Gyan Ganga: सदा अपने भक्तों के प्रेमपाश में बँधे हुए रहते हैं भगवान

By आरएन तिवारी | Jul 22, 2022

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 


प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसरिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।


पिछले अंक में हमने पढ़ा कि भगवान ने ऋषि दुर्वासा के प्रकोप से अपने परम प्रिय भक्त अंबरीश को कैसे बचाया और यह संदेश भी दिया कि भगवान के भक्त का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। भगवान अपने भक्त की रक्षा हर तरह से करते हैं। 

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: भक्तों पर भगवान का वश है लेकिन भगवान किसके वश में रहते हैं?

आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं---

परम हंस श्री शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं, हे परीक्षित ! जब ऋषि दुर्वासा सुदर्शन चक्र के ताप-संताप से मुक्त हो गए और उनका चित्त स्वस्थ हो गया, तब वे राजा अंबरीश को अनेकानेक उत्तम आशीर्वाद देते हुए उनकी प्रशंसा करने लगे। 


स मुक्तोSस्त्राग्नितापेनदुर्वासा:स्वस्तिमांस्तत:  

प्रशशंस तमुर्वीशम युञ्जान: परमाशिष: ॥  


दुर्वासा जी ने कहा- धन्य है भगवान के भक्त ! आज मैंने भगवान के प्रेमी भक्तों की महिमा देख ली।


हे राजन ! मैंने आपका इतना बड़ा अपराध किया, फिर भी आप मेरे लिए मंगल-कामना ही कर रहे हैं। हे महाराज अंबरीश ! आप भक्त शिरोमणि हैं, आपका हृदय करुणाभाव से परिपूर्ण है। आपने मेरे ऊपर महान अनुग्रह किया, आपने मेरे अपराध को भुलाकर मेरे प्राणों की रक्षा की। 


राजा अंबरीश ने दुर्वासा जी के चरण पकड़ लिए और निवेदन किया– महाराज ! ऐसी उल्टी गंगा मत बहाइए। पहले चलकर प्रसाद पा लीजिए ताकि मैं भी पारण कर सकूँ। दुर्वासा जी ने पूछा, तो क्या अभी तक तुमने भोजन नहीं किया है ? महाराज मैं आपको निमंत्रित कर चुका था। आपको पहले पवाए बिना कैसे पाता। दुर्वासा जी बोले- राम-राम अनर्थ हो गया। मैं तो सोच रहा था कि तुम प्रसाद पाकर बैठे हो। इस प्रकार अंबरीश जी आतिथ्य सत्कार में एक वर्ष तक भूखे-प्यासे ही बैठे रहे। 


राजा अंबरीश बड़े ही आदर से अतिथि के योग्य सब प्रकार की भोजन सामग्री ले आए और प्रेम से दुर्वासा जी को भोजन करवाया। दुर्वासाजी भोजन करके तृप्त हो गए। अब उन्होने आदर से कहा- हे राजन ! अब आप भी भोजन कीजिए। 


हे राजन ! आप भगवान के परम प्रेमी भक्त हैं। आपके दर्शन, स्पर्श, बातचीत और मन को भगवान की ओर प्रवृत्त करने वाले आतिथ्य सत्कार से मैं अत्यंत प्रसन्न और अनुगृहीत हुआ हूँ। स्वर्ग की देवांगनाएँ बार-बार आपके इस उज्ज्वल चरित्र का गुण-गान करेंगी। यह परम पवित्र पृथ्वी भी आपकी परम पुण्यमई कीर्ति का संकीर्तन करती रहेगी।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: भक्त सर्वस्व न्योछावर कर देता है तो उसकी सारी ज़िम्मेदारी भगवान अपने हाथ में ले लेते हैं

ऐसा कहकर राजा अंबरीश के गुणों की प्रशंसा करते हुए दुर्वासाजी आकाश मार्ग से उस ब्रह्मलोक की यात्रा पर निकल गए जो केवल निष्काम कर्म से ही प्राप्त होता है।


प्रीतोsस्म्यनुगृहितोस्मि तव भागवतस्य वै 

दर्शनस्पर्शनालापै: अतिथ्येनात्म मेधसा ॥ 

एवं संकीर्त्य राजानं दुर्वासा: परितोषित: 

ययौ विहायसाssमंत्र्य ब्रह्मलोक महैतुकम ॥ 


शुकदेव जी कहते हैं— हे परीक्षित! जब दुर्वासाजी चले गए, तब महाराज अंबरीश ने उनके भोजन से बचे हुए पवित्र अन्न को भोजन के रूप में ग्रहण किया। अंबरीश जी को यह सोचकर बड़ा कष्ट हुआ कि उनके कारण दुर्वासा जी को दुख उठाना पड़ा।  


शुकदेव जी कहते हैं— इसके बाद राजा अंबरीश ने अपने ही समान अपने पुत्रों पर राज -काज का भार छोड़ दिया और वन में चले गए। वहाँ वे भगवत भजन करते हुए इस संसार से मुक्त हो गए।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: हयग्रीव नामक असुर के कब्जे से वेदों को भगवान ने कैसे छुड़ाया था?

शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित! भगवान सर्वदा अपने भक्तों के अधीन रहते हैं। वे कहते हैं कि, मेरे सीधे-सादे भक्तों ने मुझे अपने प्रेमपाश में बाँध रखा है। अपने प्रिय भक्तों का एकमात्र आश्रय मैं ही हूँ। अतः मैं स्वयं अपने व देवी लक्ष्मी से भी बढ़कर अपने भक्तों को चाहता हूँ। जो भक्त अपने बंधु-बांधव और समस्त भोग-विलास त्यागकर मेरी शरण में आ गये हैं, उन्हें किसी प्रकार छोड़ने का विचार मैं कदापि नहीं कर सकता। इसलिए हमें भगवान के भक्तों का अनादर कभी भी किसी भी परिस्थिति में नहीं करना चाहिए। 


रामचरितमानस में एक बड़ा ही सुंदर प्रसंग आता है---

जब भरत जी राम को मनाने के लिए जा रहे हैं, तब इन्द्र भय-भीत हो गए, सोचने लगे  बड़ी मुश्किल से भगवान राम जंगल में पधारे हैं। भरत जाकर सारा काम बिगाड़ देंगे, इन्हे रोकना चाहिए।


देव गुरु बृहस्पति ने इन्द्र को समझाया---


गोस्वामी जी कहते हैं---


सुनु सुरेश रघुनाथ सुभाऊ, निज अपराध रिसाहि न काऊ । 

जो अपराध भगत कर करहि, राम रोष पावक जिमि जरहि । 

लोकहुं वेद विदित इतिहासा, यह महिमा जानहि दुर्वासा॥ 


शुकदेव जी कहते हैं—  परीक्षित !

जो व्यक्ति राजा अंबरीश के इस परम पावन चरित्र का संकीर्तन और श्रद्धा भाव से स्मरण करता है, वह परम गति को प्राप्त करता है। 


इत्येतत पुण्यमाख्यानमंबरीषस्य भूपते: 

संकीर्तयननुध्यायन भक्तो भगवतो भवेत ॥  


प्रेम से बोलिए भक्त वत्सल भगवान की जय-----


अगले अंक में--------------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।


-आरएन तिवारी

प्रमुख खबरें

PM Narendra Modi कुवैती नेतृत्व के साथ वार्ता की, कई क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा हुई

Shubhra Ranjan IAS Study पर CCPA ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने है आरोप

मुंबई कॉन्सर्ट में विक्की कौशल Karan Aujla की तारीफों के पुल बांध दिए, भावुक हुए औजला

गाजा में इजरायली हमलों में 20 लोगों की मौत