड़ा महापुरुष, इस धरा पर और कौन हो सकता है? गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों को आश्वस्त करते हुए औरंगजे़ब को संदेश भेज दिया कि वे उससे धर्म परिवर्तन के संदर्भ में बात करना चाहते हैं। उसने जल्द ही अपने दूत श्री आनंदपुर भेज दिए एवं गुरु जी को दिल्ली आने के लिए कहा। गुरुदेव के साथ उनके पाँच शिष्य भाई सती दास, मति दास, भाई दयाला जी, ऊधे जी एवं गुरदित्ता जी भी गए। दिल्ली पहुँचने पर इन सबके समक्ष भी औरंगजे़ब ने इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा कि अगर आप इस्लाम स्वीकार कर लेंगे तो मैं एवं मेरे सभी अहलकार आपके मुरीद बन जाएँगे। नहीं तो आप सब की हत्या कर दी जाएगी। गुरुदेव कहने लगे−'मृत्यु और जन्म उस प्रभु के हाथ में हैं। और उन्हें इसका कोई भय नहीं। यह शरीर नशवर है एवं एक न एक दिन इसका अंत होना ही है।' 


फिर औरंगज़ेब ने कहा कि अगर वह अपनी दैवी शक्ति का प्रदर्शन कर देंगे तो भी उन्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जाएगा। गुरुदेव ने कहा−'अपने खेल का प्रदर्शन तो मदारी करते हैं।' उनका जवाब सुनकर औरंगज़ेब ने जुल्म की सारी हदें पार कर दी। जिसे देखकर काल कोठरी की दीवारें भी हाहाकार कर उठीं। उसने गुरुदेव के लिए एक नोकीली सलाखों वाला पिंजरा तैयार किया। जिसके नुकीले सिरे गुरुदेव के पावन दिव्य शरीर को जख्मी कर देते। यहीं पर औरंगज़ेब की पशुता की हद नहीं हुई। इसके बाद वह गुरुदेव के जख्मों पर नमक मिर्च छिड़कने को कहता। लेकिन गुरुदेव इतने अमानवीय अत्याचार सहने के बावजूद भी अडोल बने रहे। इस प्रकार औरंगजे़ब के काले कारनामों पर रोक लगाने के लिए गुरुदेव ने अपना शीश कुर्बान कर दिया एवं हिन्द की चादर बन गए। जिनके चरणों में यह संसार सदा नतमस्तक होता रहेगा।


- सुखी भारती

प्रमुख खबरें

आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती पर दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलकर उनके नाम पर रखा गया

Jharkhand Foundation Day 2024: 15 नवंबर को मनाया जाता है झारखंड स्थापना दिवस, आदिवासियों की मांग पर हुआ था राज्य का गठन

IND vs SA: जोहानिसबर्ग में साउथ अफ्रीका को हराकर सीरीज जीतना चाहेगा भारत, जानें पिच और मौसम रिपोर्ट

Maha Kumbh Mela 2025 | भारत की सांस्कृतिक पुनर्स्थापना का ‘महाकुंभ’