By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 12, 2020
नयी दिल्ली। कांग्रेस ने कृषि उपज के क्रय-विक्रय से संबंधित तीन अध्यादेशों का विरोध करते हुए शनिवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इनके माध्यम से देश में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ बना रही है तथा यह सब खेती-किसानी को बड़े उद्योगपतियों के हाथों गिरवी रखने का षड्यंत्र है। पार्टी महासचिव एवं मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह भी कहा कि कांग्रेस इन अध्यादेशों का सड़क पर पुरजोर विरोध करने के साथ ही मानसून सत्र के दौरान संसद में विरोधी करेगी और इस मुद्दे पर दूसरे विपक्षी दलों को भी साथ लेने का प्रयास करेगी। हाल ही में केंद्र सरकार ने तीन अध्यादेश- कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) अध्यादेश, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश जारी किए हैं। कई किसान संगठन इनका विरोध कर रहे हैं।
सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मोदी सरकार ने खेत-खलिहान-अनाज मंडियों पर तीन अध्यादेशों का क्रूर प्रहार किया है। ये ‘काले कानून’ देश में खेती व करोड़ों किसान-मज़दूर-आढ़तियों को खत्म करने की साजिश के दस्तावेज हैं। खेती और किसानी को पूंजीपतियों के हाथ गिरवी रखने का यह सोचा-समझा षडयंत्र है।’’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘मोदी सरकार पूंजीपति मित्रों के जरिए ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ बना रही है। किसान को ‘लागत+50 प्रतिशत मुनाफे’ का सपना दिखा कर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन अध्यादेशों के माध्यम से खेती के खात्मे का पूरा उपन्यास ही लिख दिया। अन्नदाता किसान के वोट से जन्मी मोदी सरकार आज किसानों के लिए भस्मासुर साबित हुई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह सरकार साल 2014 में सत्ता में आते ही किसानों के भूमि मुआवज़ा कानून को खत्म करने का अध्यादेश लाई थी। तब भी कांग्रेस व किसानों के विरोध से मोदी जी ने मुंह की खाई थी और इस बार भी मुंह की खाएंगे।’’ सुरजेवाला ने दावा किया कि अनाज मंडी-सब्जी मंडी को खत्म करने से ‘कृषि उपज खरीद व्यवस्था’ पूरी तरह नष्ट हो जाएगी और ऐसे में किसानों को न तो ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (एमएसपी) मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। ‘‘ इसका जीता जागता उदाहरण बिहार है जहां साल 2006 में अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बदतर है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगी, तो फिर मूल्य निर्धारण, वजन व कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी। स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा।’’ कांग्रेस महासचिव का कहना था कि मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी।
सुरजेवाला ने दावा किया, ‘‘ कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में ‘शांता कुमार कमेटी’ की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से 1 लाख करोड़ रुपए की बचत हो। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।’’ उनके मुताबिक, ‘‘अध्यादेशों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बंटाईदारों के अधिकारों के संरक्षण का। ऐसा लगता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। ’’ कांग्रेस नेता ने कहा कि महामारी की आड़ में ‘किसानों की आपदा’ को मुट्ठीभर ‘पूंजीपतियों के अवसर’ में बदलने की मोदी सरकार की साजिश को देश का अन्नदाता किसान व मजदूर कभी नहीं भूलेगा। भाजपा को इस किसान विरोधी दुष्कृत्य के परिणाम भुगतने पड़ेंगे।