जीएसटी काउंसिल और जीएसटीएन जनवरी 2019 से नया रिटर्न सिस्टम ऑनलाइन करने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं, जबकि मौजूदा फॉर्म जीएसटीआर- वन और थ्री बी मार्च 2019 तक जारी रखने के उनके फैसले से एक बात साफ हो गई है कि छोटे कारोबारियों को तिमाही रिटर्न की सुविधा किसी भी सूरत में अब अगले वित्त वर्ष से ही मिल पाएगी। बहरहाल, निराश करने वाली यह खबर ट्रेड-इंडस्ट्री में राहत के तौर पर भी देखी जा रही है, क्योंकि नए रिटर्न के जटिल फॉर्मेट को लेकर भी बहुत सारे लोग चिंतित थे, जिससे सरकार को भी काफी नकारात्मक फीडबैक मिला है। यही वजह है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले किसी भी बाजारू उथल-पुथल से बचने के लिए सरकार ने नया सिस्टम टालने की रणनीति अपनाई है।
गौरतलब है कि जीएसटीआर- वन और थ्री बी के तहत केवल आउटवार्ड सप्लाई भरनी होती है। लिहाजा, जब तक जीएसटीआर- टू और थ्री लंबित है तब तक न तो असेसमेंट हो सकता है और न ही किसी को डिफॉल्ट नोटिस भेजा जा सकता है। ऐसे में मासिक रिटर्न दाखिल करने वाले कई छोटे-मोटे कारोबारी भी फिलहाल इस अधूरी व्यवस्था में राहत महसूस कर रहे हैं। क्योंकि नए रिटर्न फॉर्मेट में सिवाय रिटर्न पीरियड के कुछ भी राहत भरा नहीं था। इसलिए कई मायनों में यह मौजूदा सिस्टम से भी जटिल प्रतीत हो रहा था। क्योंकि आपूर्तिकर्ता की ओर से रियल टाइम बेसिस पर इनवॉइस अपलोड करने का प्रावधान बहुत लोगों को खटक रहा था, जिससे बड़े पैमाने पर मिसमैचिंग और क्रेडिट लटकने की आशंका थी।
यही वजह है कि बड़ी कंपनियां छोटे सप्लायर्स पर रेगुलर इनवॉइस अपलोड करने के लिए दबाव डाल सकती थीं। हालांकि सरकार फिलहाल कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। क्योंकि समरी रिटर्न और जीएसटीआर-वन जारी रहने का मतलब है कि सरकार मार्च 2019 तक आपकी हर एंट्री पर भरोसा करेगी और इनपुट टैक्स क्रेडिट भी देती रहेगी। लेकिन उसके बाद पुरानी मिसमैचिंग जब ट्रेस होनी शुरू होगी तो भविष्य में कारोबारियों के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है।
दरअसल, थ्री बी में स्वघोषित इनपुट और आउटपुट टैक्स के आंकड़े होते हैं जिसके आधार पर ही आप टैक्स जमा कराते हैं। यही डिटेल्स आपको टैक्स चालान में भी डालनी होती है। ऐसे में थ्री बी एक गैर-जरूरी फॉर्म बन चुका है। क्योंकि केवल टैक्स चालान से भी काम चलाया जा सकता है। वास्तव में, जीएसटीआर- टू और थ्री को सिर्फ लंबित रखा गया है। इसलिए यह तय नहीं है कि उन्हें कभी लागू करके मौजूदा आंकड़ों को वेरिफाई किया जाएगा या फिर सीधे नया सिस्टम लागू हो जाएगा। इससे असमंजस के हालात हैं। बहरहाल ट्रेड-इंडस्ट्री की ओर से भी यह दबाव बनाया जा रहा था कि नया सिस्टम आते ही सभी को अपना-अपना ईआरपी सिस्टम अपडेट कराना होगा, जिससे लागत बढ़ेगी।
# आगे भी जारी रहेगी जीएसटी दरों में वाजिब कटौती
मसलन, सरकार कारोबारियों को आश्वस्त करना चाह रही है कि करीब एक चौथाई सामान और सेवाओं को हायर रेट स्लैब से निकालने के बाद भी वह जीएसटी दरों में तर्कसंगत कटौती करती रहेगी। ऐसा इसलिए कि माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) के लिए जीएसटी आसान करने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है और अगले छह महीनों में छोटे-मोटे कारोबारी भी करारोपण अनुपालन में काफी राहत महसूस करने लगेंगे।
आपको पता होना चाहिए कि कुल करदाता आधार में छोटे कारोबारियों की तादाद 90 प्रतिशत से ज्यादा है और सरलीकरण की प्रक्रिया में सरकार उन्हें सबसे ज्यादा तरजीह दे रही है। तभी तो बीते एक साल में सरकार को जितने भी सुझाव मिले और खुद उसने जो भी दिक्कतें महसूस कीं, उसके आधार पर इतने संशोधन और समाधान हो चुके हैं जिसकी उम्मीद उद्योग जगत को भी नहीं थी। कहने का तात्पर्य यह कि जहां भी टैक्स दरें ज्यादा थीं, उनमें कटौती हुई है। अब तक करीब 25 प्रतिशत कटौती हो चुकी है, लेकिन अब भी अगर कहीं अतार्किक दरें सामने आएंगी तो उन्हें घटाया जाएगा।
यही नहीं, सरकार ने एमएसएमई के लिए सिस्टम और सरल बनाने के लिए सभी एसोसिएशंस से सुझाव सौंपने की अपील की है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि छोटे कारोबारियों के लिए टैक्स अनुपालन आसान करने के लिए कई स्तरों पर काम हो रहा है जिसका असर अगले छह महीनों में साफ दिखने लगेंगे। हालांकि महसूस किया जा रहा है कि छोटे कारोबारियों को कई स्तरों पर चुनौतियां पेश आ रही हैं जबकि रिफंड के लिए उन्होंने 'नजराना' भी देना पड़ रहा है। इसलिए लोग नीति आयोग में व्यापार सेल गठित करने की मांग कर रहे हैं।
अब भले ही सरकार यह कहे कि एक्सल लोड लिमिट में 25 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी से छोटे ट्रांसपोर्टर्स को बड़ी राहत मिलेगी और अगले कुछ महीनों में सरकार सड़क के आधारभूत संरचना में बड़े निवेश करेगी। क्योंकि मोटर व्हीकल एक्ट से लेकर टोल सिस्टम में व्यापक बदलाव हो रहे हैं जिनसे कारोबार की लागत घटेगी। लेकिन बहुत से कारोबारी ऐसे भी हैं जो ई-वे बिल को और तर्कसंगत बनाने की मांग कर रहे हैं। क्योंकि उनका मानना है कि रिटर्न के लिए टर्नओवर लिमिट के आधार पर ही इसमें छोटे कारोबारियों के लिए रियायत दी जानी चाहिए। साथ ही, डिजिटल ट्रांजैक्शन के लिए पेमेंट टेक्नोलॉजी का दायरा बढ़ाने के साथ साथ टैक्स सब्सिडी भी दी जानी चाहिए। यही नहीं, ट्रेड और कमोडिटी वाइज सभी सेक्टरों से जो सुझाव मंगाए गए हैं, उन्हें भी जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में रखा जाए और उचित फैसला किया जाए।
# तिमाही डीलर्स की चूक बढ़ा सकती है मंथली की टेंशन
पिछले दिनों जारी जीएसटी रिटर्न का नया फॉर्मेट भी करदाताओं को पसंद नहीं आ रहा है। खासकर तिमाही और मंथली डीलर्स के बीच मिसिंग इनवॉइसेज के चलते पैदा होने वाली दिक्कतों पर समग्र चिंता जताई जा रही है। समझा जा रहा है कि दिक्कतें बढ़ीं तो बड़े डीलर 5 करोड़ से कम टर्नओवर वाले तिमाही सेलर्स से माल खरीदने से बचना चाहेंगे। हालांकि नए सिस्टम में रिटर्न रिवाइज करने की छूट तो दी गई है, लेकिन 10 प्रतिशत से ज्यादा संशोधनों पर भारी जुर्माने का प्रावधान भी खटक रहा है।
दिल्ली के एक कारोबारी की मानें तो नया फॉर्मेट छोटे डीलर्स के मामले में इस अनुमान पर आधारित है कि डीलर इनवॉइस मिस नहीं करेंगे। लेकिन जहां 93 प्रतिशत स्मॉल डीलर हैं और 30 प्रतिशत समरी रिटर्न थ्री बी भी नहीं भर रहे हैं, वहां इससे इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि 5 करोड़ तक टर्नओवर वालों को तिमाही रिटर्न की छूट है। लेकिन अगर वे बड़े डीलर्स को सामान बेच रहे हैं तो उनसे उम्मीद जताई जा रही है कि वे लगातार इनवॉइसेज अपलोड करेंगे और 10 तारीख तक अपलोडेड बिल के आधार पर मंथली रिटर्न वाले खरीददार को क्रेडिट मिल जाएगा। चूंकि रेगुलर इनवॉइस अपलोड करने को वॉलंटरी रखा गया है, ऐसे में यह गारंटीड तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि हर तिमाही डीलर ऐसा करेगा।
वाकई इसमें यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर स्मॉल सप्लायर की ओर से इनवॉइस अपलोड में देरी होती है तो बायर को क्रेडिट के लिए दो महीने तक का समय मिलेगा। इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि अगर सेलर इस अवधि के बाद भी बिल अपलोड नहीं करता है या फिर तिमाही रिटर्न में भी देरी करता है तो फिर बायर के क्रेडिट का क्या होगा? क्योंकि ऐसी स्थिति में मंथली बायर, तिमाही सेलर्स से खरीदारी करना नहीं चाहेंगे। लिहाजा, सरकार को इसे और फूलप्रूफ बनाने की जरूरत है।
सवाल है कि छोटे डीलर्स के लिए तिमाही रिटर्न में छूट की सीमा 5 करोड़ टर्नओवर रखी गई है, जबकि कंपोजिशन डीलर्स के लिए इसे मात्र 1.5 करोड़ तक ही सीमित रखा गया है। ऐसे में इस स्कीम की प्रासंगिकता घट जाएगी। क्योंकि तिमाही रिटर्न वालों को मंथली टैक्स भरना होगा, जबकि मांग ये आ रही है कि उन्हें तिमाही टैक्स की भी छूट भी मिले। अतः सरकार को चाहिए कि नए सिस्टम को कम से कम छह महीने के यूटिलिटी ट्रायल के लिए पब्लिक डोमेन में रखे और उचित प्रतिक्रिया के अनुरूप यथोचित बदलाव करे।
कहना न होगा कि नए फॉर्मेट में रिटर्न में संशोधन करने की छूट तो दी गई है, लेकिन 10 प्रतिशत से ज्यादा संशोधनों पर भारी पेनाल्टी का भी प्रावधान किया गया है जिसका करदाता विरोध कर रहे हैं। यही नहीं, लगे हाथ यह मांग भी की जा रही है कि वित्त वर्ष 2017-18 में भरे गए रिटर्न्स को भी रिवाइज करने की छूट मिले, जिससे सरकार असहमत नजर आ रही है।
# अब छोटे कारोबारी भरेंगे सहज और सुगम तिमाही रिटर्न
केंद्र सरकार ने जीएसटी रिटर्न के सरलीकरण की गाइडलाइंस और नया रिटर्न फोर्मेट जारी कर दिया है जिसके तहत 5 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाले छोटे कारोबारियों को तिमाही रिटर्न और मंथली टैक्स दोनों भरना होगा। जबकि कंपोजिशन और नील टैक्स डीलर्स के साथ-साथ इनपुट सर्विस डिस्ट्रिब्यूटर्स को भी तिमाही रिटर्न भरने की छूट होगी। लिहाजा, पांच करोड़ से ऊपर टर्नओवर वालों को मंथली रिटर्न भी भरना होगा।
बता दें कि सरकार ने पहली बार प्रोफाइल बेस्ड रिटर्न फॉर्मेट तैयार किया है जिसके मुताबिक जो कारोबारी एक खास तरह का कारोबार करते हैं अथवा किसी विशेष कमोडिटीज में डील करते हैं तो उनके लिए तीन-चार पूर्व निर्धारित प्रोफाइल तय किए गए हैं जिसमें खुद को रखने के बाद कारोबारी उसी प्रोफाइल फॉर्मेट में रिटर्न भरेंगे। इससे उन्हें रिटर्न फाइलिंग में बेहद आसानी होगी और कंप्लायंस कॉस्ट भी घटेगी।
कहने का तातपर्य यह कि पांच करोड़ से नीचे के टर्नओवर में भी बी2सी और बी2बी कारोबार करने वाले डीलर्स के लिए रिटर्न फॉर्म के दो विकल्प होंगे। बी2सी कारोबारियों को 'सहज' और बी2बी व बी2सी दोनों करने वालों को 'सुगम' रिटर्न फॉर्म के तहत सिर्फ हर तिमाही अपने बिक्री की डीटेल्स देनी होंगी। यही नहीं, छोटे कारोबारियों को लगातार अपने इनवॉइसेज अपलोड करने की छूट होगी। अब हर महीने की 10 तारीख तक अपलोड किए गए इनवॉइस अगले महीने रेसिपिएंट के इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए उपलब्ध होंगे। जबकि एचएसएन कोड केवल चार डिजिट में देना होगा। इससे ज्यादा के कोड तिमाही रिटर्न में दर्ज कराए जा सकते हैं। टर्नओवर की गणना पिछले वित्त वर्ष में दर्ज कारोबारी आंकड़े के आधार पर होगी।
बहरहाल, तिमाही रिटर्न को वैकल्पिक रखा गया है और छोटे मोटे व्यापारियों को भी यह छूट होगी कि वे चाहे तो मंथली रिटर्न भर सकते हैं। जबकि बड़े कारोबारियों के मंथली रिटर्न फॉर्मेट में भी कई बदलाव किए गए हैं और इनवॉइस अपलोडिंग, इनपुट टैक्स क्रेडिट में भी कुछ सहूलियतें प्रदान की गई हैं। फिर भी, रिटर्न फॉर्म के फॉर्मैट्स पर ट्रेड-इंडस्ट्री से एक महीने के भीतर राय मांगी गई है। इसके बाद इसे सिस्टम सॉफ्टवेयर्स के लिए औपचारिक तौर पर जीएसटीएन के हवाले कर दिया जाएगा।
-कमलेश पांडे