By अभिनय आकाश | Dec 20, 2021
आज का विश्लेषण शुरू करने से पहले आपको भारत का नक्शा दिखाऊंगा। आप कहेंगे कि इसमें नया क्या है। हमने तो ये नक्शा कितनी दफा देखा है। तो बता दें कि इस देश के नक्शे के स्वरूप में आने की कहानी कई किरदार और जद्दोजहद से होकर गुजरी है। भारत आज जैसा नजर आ रहे है इसके पीछे एक नाम है सरदार वल्लभ भाई पटेल। देश आजाद हुआ पंत्तियां, लाइनें, विभाजन रेखाएं खिंच गई। इधर भारत और उधर पाकिस्तान, लेकिन तब तक देश रियासतों में भी बंटा था। साढ़ें पांच सौ से ज्यादा रियासतें ऊपर से अंग्रेजों का ये कहकर जाना कि ये रियासतें अपनी मर्जी की मालिक हैं। चाहे पाकिस्तान में जाए, भारत में रहे या आजाद रहें। हालांकि ये भी कहा कि ब्रिटेन उन्हें मान्यता नहीं देगा। ऐसे में जरूरत थी इन रियासतों को भारतीय यूनियन के साथ लाने की और एक पूरा नक्शा बनाने की। लेकिन इस नक्शे को रूप देने का काम एक दिन में नहीं हुआ। ऐसा नहीं था कि एक रोज मुल्क आजाद हुआ और हमने लाइने खींचनी शुरू कर दी थी। यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे बाद में भी भारत से जाने वाला पुर्गगाल ही था। भारत के लिये नए समुद्री मार्ग की खोज कर पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचकर की। लेकिन भारत की आजादी के 14 बरस तक पुर्तगाल भारत के एक हिस्से में डेरा जमाए बैठे थे। 1947 में भारत की आजादी के बाद भी गोवा में पुर्तगाल का झंडा लहरा रहा था। 1961 में पुर्तगाली भारत से वापस गए। आज आपको बताते हैं गोवा का इतिहास, पुर्तगालियों के कब्जे, इसकी स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और साथ ही सेना के ऑपरेशन विजय की कहानी सुनाते हैं।
शुरुआत गोवा के इतिहास से करते हैं-
महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानि गोपालकों के देश के रूप में मिलता है। गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत् तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरू होता है जब यहाँ मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहाँ से खदेड़ दिया गया। 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया।
पुर्तगाली कंपनी का भारत में प्रवेश
यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। भारत के लिये नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी चारकोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचकर की। वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के को उपाधि थो) द्वारा किया गया तत्कालीन भारतीय व्यापार पर अधिकार रखने वाले अरब व्यापारियों को जमोरिन का यह व्यवहार पसंद नहीं आया, अत: उनके द्वारा पुर्तगालियों का विरोध किया गया। मार्च 1510 में अलफांसो-द-अल्बुकर्क के नेतृत्व में पुर्तगालियों ने इस शहर पर आक्रमण किया। गोवा बिना किसी संघर्ष के पुर्तगालियों के कब्जे में आ गया। गोवा पूर्व दिशा में समूचे पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बन गया। नेपोलियन ने 1809-1815 के बीच पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद एंग्लो पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा अपने आप ही अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1815 से 1947 तक गोवा में अंग्रेजों का शासन रहा और पूरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेजों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया।
अंग्रेजों की चाल और गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार
देश की आजादी के समय जब अंग्रेजों के साथ बातचीत हो रही थी तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से यह मांग रखी कि गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीं पुर्तगाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजों ने भारत की बात नहीं मानी और गोवा पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया। गोवा पर पुर्तगाली अधिकार का तर्क यह दिया गया था कि गोवा पर पुर्तगाल के अधिकार के समय कोई भारत गणराज्य अस्तित्व में नहीं था।
गोवा में लोहिया की पहली चुनौती
गोवा को आजाद कराने में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का बहुत बड़ा योगदान था। 1946 में वह गोवा गए थे, जहां उन्होंने देखा कि पुर्तगाली तो अंग्रजों से भी बदतर थे। 18 जून 1946 को बीमार राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगाली प्रतिबंध को पहली बार चुनौती दी। वहां नागरिकों को सभा संबोधन का भी अधिकार नहीं था। लोहिया से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने तुरंत 200 लोगों की एक सभा बुलाई। तेज़ बारिश के बावजूद उन्होंने पहली बार एक जनसभा को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज़ उठाई। जब पुर्तगालियों को ये बात पता चली तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और मड़गांव की जेल में रखा गया। लेकिन जनता के भारी आक्रोश के कारण बाद में उन्हें छोड़ना पड़ा। हालांकि पुर्तगालियों ने पांच साल के लिए लोहिया के गोवा आने पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन इसके बावजूद भी गोवा की आजादी की लड़ाई लगातार जारी रही।
गोवा के भारत में विलय और ऑपरेशन विजय की कहानी
गोवा के भारत में विलय की कहानी दमन और दीव के भारत में विलय की कहानी भी है। जब भारत के बड़े इलाके पर अंग्रेज हुकूमत कर रहे थे। तब गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाल का शासन था। ये दोनों राज्य यूरोप में भी पड़ोसी थे। गोवा वालों की राजकुमारी कैथरीन और इंग्लैंड के किंग्स चार्ल्स टू से हुई थी। तब पुर्तगालियों ने ही दहेज में अग्रेजों को मुंबई दी थी। मुंबई यानी उस वक्त की बम्बई तो आजाद होकर भारत का हिस्सा बन गया। लेकिन गोवा, दमन और दीव में पुर्तगाली जमे रहे। पुर्गताली गोवा को किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। पुर्तगालियों ने आजादी के 14 साल बाद तक गोवा और दमन व दीप पर अपना कब्जा जमाए रखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और रक्षा मंत्री मेनन के बार-बार आग्रह करने के बावजूद पुर्तगाली भारत के आगे झुकने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। उनके खिलाफ स्थानीय लोगों ने विद्रोह किया। गोवा कांग्रेस बनी और आजादी का आंदोलन चलाया गया। भारत में जो कांग्रेस थी उसे उसका साथ मिला। देश आजाद हुआ तो पुर्तगाल से बात शुरू हई। लेकिन गोवा पर बात करने का पुर्तगात ने कोई जवाब नहीं दिया। 11 जून 1953 को पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में भारत ने अपने दूतावास बंद किए। फिर पुर्तगाल पर प्रेशर गेम शुरू किया। गोवा, दमन और दीव के बीच आने जाने पर बंदिशे लग गई। 15 अगस्त 1955 को तीन से पांच हजार आम लोगों ने गोवा में घुसने की कोशिश की। लोग निहत्थे थे और पुर्तगाल की पुलिस ने गोली चला दी। 30 लोगों की जान चली गई। तनाव बढ़ने के बाद गोवा पर सेना की चढ़ाई की तैयारी की गई। 1 नवंबर 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। भारतीय सेना ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने के साथ आखिरकार दो दिसंबर को गोवा मुक्ति का अभियान शुरू कर दिया। जमीन से सेना, समुद्र से नौसेना और हवा से वायुसेना गई। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। बता दें कि 1999 के करगिल युद्ध को भी ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था। लेकिन ये सेना का पहला ऑपरेशन विजय पुर्तगालियों के खिलाफ हुआ था। दिसंबर 1961 को गोवा की तरफ सेना पहली बार बढ़ी। सेना जैसे-जैसे आगे बढ़ती लोग स्वागत करते। कुछ जगह पुर्तगाल की सेना लड़ी। लेकिन हर तरफ से घिरे होने की वजह से पराजय तय थी। वायु सेना ने आठ और नौ दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की, थल सेना और वायुसेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए। आखिर में 19 दिसंबर 1961 की रात साढ़े आठ बजे भारत में पुर्तगाल के गवर्नर जनरल मैन्यु आंतोनियो सिल्वा ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर पर दस्तखत किए। इसी के साथ गोवा पर 451 साल का पुर्तगाली राज खत्म हुआ। इसी ऐतिहासिक घटना के सम्मान में गोवा लिबरेशन डे मनाया जाता है। ये भारतीय इतिहासा का महत्वपूर्ण बिंदू था जिसने हमारे देश को उस विदेशी शासन से पूरी तरह से मुक्त कर दिया था जो कई शताब्दियों तक चला था।
-अभिनय आकाश