सरकारी रवैया ही एयर इंडिया के डूबने का असल कारण

By मनोज झा | Jun 06, 2017

नीति आयोग ने सरकार से घाटे में चल रही एयर इंडिया को बेचने की सलाह दी है। एयर इंडिया पर इस समय लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है और सरकार ने इससे हमेशा के लिए तौबा करने का मन बना लिया है। सरकार पिछले 5 सालों में एयर इंडिया में 25 हजार करोड़ रुपए डुबा चुकी है और अब वो एक पैसा खर्च करने के मूड में नहीं। 

वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही इस बात का संकेत दे चुके हैं कि उनकी सरकार का अब एयर इंडिया में कोई दिलचस्पी नहीं। जेटली ने सीधे-सीधे कह दिया कि जब 86 फीसदी विमान परिचालन निजी कंपनियां कर सकती हैं तो 100 फीसदी भी निजी हाथों में दिया जा सकता है।

 

एयर इंडिया को पटरी पर लाने के लिए पिछले 15 सालों में सरकार की ओर से कई पहल की गयीं...लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद एयर इंडिया कर्ज में डूबती चली गई। आज स्थिति यहां तक पहुंच गई कि सरकार के पास इसे बेचने के सिवा कोई चारा नहीं। ये बात सही है कि एयर इंडिया... सेवा से लेकर गुणवत्ता तक... हर डिपार्टमेंट में दूसरी विमान कंपनियों के आगे फेल हुई है...लेकिन सवाल उठता है कि आखिर एयर इंडिया को इस हाल में पहुंचाने वाला कौन है? 

 

मेरी समझ से ये एयर इंडिया की नहीं सरकार की हार है। कर्ज में डूबे एयर इंडिया को समय-समय पर सरकारी मदद तो मिलती रही...लेकिन कभी उसे प्रोफेशनल बनाने की कोशिश नहीं की गई। सीएमडी से लेकर बड़े अधिकारियों की नियुक्ति तक वही फार्मूला अपनाया गया जो बाकी सरकारी विभागों में होता है। आज छोटी से छोटी निजी विमान कंपनी मुनाफा कमा कर अपने कारोबार को आगे बढ़ा रही है तो उसके पीछे कई कारण हैं। 

 

किसी भी संस्थान की तरक्की वहां काम करने वाले लोगों पर निर्भर करती है। ये जानते हुए भी कि एयर इंडिया दिन ब दिन घाटे में चल रही है किसी भी सरकार ने इसे पटरी पर लाने के लिए ठोस पहल नहीं की। एयर इंडिया को दूसरी विमान कंपनियों के समक्ष खड़ा करने के लिए कभी प्रोफेशनल रवैया नहीं अपनाया गया। अगर एयर इंडिया ने भी पायलट से लेकर क्रू मेंबर की बहाली में निजी कंपनियों का तरीका अपनाया होता तो आज उसे ये दिन देखना नहीं पड़ता। एयर इंडिया में सफर करने वाले यात्री सुविधाओं को लेकर बार-बार उंगली उठाते रहे लेकिन एयर इंडिया प्रबंधन ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया...उड़ान में देरी हो या खराब खाना, एयर इंडिया हर शिकायतों को नजरअंदाज करती गई।

 

एयर-इंडिया को इस हाल में पहुंचाने में नेताओं का भी कम हाथ नहीं। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक एयर इंडिया का केंद्र सरकार पर करीब 452 करोड़ रुपए बकाया है। ये बकाया राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लेकर जाने वाली एयर इंडिया की वीआईपी उड़ानों के साथ-साथ विशेष मिशन के लिए दी जाने वाली सेवाओं को लेकर है। 

 

एक तरफ सरकारी कंपनी होने का बोझ...ऊपर से नेताओं की दादागीरी। आपको शिवसेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ का वाकया तो याद होगा...सांसद महोदय ने मामूली बात पर एयर इंडिया के एक कर्मचारी की चप्पल से पिटाई कर दी..एयर इंडिया ने जैसे ही सांसद को बैन किया संसद में बखेड़ा खड़ा हो गया....सांसद ने अपने व्यवहार के लिए सदन में तो माफी मांग ली लेकिन एयर इंडिया कर्मचारी से माफी मांगने से इनकार कर दिया। जरा सोचिए ऐसे माहौल में एयर इंडिया के कर्मचारी कैसे प्रोफेशनल रवैया अपनाएंगे?

 

मैं हमेशा से मानता रहा हूं कि सरकार का पूरा ध्यान देश में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर होना चाहिए न कि सरकारी कंपनियां चलाने पर...लेकिन कुछ सेवाएं ऐसी हैं कि अगर उन पर से सरकारी नियंत्रण हट जाए तो फिर बात बिगड़ सकती है। आपको बता दें कि 1932 में जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस की नींव रखी थी जो 1946 में एयर इंडिया के नाम से भारत की राष्ट्रीय विमान सेवा बनी। जरा सोचिए आजादी से पहले जिस शख्स की सोच ने एयर इंडिया को जन्म दिया आज आजादी के 70 साल बाद दम तोड़ने के कगार पर है। नीति आयोग की सिफारिश पर एयर इंडिया के विनिवेश का रोडमैप तैयार हो चुका है ...बस इंतजार कीजिए उस दिन का जब कैबिनेट उस फैसले पर मुहर लगाएगी।

 

मनोज झा

(लेखक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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