गुरु दत्त ने जिद्द में आकर बनाई थी फिल्म 'कागज़ के फूल', फिर चुकानी पड़ी इतनी बड़ी कीमत

By रेनू तिवारी | Jul 09, 2020

साल के सातवें महीने का नौवां दिन इतिहास के पन्नों में बहुत सी अच्छी बुरी घटनाओं के साथ दर्ज है। इनमें कुछ भारतीय सिनेमा से जुड़ी हैं। दरअसल 1925 में इसी दिन वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण उर्फ गुरु दत्त का जन्म हुआ था, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अभिनय और निर्देशन दोनों क्षेत्रों में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

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गुरूदत्त की प्रतिभा का अंदाजा लगाने के लिए यह तथ्य अपने आप में पर्याप्त है कि टाइम पत्रिका ने गुरूदत्त की फिल्मों प्यासा और कागज़ के फूल को दुनिया की सौ बेहतरीन फ़िल्मों में जगह दी थी। चौदहवीं का चाँद तथा साहब बीबी और ग़ुलाम को भी उनकी बेहतरीन फिल्मों में रखा जाता है।  वैसे से  गुरु दत्त ने तमाम सुपरहिट फिल्मों में बतौर निर्देशक और एक्टर काम किया लेकिन फिल्म 'कागज़ के फूल' गुरु दत्त की जिंदगी की मानों जिद में बनाई गयी फिल्म हो। अब आखिर इस फिल्म से गुरु दत्त का ऐसा क्या रिश्ता था जिसके उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी। 

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 कागज़ का फूल बनीं गुरु दत्त के निर्देशन का आखिरी फिल्म

कागज़ के फूल 1959 की हिंदी फ़िल्म है, जिसका निर्माण और निर्देशन गुरुदत्त ने किया, इस फिल्म में गुरु दत्त ने मुख्य भूमिका भी निभाई। इस फिल्म को CinemaScope में पहली भारतीय फिल्म माना जाता है और दत्त की निर्देशक के रूप में अंतिम फिल्म। फिल्म अपने समय में एक बॉक्स ऑफिस ज्यादा चली नहीं थी। एक तरह से यह कह सकते हैं कि फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी थी लेकिन बाद में 1980 के दशक में फिल्म को विश्व सिनेमा के पंथ क्लासिक के रूप में माना गया। फिल्म का संगीत एस. डी. बर्मन द्वारा रचा गया था और गीत कैफ़ी आज़मी और शैलेन्द्र द्वारा लिखे गए थे (एक गीत "हम तुम्हारे हैं कौन" के लिए), गीता दत्त द्वारा गाए गए "वक़्त ने किया क्या हंसी  सितम" जैसे हिट गाने दिए। कई लोग इस फिल्म को अपने समय से बहुत आगे मानते हैं। 2002 के दृष्टि और ध्वनि समीक्षकों और निर्देशकों के चुनाव में, कागज़ के फूल को सभी समय की सबसे बड़ी फिल्मों में # 160 पर स्थान दिया गया था।

 

फिल्म से जुड़ा किस्सा 

जब गुरु दत्त फिल्म का बनाने जा रहे थे तो कई लोगों ने गुरु को रोका था कि वह यह फिल्म न बनाए। इस फिल्म को लेकर कई बड़े सिनेमा जगत के लोगों ने गुरू से कहा था  कि इस तरह की कहानियां दर्शकों को पसंद नहीं आती। फिल्म को लेकर लेकिन गुरु दत्त की एक अलग तरह की जिद थी। गुरु ने यह फिल्म बनाई और फिल्म बॉक्स  पर पिट गयी। इसके बाद ही गुरु दत्त ने निर्देशन से सन्यास ले लिया। कहा जाता है कि गुरु दत्त ने इस फिल्म में अपनी कहानी को दिखाया था। इस फिल्म में गुरु दत्त ने अपने और वहीदा रहमान की प्रेम कहानी को पर्दे पर उतारा था। फिल्म में वहीदा रहमान का लीड रोल था। 

 

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