उम्र के साथ साथ पत्नी के मुख्य डायलाग बदलते रहते हैं। वैवाहिक समेत जीवन के दूसरे कटु अनुभवों के कारण पति और पत्नी दोनों की बातचीत में, व्यंग्य भी प्रवेश कर जाता है, जिसे आमतौर पर ताना मारना कहा जाता है। पुराने और नए ताने एक दूसरे के बीच पारदर्शी समझ पैदा करने में भी सहायक होते हैं। शादी के बाद पत्नी एजी कहती है, सुनोजी पुकारती है। परिपक्व होती शादी के साथ, कुछ कोड वर्ड और संकेत पति पत्नी के बीच चलते हैं जो सालों कायम रहते हैं। कभी बदलते हैं तो तब तक रहते हैं जब तक पत्नी उन्हें धराशायी न कर दे।
ज़िंदगी की क्यारी में फिर कुछ ऐसे संवाद भी उग आते हैं, आपको आज तक समझ नहीं आया, आपको पता नहीं चलता, आप समझ रहे हो न। फिर उम्र जब बढ़ने नहीं घटने लगती है तो एक सख्त डायलॉग पत्नी की ज़बान पर ठिठकने लगता है। वह सोच समझ कर कहती है, मैं तो परेशान हो गई, अब आप इरिटेट करने लगे हो।
पत्नी ने उपदेश डायलॉग दागा, ‘शांति का दान दो’। पति ने पत्नी से निवेदन किया, किसी के सामने जब कुछ कहना हो तो कम से कम शब्दों में कहें। जैसे, ‘शांति का दान दो’ कहना हो तो कहें ‘एसकेडीडी’। इससे दूसरों को उत्सुकता तो हो सकती है लेकिन उन्हें समझ कुछ न आएगा। कोई पूछेगा नहीं, लेकिन अगर गलत किस्म का बंदा जानना चाहे तो कह दो यह हमारा व्यक्तिगत कोड वर्ड है। यह सुनकर वह चुप हो जाएगा। पत्नी इसके लिए तैयार हो गई लेकिन बोली, जब चाहूंगी कि आप चुप रहो तो बोलूंगी ‘एसीआर’ मैंने बोला, मतलब ‘आप चुप रहो’, वह बोली, हां।
अब हम जब भी बात को खत्म करना चाहते हैं तो हममें से कोई एक ‘एसकेडीडी’ बोल देता है। काफी देर तक चुप्पी रहने के बाद मैं ही बोलता हूं, ‘एएमकेके’। वो पूछती है इसका क्या मतलब है, खुद समझो इसका मतलब। मगर वह बोलती है, ‘एसकेडीडी’। फिर कहता हूं इसका मतलब है, ‘अब मैं क्या करूं’। वह जोर से बोलती है चुपचाप बैठे रहो। शांति जैसी ज़रूरी चीज़ हम एक दूसरे को उपहार में देते रहते हैं। फिर कुछ समय बाद कोई नई बात होती है, खुराफात की सौगात लाती है। पत्नी को मेरी बात पसंद नहीं आती। छोटी मोटी बहस के बाद फिर कहती है, ‘शांति का दान दो’ और शांति दान में चली जाती है।
किसी महिला रिश्तेदार के सामने कुछ ऐसा कहा गया जो पत्नी को पसंद नहीं आया, बोली, ‘एसकेडीडी’। रिश्तेदार को समझ नहीं आया, थोड़ा खफा भी हुई, कहा आप कोड वर्ड में मुझे गाली दे रहे हो। मैंने कहा यह सलाह मेरे लिए है यानी ‘शांति का दान दो’। उम्मीद है डायलॉग उन्हें खूब पसंद आया होगा और अपने जीवन में इसका प्रयोग शुरू कर दिया होगा।
- संतोष उत्सुक