By अनन्या मिश्रा | Dec 25, 2023
भारत के पहले सिख राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह नेहरु व गाँधी परिवार के सबसे बड़े समर्थक माने जाते थे। वह देश के सातवें राष्ट्रपति थे। हांलाकि गांधी और नेहरु परिवार के समर्थक होने के कारण उनकी कई बार आलोचना भी होती थी। वहीं देश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार से अच्छे संबंधों के चलते वह बेहद कम समय में करियर के शिखर पर पहुंच गए थे। आज ही के दिन यानी की 25 दिसंबर को एक कार एक्सीडेंट में ज्ञानी जैल सिंह का निधन हो गया था। हांलाकि उनका राष्ट्रपति का कार्यकाल काफी चुनौतियों भरा रहा। लेकिन वह अपनी सूझबूझ से सारी समस्याओं पर विजय पाते गए। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर ज्ञानी जैल सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पंजाब के फरीदकोट जिले के संध्वान गांव में 5 मई 1916 को ज्ञानी जैल सिंह का जन्म हुआ था। उनका असली नाम जरनैल सिंह था। उनके पिता का नाम किशन सिंह था। बेहद छोटी उम्र में इनके सिर से मां का साया छिन गया। जिसके बाद ज्ञानी जैल सिंह की मौसी ने उनका लालन-पालन किया। वह बचपन में अपने पिता के साथ जानवर चराने, फसल काटने, खेती-किसानी में हाथ बंटाया करते थे।
उन्होंने शिक्षा में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। ऐसे में वह ज्यादा शिक्षा नहीं हासिल कर सके। हांलाकि उनको संगीत का काफी शौक था। इसलिए वह हारमोनियम सीखते थे। महज 15 साल की उम्र में ज्ञानी जैल सिंह की शादी हो गई थी। वह बचपन से क्रांतिकारी स्वभाव के थे। इसी कारण वह महज 15 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ रहे अकाली दल के साथ जुड़ गए।
पांच साल की कैद
देश को स्वराज दिलाने और अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए ज्ञानी जैल सिंह आंदोलनों में भाग लेने लगे। साल 1938 में 'प्रजा मंडल' पार्टी का गठन किया गया। वहीं अंग्रेजों ने ज्ञानी जैल सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस दौरान उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई। प्राप्त जानकारी के मुताबिक वह पंजाब में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में नौकरी भी करते थे। लेकिन उनका नौकरी में मन नहीं लगा। एक बार उन्होंने फरीदकोट में तिरंगा फहराने के बारे में सोचा, लेकिन उस दौरान स्थानीय अफसरों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। जिसके बाद उन्होंने इस विषय पर पंडित नेहरु को पत्र लिखा। ज्ञानी जैल सिंह की इस बात से पं. नेहरु काफी प्रभावित हुए और उन्हें पार्टी से जुड़ने का मौका दिया। तब उन्होंने प्रजा मंडल पार्टी का साथ छोड़ दिया और पं. नेहरु के साथ जुड़कर वह पंजाब में राजनीति करने लगे।
पंजाब के सीएम
देश की आजादी के बाद उन्होंने पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। वहीं साल 1951 में वह कृषिमंत्री बने। इसके बाद साल 1956 से लेकर 1962 तक वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वहीं साल 1962 में ज्ञानी जैल सिंह पंजाब राज्य के प्रधानमंत्री बने। तो वहीं साल 1982 में उन्होंने देश के सातवें और सिख समुदाय के पहले राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली।
हांलाकि ज्ञानी जैल सिंह का राष्ट्रपति कार्यकाल काफी चुनौतियों से भरा रहा। क्योंकि इनके कार्यकाल में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था। जिसका सिख समुदाय ने कड़ा विरोध किया था। इस दौरान ज्ञानी जैल सिंह से भी सिख समुदाय काफी ज्यादा नाराज हो गया था। वहीं कांग्रेस पार्टी को सिख समुदाय की नाराजगी के चलते अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी। इसके बाद ज्ञानी जैल सिंह के कार्यकाल में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या और सिख विरोधी दंगे भी हुए।
मौत
ज्ञानी जैल सिंह एक धार्मिक व्यक्ति थे। राष्ट्रपति पद पर रहने के बाद भी वह अगर कभी पंजाब के आसपास होते, तो आनंदपुर साहिब जाना नहीं भूलते थे। उसी समय साल 1994 में तख्त श्री केशगढ़ साहिब जाते समय उनका एक्सीडेंट हो गया। जिसके बाद उनको फौरन इलाज के लिए पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया। लेकिन 25 दिसंबर 1994 को उनका निधन हो गया और उन्होंने इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया।