By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 22, 2019
औरंगाबाद। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने पांच साल पहले अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का मौका गंवा दिया। प्रमुख अर्थशास्त्री एच एम देसारदा ने यह राय जताई है। उन्होंने कहा कि पांच साल पहले कच्चे तेल के दाम काफी निचले स्तर पर थे लेकिन सरकार स्थिति का लाभ लेने से चूक गई। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर पांच प्रतिशत पर आ गई है जो इसका छह साल का निचला स्तर है। यह लगातार पांचवीं तिमाही रही जबकि जीडीपी की वृद्धि दर सुस्त रही है। घरेलू मांग नीचे आई है। निजी उपभोग कम हुआ है जबकि निवेश भी सुस्त हुआ है।
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महाराष्ट्र के महात्मा गांधी मिशन परिसर में शनिवार को ‘मौजूदा आर्थिक गिरावट-प्रभाव और उपाय’विषय पर व्याख्यान में देसारदा ने कहा कि 2013 में कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति बैरल थे। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई। उस समय सरकार ने पेट्रोल और डीजल की मांग को पूरा करने के लिए कच्चे तेल के आयात पर भारी राशि खर्च की। महाराष्ट्र राज्य योजना बोर्ड के पूर्व सदस्य देसारदा ने कहा कि सरकार को इस वित्तीय लाभ का इस्तेमाल रोजगार गारंटी योजना, जल संसाधन विकास, बाढ़ और सूखा नियंत्रण पर करना चाहिए था। लेकिन सरकार इस मौके का लाभ नहीं उठा पाई।
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देसारदा ने कहा कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने सड़कों के निर्माण पर भारी राशि खर्च की। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) पर तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज का बोझ है और उसे इस पर 25,000 करोड़ रुपये का ब्याज अदा करना पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि टोल टैक्स से 7,000 करोड़ रुपये से अधिक प्राप्त नहीं हो रहे हैं। देसारदा ने कहा कि खर्च और मुनाफे के असंतुलन को दूर किया जाना चाहिए। सरकार को अब से अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने देश की बड़ी आबादी का जीवनस्तर सुधारने पर ध्यान नहीं दिया। उसका ध्यान सिर्फ चुनाव जीतने पर रहा। सरकार लोगों को भावनात्मक मुद्दों से जोड़ना चाहती है लेकिन यह लंबे समय तक नहीं चलेगा।
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देसारदा ने कहा कि सरकार एक तरह दावा कर रही है कि वह जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही है दूसरी ओर वह रसायन वाले उर्वरकों को बढ़ावा देने में जुटी है। उन्होंने कहा कि अब सरकार औद्योगिक सुस्ती को दूर करने के लिए कर घटा रही है। दुर्भाग्य की बात है कि अब भी सरकार इस सुस्ती को निवेश, उत्पादकता और निर्यात बढ़ाने के अवसर के रूप में नहीं देख रही है।