रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर सरकार को और ध्यान देना होगा

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | May 12, 2022

कोविड-19 के बाद पटरी से उतरी देश की आर्थिक व्यवस्था में निरंतर सुधार देखने को मिल रहा है पर जीडीपी की तुलना में अभी भी रोजगार के अवसर कम ही बढ़ रहे हैं। आज की अर्थव्यवस्था में सर्विस सेक्टर की प्रमुख भूमिका हो गई है और अब यह मानने में कोई संकोच नहीं किया जा सकता कि सर्विस सेक्टर लगभग पटरी पर आ गया है। देश में सर्वाधिक रोजगार के अवसर भी कृषि, एमएसएमई सेक्टर के बाद सर्विस सेक्टर में ही उपलब्ध होते हैं और इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना में सबसे अधिक प्रभावित सर्विस सेक्टर ही हुआ है। सब कुछ बंद हो जाने से रोजगार के अवसर प्रभावित हुए और हुआ यह कि या तो रोजगार ही चला गया या फिर वेतन आदि में कटौती हो गई। इससे लोगों में निराशा आई पर ज्यों ज्यों हालात सामान्य होने लगे हैं यह माना जाने लगा है कि अर्थव्यवस्था में तेजी के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। कोविड के कारण बड़ी संख्या में असंगठित श्रमिकों का गांवों की ओर पलायन हुआ है और कोरोना की नित नई लहरों की आशंकाओं के चलते अब उतनी संख्या में श्रमिक शहरों की ओर नहीं गए हैं जितनी संख्या में शहरों से गांवों की ओर पलायन रहा है। ऐसे में अब नई चुनौती गांवों में रोजगार के अवसर विकसित करने की हो जाती है। हालांकि मनरेगा के माध्यम से लोगों को निश्चित अवधि का रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं पर इसे यदि उत्पादकता से जोड़ दिया जाए तो परिणाम अधिक सकारात्मक हो सकते हैं।

इसे भी पढ़ें: आपात ऋण गारंटी योजना व्यवसाइयों एवं एमएसएमई क्षेत्र के लिए सिद्ध हुई हैं एक वरदान

दरअसल कोरोना का डर अभी भी लोगों में बना हुआ है। यह दूसरी बात है कि कोरोना के प्रोटोकॉल को पूरी तरह से नकार दिया गया है और अब तो भूले भटके ही लोग मास्क लगाए हुए दिखाई देते हैं। हालांकि जिस तरह के हालात चीन में इन दिनों चल रहे हैं और करोड़ों चीनी नागरिक लॉकडाउन भुगत रहे हैं उसे देखते हुए डरना भी जरूरी हो जाता है। पर सवाल यही है कि दो जून की रोटी का बंदोबस्त करना भी जरूरी है। रोजगार की सच्ची तस्वीर तो यह है कि बड़े उद्योगों में बहुत कम लोगों को रोजगार के बावजूद बेहतर वेतन और सुविधाएं मिलती हैं तो दूसरी और एमएसएमई सेक्टर या सर्विस सेक्टर में रोजगार के अवसर कम होने के साथ ही वेतन भत्ते भी प्रभावित हुए हैं। सर्विस सेक्टर में भी हालात ऐसे ही हैं। ऐसे में इस तरह के उपाय खोजने होंगे कि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ें और लोगों को बेहतर रोजगार भी मिले, मगर इसके साथ ही कार्मिक के मनोविज्ञान को भी समझना होगा। 


कोरोना के बाद एक नई सोच विकसित हुई है जो चिंतनीय होने के साथ ही आने वाले समय के लिए गंभीर चुनौती भी है। हो यह रहा है कि कोरोना के बाद सेवा प्रदाताओं ने अपने सालों से सेवा दे रहे कार्मिकों के लिए इस तरह के हालात पैदा किए हैं और किए जा रहे हैं ताकि वे वहां नौकरी नहीं कर सकें। इसके पीछे बढ़ती बेरोजगारों की फौज का होना है। दरअसल पुराने कर्मचारी को अधिक पैसा देना पड़ता है जबकि नए कर्मचारी को या तो सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से रखा जा सकेगा या फिर कम वेतन में काम करने को तैयार होने से कम पैसा देना पड़ेगा। पर वह दिन दूर नहीं जब इसके साइड इफेक्ट सामने आने लगेंगे। पहला तो यह कि कर्मचारी का जो कमिटमेंट होता है वह नहीं मिल पाएगा। नया या तो सर्विस प्रोवाइडर के प्रति निष्ठावान होगा या फिर उसे अंदर से यह भय सताता रहेगा कि जैसा पहले वालों के साथ हुआ है वैसा उसके साथ भी हो सकता है ऐसे में लॉयल्टी की संभावनाएं लगभग नगण्य ही देखने को मिलेंगी। यह अपने आप में ऐसा संकेत है जो आगे चलकर व्यवस्था को चरमराने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इसलिए अभी से भावी संकेतों को समझना होगा।

इसे भी पढ़ें: अर्थव्यवस्था की प्रगति की राह में बाधा है कच्चे तेलों का ज्यादा आयात

दूसरा यह कि कोरोना ने सबसे अधिक व लंबे समय तक प्रभावित किया है शिक्षा क्षेत्र को या फिर हॉस्पिटेलिटी सेक्टर को। विदेशी पर्यटकों की संख्या तो अभी भी नाम मात्र की ही रह गई है। देशी पर्यटक अवश्य कुछ बढ़ने लगे हैं और उसका कारण भी कोरोना का सबक ही है। स्कूल कॉलेज संकट के दौर से आज भी गुजर रहे हैं। इनमें काम करने वाले शिक्षकों व अन्य स्टाफ को वेतन आदि की समस्या बरकरार है। सर्विस सेक्टर सहित अभी सभी क्षेत्रों में यह सोच विकसित हो गई है कि कम से कम मेनपॉवर का उपयोग करते हुए उससे अधिक से अधिक काम लिया जाए। पर यह हालात अधिक दिन तक नहीं चलने वाले हैं। ऐसे मे अर्थशास्त्रियों व श्रम विशेषज्ञों को समय रहते इसका कोई हल खोजना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब सारी व्यवस्था एक साथ धराशायी हो सकती है। इसके लिए अब मोटे पैकेजों के स्थान पर निष्ठावान कार्मिक ढूंढ़ने होंगे तो कार्मिकों का विश्वास जीतने के प्रयास भी करने होंगे। एक समय था जब कार्मिक अपने प्रतिष्ठान के प्रति पूरी तरह से वफादार होता था पर अब जो हालात बन रहे हैं उससे संस्थान कुछ पैसा व मानव संसाधन तो बचाने में सफल हो जाएंगे पर संस्थान के प्रति जी-जान लगाने वाले कार्मिक नहीं मिल सकेंगे। ऐसे में नई सोच के साइड इफेक्ट को अभी से समझना होगा नहीं तो परिणाम अतिगंभीर होने में देर नहीं लगेगी। कार्मिकों के मनोविज्ञान को समझते हुए निर्णय करना होगा। कार्मिकों में अपने रोजगार के प्रति सुरक्षा की भावना रहेगी तो वह निश्चित रूप से अच्छे परिणाम देगा, अधिक निष्ठा से सेवाएं देगा और इसका लाभ प्रतिष्ठान को मिलेगा। इसलिए संस्थान और कार्मिक के बीच परस्पर समन्वय, विश्वास और समझ का माहौल बनाना होगा। नियोक्ता को कार्मिक का मनोविज्ञान समझना होगा।


-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

प्रमुख खबरें

PM Narendra Modi कुवैती नेतृत्व के साथ वार्ता की, कई क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा हुई

Shubhra Ranjan IAS Study पर CCPA ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने है आरोप

मुंबई कॉन्सर्ट में विक्की कौशल Karan Aujla की तारीफों के पुल बांध दिए, भावुक हुए औजला

गाजा में इजरायली हमलों में 20 लोगों की मौत