आज हिन्दी न केवल हिन्दुस्तान के दिल की भाषा है, बल्कि विश्व के कोने-कोने में यह रचती बसती है। वर्तमान काल में विश्व में लगभग साठ हजार भाषाएं किसी न किसी रूप में अस्तित्व में हैं। इनमें से आधे से अधिक भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन, हिन्दी इस मामले में एक अलग ही मुकाम पर है। हिन्दी विश्व में अपनी बुलन्दी का झंडा पूरी शान से फहरा रही है। हिन्दी में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की प्रवृति समाहित है। हिन्दी में आर्य, द्रविड़, अंग्रेजी, संस्कृत, अरबी, उर्दू, फारसी, चीनी, जापानी, स्पेनी, फ्रेंच, जर्मन, पुर्तगाली आदि वैश्विक भाषाओं के शब्द सहज प्रयोग होते हैं। हिन्दी एक उदार भाषा का जीवंत उदाहरण है। अब हिन्दी पर केवल हिन्दुस्तान का हक नहीं रह गया है, अब यह वैश्विक भाषा बन गई है। इस तथ्य को इंग्लैण्ड के प्रोफेसर की यह अभिव्यक्ति बखूबी सिद्ध करती है, ‘‘हिन्दी जिन्दगी का हिस्सा है। हिन्दी जिन्दा है। हिन्दी किसी एक वर्ग या वर्ण या जाति या धर्म या मजहब या मार्ग या देश या संस्कृति की नहीं है। हिन्दी भारत की है। मॉरीशस की है। इंग्लैण्ड की है। सारी दुनिया की है। हिन्दी आपकी है। हिन्दी मेरी है।’’
हिन्दी भाषा का वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय विस्तार हो चुका है। विदेशों में हिन्दी के प्रति अप्रत्याशित रूप से रूझान बढ़ा है। अमेरिका जैसे देश हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण पर लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च कर रहा है। एक सामान्य अनुमान के अनुसार अकेले अमेरिका में दो सौ से अधिक स्कूलों में हजारों विद्यार्थी हिन्दी सीख रहे हैं। अन्य देशों में भी इसी तरह का सुखद नजारा देखने को मिल रहा है। अन्य देश लाखों रूपये मासिक वेतन पर भारत से बुलाकर हिन्दी अध्यापकों एवं प्राध्यापकों की नियुक्ति कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक विदेशों में हिन्दी सिखाने वाले अध्यापकों की भारी कमी हो गई है। आज हिन्दी की वैश्विक व्यापकता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि विश्व के 200 से अधिक देशों में हिन्दी भाषा ने अपनी पकड़ मजबूत की है। केवल इतना ही नहीं, आज दुनिया के 150 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थाओं में हिन्दी में शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। पौलेण्ड आदि कई देशों में तो हिन्दी में पारंगत लोगों को पर्यटन, अनुवाद, पुस्तकालयों, संग्रहालयों आदि लगभग हर क्षेत्र में भर्ती किया जा रहा है।
आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक बोलने वाली भाषा चीनी है, उसके बाद हिन्दी ने अपना गौरवमयी स्थान बनाया है। अंग्रेजी तीसरे स्थान पर है। हिन्दी का प्रयोग भारत के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यामार, रूस, चीन, मंगोलिया, कोरिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, फीजी, मॉरीशस, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका, केन्या, जर्मनी, दुबई, ओमान, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, सिंगापुर, हांगकांग, इंग्लैंड, सूरीनाम, श्रीलंका, गुयाना, त्रिनीदाद, टोबैगो, कनाडा, अफगानिस्तान, कतर, मिश्र, उजबेकिस्तान, तंजानिया आदि देशों में हिन्दी बोलने और समझने वाले लोग प्रचुर संख्या में हैं। इस समय विश्व के 180 से अधिक देशों में प्रतिवर्ष 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाने लगा है। चूंकि, भारतीय संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया था। इसीलिए, देश में प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को ‘राष्ट्रीय हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
भूमण्डलीकरण युग में बाजारीकरण हुआ है। बाजार में उपभोक्ताओं तक उत्पादों की अधिक और सहज पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आम आदमी की सम्पर्क भाषा का चुनाव किया जाता है। इस मामले में हिन्दी ने बाजी मारी है। एक अनुमान के अनुसार आज वैश्विक बाजार में हिन्दी भाषा के विज्ञापनों वाले उत्पाद अंग्रेजी भाषा वाले विज्ञापनों से दस फीसदी से अधिक कमाई कर रहे हैं। हिन्दी भाषी चैनलों के दर्शकों की संख्या अन्य भाषा के चैनलों से कई गुणा अधिक आंकी गई है। देश में इलैक्ट्रोनिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया, दोनों में हिन्दी का प्रभुत्व देखा जा सकता है। देश में सर्वाधिक समाचार पत्र एवं पाठक हिन्दी के ही हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिन्दी के समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं एवं अन्य प्रकाशन भी हिन्दी को वैश्विक स्वरूप प्रदान करने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।
देश में हिन्दी की सर्वव्यापकता जगजाहिर ही है। पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी अथवा दक्षिणी भारतीय चाहे कोई भी अपनी मातृभाषा बोलते हों, लेकिन सभी हिन्दी भाषा में जरूर संवाद कर लेते हैं। हिन्दी आम आदमी की भाषा है। इस तथ्य को कोई भी नहीं नकार सकता है। वास्तव में हिन्दी को एक रिक्शावाले से लेकर, दुकानदार, मजदूर, किसान तक सहज समझ लेता है। असल में इसी आम तबके ने हिन्दी को सरताज बनाने का सौभाग्य प्रदान किया है। हिन्दी की पहुंच आम आदमी के घर तक ही नहीं, बल्कि उसके दिल तक पहुंचती है।
राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है – राज-काज यानी शासन-प्रशासन की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय अर्थात सरकारी कार्यालय के कार्यो के लिए प्रयुक्त की जाती हैं, वह राजभाषा कहलाती है। संविधान सभा की स्वीकृति के बाद 14 सितम्बर, 1949 को हिंदी भारत की राजभाषा बनी। संविधान के अनुच्छेद 343 में भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी को उल्लेखित किया गया है, जिसकी लिपि देवनागरी है। केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों एवं मंत्रालयों, इसके द्वारा आयोगों, समितियों एवं अधिकरणों के कार्यालयों तथा इसके स्वामित्व या नियंत्रणाधीन निगमों या कंपनियों के कार्यालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा राजभाषा हिंदी है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप (1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 0) अपनाया गया है।
इंटरनेट की दुनिया में भी हिन्दी का रूतबा बढ़ा है। वेबसाईट, ब्लॉग, ऐप आदि भी हिन्दी में संचालित होने लगे हैं। हिन्दी साहित्य और शोध सामग्री इंटरनेट पर बड़ी तेजी से बढ़ी है। अब इंटरनेट की दुनिया में भी हिन्दी का रूतबा बढ़ा है। एक अनुमान के अनुसार भारत में इंटरनेट का प्रयोग 70 करोड़ से अधिक लोग करते हैं, जिनकी संख्या वर्ष 2025 तक 95 करोड को पार कर जाएगी। गूगल ने भी यह स्वीकार किया है कि हिन्दी में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या अंग्रेजी में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों से अधिक हो जाएगी। गूगल के आंकड़ों के अनुसार हिन्दी में डिजीटल सामग्री पढ़ने वाले लोगों की संख्या में प्रतिवर्ष 94 प्रतिशत की दर से बढ़ौतरी हो रही है। गूगल का गूगल असिस्टेंट, अमेजन का अलेक्सा, माइक्रोसॉफ्ट की कोर्टाना, एप्पल की सीरी आदि सभी आभासी सहायक हिन्दी को वैश्विक स्तर पर एक नया आयाम दे रहे हैं। गूगल ने वर्ष 2018 में गूगल असिस्टेंट में हिन्दी भाषा के उपयोग की शुरूआत की थी। लेकिन मात्र दो वर्षों में ही इसके हिन्दी उपयोगकर्ताओं की संख्या अंग्रेजी के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच गई थी। गूगल, माईक्रोसॉफ्ट, आइबीएम, ओरेकल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हिन्दी में अपनी डिजीटल सुविधाओं सुसज्जित करने और हिन्दी में उपयोगी उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करके हिन्दी को एक नई दिशा प्रदान की है। हिन्दी के बढ़ते वैश्विक रूप से प्रभावित होकर विश्व की अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां, वैश्विक संगठन, विभिन्न देशों के दूतावास और उपक्रम अपनी वेबसाइट को हिन्दी में भी तैयार करवाने लगे हैं।
अब आईएएस के स्तर पर भी हिन्दी का आधार मजबूत हुआ है। आईआईटी के शिक्षार्थियों का भी हिन्दी के प्रति पहले से कहीं अधिक रूझान बढ़ा है। पहले आईआईटी करने का माध्यम अंग्रेजी था, लेकिन ग्रामीण बच्चों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए, अब अंग्रेजी के साथ हिन्दी को भी आईआईटी करने का माध्यम बना दिया गया है। हिन्दी रोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ी है। तकनीकी एवं वैज्ञानिक ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों में हिन्दी ने अंग्रेजी के एकाधिकार को कड़ी चुनौती देना शुरू कर दिया है। आज हिन्दी रोजगारदायक भाषा बन चुकी है। हर देश में हिन्दी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं।
हिन्दी टूल्स जैसे कि यूनिकोड फोंट, यनिकोड हिन्दी की-बोर्ड, हिन्दी ऐप ‘लीला’, गुगल डॉक, गुगल वॉइस टाइपिंग, मशीन अनुवाद (मंत्र) राजभाषा, गुगल अनुवाद, ई-महाशब्दकोश मोबाइल ऐप, ई-सरल हिन्दी वाक्यकोश मोबाईल ऐप आदि ने हिन्दी लेखन एवं टंकन को सहज, सरल और सुबोध बना दिया है। माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी वेबसाईट पर हिंदी में टाईप करने की सहज एव सरल सुविधा देने के लिए इंडिक सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराया है, जिसे नि:शुल्क लैपटॉप/कम्प्यूटर में डाऊनलोड किया जा सकता है। इस सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करके किसी भी कुंजीपटल के द्वारा हिंदी टाईपिंग सहज रूप से की जा सकती है। कार्यालयीन दस्तावेजों के शीघ्र हिंदी अनुवाद हेतु राजभाषा विभाग द्वारा स्वदेशी टूल ‘कंठस्थ’ सी-डेक, पुणे के सहयोग तैयार किया गया था। अब इसका ‘कंठस्थ-2.0’ संस्करण भी लांच किया जा चुका है। ‘कंठस्थ-2.0’ को आधुनिक युग में हिंदी अनुवाद की सर्वोत्तम तकनीक कही जा सकती है। इस सॉफ्टवेयर पर काम करना बहुत सरल है। कोई भी प्रयोक्ता जिसे कंप्यूटर पर किसी भी रूप में टंकन करना आता है, इस सॉफ्टवेयर पर आसानी से काम कर सकता है। यह यूनिकोड के फोंट पर काम करता है और इसमें एमएस वर्ड, एक्शल एवं पीपीटी जैसी अनेक प्रकार की फाइलें खोलकर उनका अनुवाद किया जा सकता है। यह सॉफ्टवेयर दोहराए जाने वाले अनुवादो के लिए बहुत मददगार है। सबसे बड़ी बात यह है कि जहाँ अंतरराष्ट्रीय अनुवाद सॉफ्टवेयरों की कीमतें 30-35 हजार से लेकर 1,00,000/- या अधिक होती हैं, वहीं यह सभी के लिए एकदम निःशुल्क है।
सोशल मीडिया के सभी मंचों वाट्सअप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ब्लॉग्स, एक्स (ट्विटर), यूट्यूब आदि पर हिन्दी का डंका बजने लगा है। बड़ी बड़ी कंपनियों की वेबसाईट, ब्लॉग, ऐप आदि भी हिन्दी में संचालित होने लगे हैं। ओटीटी के माध्यमों में नेटफ्लिक्स, प्राइम विडियो, हॉट स्टार, अमेजन जैसे प्लेटफॉर्म पर हिन्दी अपना परचम लहरा रही है।
कानून एवं कार्मिक मामलों की संसदीय समिति ने देश के सभी 24 उच्च न्यायालयों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में भी कामकाज शुरू करने की सिफारिश कर चुकी है। अब देश के विभिन्न न्यायालयों के निर्णय हिंदी भाषा में भी उपलब्ध होने लगे हैं। हरियाणा की जिला अदालतों एवं अधीनस्थ अदालतों में 01 अप्रैल, 2023 से हरियाणा राजभाषा (संशोधन) कानून 2020 अधिनियम के तहत हिंदी भाषा में कामकाज शुरू हो गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय आदि अनेक न्यायालयों में हिंदी में निर्णय उपलब्ध कराने शुरू किए जा चुके हैं। न्यायालयों की वेबसाईटों पर भी हिंदी में निर्णय प्रकाशित किए जाने लगे हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) अपने फैसले की कॉपी हिंदी सहित छह भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने का निर्णय पहले ही ले चुका है।
कुल मिलाकर, हिंदी हर स्तर, हर क्षेत्र और हर दिशा में निरंतर अपना परचम फहरा रही है। नि:संदेह, यह हिंदी का नया स्वर्णिम दौर है! जय हिन्दी!!
- राजेश कश्यप
(स्वतंत्र पत्रकार, स्तम्भकार एवं समीक्षक)
टिटौली (रोहतक) हरियाणा-124005