व्हाट्सअप, फैसबुक, इंस्टाग्राम हैक होने की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, आम आदमी इन हमलों से भारी नुकसान झेल रहे हैं, लेकिन विडम्बना यह है कि सरकार के पास इसके समाधान का तंत्र कमजोर एवं बेअसर है। इन सोशल मीडिया के हमलों के साथ-साथ साइबर हमलों ने भी खतरों की झड़ी लगा दी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सूचना क्रांति ने हमारा जीवन आसान बना दिया है। तकनीक के जरिए प्रत्येक क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान एवं जीवन को आसान बनाने की स्थितियां भी कायम हुई हैं। लेकिन, जिस तरह से साइबर संसार एवं तकनीक का विस्तार हो रहा है, उससे तेज गति से साइबर अपराध बढ़ रहे हैं, उन्हें देखते हुए कई बार तो लगता है कि हम कहीं वैश्विक जंग का नया मैदान तैयार करने एवं आम आदमी से जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाओं एवं संसाधनों को खतरे में तो नहीं डाल रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस साइबर संसार के विस्तार के साथ ही राष्ट्रीय एवं व्यक्ति सुरक्षा को नया खतरा पैदा हो गया है, जो किसी युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक एवं नुकसानदायी है। ऐसा युद्ध जिसमें न हमलावर का जल्द ही पता लग पाता और न ही हमले से हुए नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता। इन बढ़ते साइबर हमलों पर काबू पाने में सरकार की नाकामी ज्यादा चिन्ताजनक है। आम आदमी से संबंधित व्यक्तिगत डेटा या आंकड़े को चोरी होने से बचाना सरकार की प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।
प्रतिदिन व्हाट्सअप, फैसबुक, इंस्टाग्राम हैक होने की घटनाएं आम होती जा रही है, लेकिन इसी बीच अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान- एम्स के सर्वर में सेंधमारी ने तो सरकार की नींद उड़ा दी है। तकनीकी विशेषज्ञों की लगातार कोशिशों के बावजूद उसे पहले की तरह ठीक नहीं किया जा सका है। आशंका जताई जा रही है कि एम्स के सर्वर को हैक करने से करोड़ों व्यक्तियों से जुड़ी सूचनाओं पर सेंध लगने के साथ फिलहाल अस्पताल की इमरजेंसी, ओपीडी, लैब व अन्य सेवाओं में मैनुअली काम हो रहा है। इसे चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे बड़ा साइबर हमला माना जा सकता है। मोटे अनुमान के मुताबिक एम्स के पास 4 करोड़ मरीजों का डेटा है। कई अतिविशिष्ट लोग जिनमें पूर्व प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों, नौकरशाहों जैसे खास एवं नामचीन हस्तियों और उनकी हेल्थ-उपचार से जुड़ी जानकारी भी इस अस्पताल के सर्वर में उपलब्ध रहती है।
चिंता की बात यह भी है कि एम्स सर्वर को हैक करने के मामले में जांच एजेंसियां अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई हैं। इस बीच हैकर्स की ओर से सर्वर बहाल करने की एवज में 200 करोड़ रुपए की क्रिप्टो करेंसी की मांग की बात भी सामने आई है। हालांकि दिल्ली पुलिस इस बात से इंकार कर रही है। लेकिन, इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी दूसरे देश में बैठे हैकर्स ने इस करतूत को अंजाम दिया है। देश की साइबर सुरक्षा में घुसपैठ के मामले लगातार बढ़ते ही दिख रहे हैं। इन अति महत्वपूर्ण संस्थानों के साथ आम व्यक्ति के व्हाट्सअप, फैसबुक, इंस्टाग्राम हैक होने एवं करोड़ों रुपये हैंकरों के द्वारा हड़प लेने के बावजूद सरकार ने इन खतरों से निपटने के किसी सशक्त तंत्र को विकसित नहीं किया है। साइबर अपराधों पर नियंत्रण के लिये अलग से पुलिस केन्द्र तो खोले गये हैं, लेकिन इनमें काम करने वाले कर्मी-अधिकारियों को साइबर अपराधों के नियंत्रण की तकनीक का ज्ञान शून्य है, अन्य थानों की तरह यहां पर पीड़ितों से अपराधियों जैसे व्यवहार एवं सवालात किये जाते हैं। विडम्बना तो यह है कि इस तरह की शिकायत दर्ज करने में ही कोताही बरती जाती है। इन पुलिस केन्द्र में कोई भी ऐसे संसाधन एवं तकनीकी उपकरण नहीं हैं कि वे तत्काल उस पर नियंत्रण कर सके।
मेरा व्हाट्सअप गत दिनों हैक हो गया, हैकर ने मेरे मिलने-जुलने वाले सभी व्हाट्सअप सदस्यों से पैसे मांगे। कुछ परिचितों ने हैकर के बताये अकाउन्ट में पैसे डाल भी दिये। मैं सभी सूचनाओं के साथ बदरपुर स्थित साइबर अपराध सैल, साउथ दिल्ली पहुंचा, पहले तो शिकायत लेने से ही मना कर दिया, जब मैंने अपना परिचय दिया तो उन्होंने मेरी बात सुनी, लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि हैकर का अकाउन्ट नंबर, मोबाइल नम्बर, उसके पैसे मांगने के संवाद की स्क्रीन शूट आदि सूचनाएं देने के बावजूद वे कुछ नहीं कर पाये और कहने लगे कि आपकी शिकायत ही नहीं बनती, जिनके पैसे डूबे हैं, वे शिकायत करें। वहां मौजूद अधिकारी के कहने पर मेरी शिकायत ली गयी। लेकिन इस साइबर अपराध सैल का क्या फायदा यदि वो लगातार चल रहे हैकर के आक्रमण को रोक न पाये? क्या इनको अपराधी के बैंक अकाउन्ट को कुछ समय के लिये निष्क्रिय करने के लिये कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? क्या दिये गये मोबाइल नम्बर की स्थिति का पता कर उस अपराधी तक पहुंच नहीं बनानी चाहिए? ये कदम यदि यह साइबर अपराध सैल नहीं उठाती तो देश में साइबर अपराध पर नियंत्रण की सोचना ही मिथ्या है। केन्द्र सरकार की ओर से इसी साल लोकसभा में दी गई जानकारी में यह स्वीकार किया गया था कि पिछले चार वर्ष के दौरान देश में साइबर सुरक्षा तंत्र में घुसपैठ के 36.29 लाख प्रयास हो चुके हैं। साइबर अटैक के ये प्रयास वर्ष 2021 में सबसे ज्यादा हुए। सरकार अपराधों की बात महिमामंडित करके विधायी संस्थानों में प्रस्तुत करती है, लेकिन उनके समाधान के लिये सरकार ने क्या किया, इस सवाल पर गहरा सन्नाटा पसरा होता है।
बात मेरे व्हाट्सअप हैक होने या एम्स सर्वर को हैक करने की ही नहीं है, यह डिजिटलीकरण की ओर बढ़ते देश में लगातार हो रहे साइबर हमलों की है। एम्स का मामला केवल कामकाज में असुविधा का मसला नहीं है। एम्स के सभी तरह के कामकाज के लिए तो समांतर वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी की जा सकती है। तात्कालिक तौर पर सामान्य या पुराने तरीके से भी काम चलाया जा सकता है। लेकिन मरीजों से जुड़े तमाम ब्योरों से लेकर सभी तरह की व्यवस्थाओं का जिस तरह डिजिटलीकरण हो गया है, उनका चोरी हो जाना शायद दूरगामी स्तर पर घातक एवं संकटपूर्ण स्थितियां पैदा कर सकता है। यही वजह है कि एम्स के सर्वर में सेंध लगाने के बाद सबसे गहरे सवाल साइबर सुरक्षा को लेकर उठ रहे हैं। यों इससे पहले भी अलग-अलग मौकों पर किसी संस्थान या कंपनी की वेबसाइट हैक होने की खबरें आती रही हैं और उसी के मद्देनजर इसके खतरों की भी पहचान की गई है। लेकिन हालत यह है कि देश के नागरिकों के बारे में सबसे संवेदनशील जानकारी जुटा कर उन्हें डिजिटल रूप में रखने की सुविधाएं तो बताई जाती हैं, मगर उनके पूरी तरह सुरक्षित होने को लेकर अब तक कोई आश्वासन नहीं है।
साइबर स्पेस के तमाम खतरों को देखते हुए दुनिया के किसी भी कोने से रची जाने वाली साइबर अटैक की साजिश को लेकर हमें सतर्क रहना होगा। संवेदनशील संस्थानों की डेटा सुरक्षा पर विशेष निगाह रखनी होगी। यह बात सही है कि अब धीरे-धीरे युद्ध मैदानों में नहीं, बल्कि साइबर सुरक्षा ध्वस्त करने के नाम पर भी लड़े जाने वाले हैं। इसलिए हमें भी साइबर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम तो करने ही होंगे, इसको लेकर सख्त कानून भी बनाना होगा। बढ़ते साइबर फ्रॉड के मामलों पर नियंत्रण के लिये सरकार को जागना होगा, कोरे साइबर क्राइम सैल खोलने से अपराध नहीं रुकेंगे, उसकी तकनीक एवं साधन विकसित करने होंगे, वैसे दक्ष लोगों को यह काम सौंपना होगा।
-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)