सरकार और कंपनियाँ सोचें- ''न्यू इंडिया'' में बुजुर्गों को क्या मिला?

By मनोज झा | Sep 23, 2017

कल घर से दफ्तर जाते समय एक अजीब घटना हुई। मैं कैब से जैसे ही नोएडा में अपने दफ्तर के पास उतरा...गाड़ियों की शोर के बीच सड़क पर कार में सवार दंपत्ति की आवाज मेरे कानों में गूंज उठी। मैं जब उनके पास चलकर पहुंचा तो देखा चिलचिलाती धूप में बुजुर्ग दंपत्ति परेशान थे और मदद मांग रहे थे। जब मैंने उनकी परेशानी पूछी तो उन्होंने कहा बेटे मेरे कार की ईंधन अचानक खत्म हो गई और मुझे पेट्रोल की दरकार है। मैंने किसी तरह गाड़ी को धक्का देकर सड़क के एक किनारे पहुंचाया और फिर अपने फोन से मारुति रोड साइड हेल्पलाइन नंबर पर फोन लगाया। 

मैंने फोन पर महिला कर्मचारी को सारा वाकया सुनाया और उससे मदद मांगी। लेकिन मैं और वहां मौजूद बुजुर्ग दंपत्ति तब हैरान रह गए जब कंपनी की ओर से कहा गया कि पेट्रोल के साथ वहां टेक्नीशियन भी जाएगा और उसके लिए आपको तेल की कीमत के साथ-साथ 575 रुपए चुकाने होंगे। मैंने कंपनी की महिला कर्मचारी से कहा कि देखिए दोनों बुजुर्ग दंपत्ति हैं और उनके पास मारुति की ही कार है और आपको उनकी मदद करनी चाहिए...लेकिन उसने साफ मना कर दिया। 

 

मेरे पास अपनी गाड़ी नहीं थी लिहाजा मैं चाहकर भी उनकी कोई मदद नहीं कर सका। दफ्तर के पास पहुंचकर दफ्तर जाने में देर हो रही थी...लेकिन मुझे से उनकी परेशानी देखी नही जा रही थी। मैंने बुजुर्ग महिला को सड़क किनारे उनकी कार में बैठने को कहा और उनके पति को 2 किलोमीटर दूर पेट्रोल पंप पहुंचाने की तरकीब सोचने लगा। मेन रोड पर कोई रिक्शा नहीं चलती लिहाजा मैं उनका हाथ पकड़कर सड़क की दूसरी ओर पहुंचा और फिर रिक्शे की तलाश करने लगा। करीब 5 मिनट चलने के बाद मुझे एक रिक्शावाला नजर आया। मैंने रिक्शेवाले से कहा कि वो अंकल को पेट्रोल पंप ले जाए और फिर वहां से पेट्रोल दिलाकर उन्हें गाड़ी तक वापस छोड़ दे। रिक्शावाला राजी हो गया और फिर मैं बुजुर्ग को अलविदा कह अपने दफ्तर आ गया।

 

दफ्तर में आने के बाद मेरा ध्यान उन्हीं बुजुर्ग दंपत्ति पर था...दोनों की उम्र 75 के पार थी...मैं सोच रहा था कि आखिर हमारे देश में बुजुर्गों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जाता है। अगर वित्त वर्ष 2016-17 की बात करें तो देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड का मुनाफा 1700 करोड़ रुपए से ज्यादा का रहा। सवाल उठता है जो कंपनी इतना मुनाफा कमाती हो उसकी अपनी ग्राहकों के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं बनती..खासकर उन बुजुर्गों के लिए जो सड़क पर अकेले निकलते हैं।

 

ये तो दिन की बात थी जरा सोचिए अगर बुजुर्ग दंपति के साथ आधी रात को ये वाकया हुआ होता तो क्या होता? देश में कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) व्यवस्था की शुरूआत तो हो गई है लेकिन ज्यादातर बड़ी और ब्लू चिप कंपनियां सीएसआर पर मुनाफे का न्यूनतम दो फीसदी खर्च करने में विफल रही हैं। देश की ज्यादातर कंपनियां सीएसआर के नाम पर या तो किसी एनजीओ के साथ जुड़ जाती हैं या फिर सरकार की किसी कल्याणकारी योजना का हिस्सा बनकर अपनी आमदनी का बहुत छोटा सा हिस्सा खर्च कर अपनी पीठ थपथपा लेती हैं।

 

देश में ग्राहकों की हितों की रक्षा के लिए कानून तो बने हैं लेकिन कंज्यूमर कोर्ट का फैसला आने में इतना वक्त लग जाता है कि ज्यादातर लोग हारकर बैठ जाते हैं। कंपनियों को ये समझना होगा कि पैसा कमाने के साथ-साथ उन्हें सामाजिक दायित्व भी निभाना होगा। युवाओं के इस देश में हर बारहवां शख्स बुजुर्ग है और करीब-करीब आधे बुजुर्गों को अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते हैं।  पीएफआरडीए की रिपोर्ट के मुताबिक देश में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है और 2050 तक हर पांचवां शख्स 60 साल से ऊपर का होगा। सवाल उठता है कि क्या हमारी सरकार ने इसके बारे में कुछ सोचा है....मामला सिर्फ उस बुजुर्ग दंपति का नहीं...अगर हम अपने देश में बुजुर्गों के लिए बेहतर माहौल नहीं बना सकते तो फिर 'न्यू इंडिया' बनाकर ही क्या हासिल कर लेंगे?

 

मनोज झा

(लेखक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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