By अभिनय आकाश | Nov 05, 2020
जुबान लड़खड़ा रही है, शब्द एक के ऊपर एक चढ़े जा रहे हैं। क्या बोलना है और क्या मुंह से निकल रहा है। इमरान खान को कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जिस जमीन पर पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम खड़े होकर ये बोल रहे हैं उसी जमीन पर पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बड़ा आंदोलन चल रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ मीरपुर, गिलगित बाल्टिस्तान और पूरा पीओके धधक रहा है। इमरान सरकार और बाजवा ब्रिगेड से आजादी की जंग शुरू हो गई है। हालात इतने गंभीर हैं कि पाकिस्तान गिलगित बाल्टिस्तान का गला घोंटने वाला है।
किसी जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले लोग अक्सर अपने अपराध को जायज दिखाने के लिए उस पर बागवानी शुरू कर देते हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान में भी पाकिस्तान ऐसा ही कर रहा है। पाकिस्तान गिलगित बाल्टिस्तान को अपना प्रांत बताकर वहां कूटनीति के फूल खिलाना चाहता है। एक बर्बाद मुल्क के प्रधानमंत्री अपनी हिलती हुई कुर्सी को बचाने के लिए गिलगित बाल्टिस्तान पर ऐलान कर रहे हैं। इमरान खान गिलगिल बाल्टिस्तान को अंतरिम प्रांत बनाने जा रहे हैं। ऐसा करते ही वो यूएन में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठा पाएंगे और अनुच्छेद 370 हटाने पर सवाल भी नहीं उठा पाएंगे।
इमरान के इस फैसले के पीछे दो वजह हैं-
पीओके में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज अब चिंगारी से ज्वाला में तब्दील हो गई है। कंडीशन इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि खुद इमरान को गिलगित आकर पाक सेना की शान में कसीदे पढ़ने पड़े।
गिलगित बाल्टिस्तान हजारों सालों से अखंड भारत का हिस्सा रहा है। लेकिन विभाजन के दौरान 2 नवंबर 1947 में इस क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया। तब से पीओके में आजादी का संघर्ष जारी है। पीओके वापस हिन्दुस्तान में शामिल होना चाहता है। और ऐसा न हो इसलिए इमरान खान झूठ बोलकर गिलगित की जनता को डरा रहे हैं। पाक सेना की तारीफ कर इमरान भारत के नाम से यहां की जनता को डरा रहे हैं। गिलगित बाल्टिस्तान को अंतरिम प्रांत बना रहे हैं। ये सब कुछ चीन के इसारे पर हो रहा है। एलएसी पर भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने हैं। दूसरी तरफ गिलगित बाल्टिस्तान से होकर चीन की सीपैक योजना गुजरती है। चीन को डर है भारत बड़ी कार्रवाई करते हुए पीओके को वापस न ले ले। जबतक गिलगित पाकिस्तान का प्रांत न बनेगा तब तक चीन इस क्षेत्र में पाकिस्तान की मदद के लिए अपनी सेना नहीं भेज सकता। सीधे शब्दों में कहे तो इमरान सरकार ने पीओके चीन के पास गिरवी रख दिया है और उसे दिखाना पड़ रहा है कि पीओके की रक्षा सिर्फ वही कर सकता है।
क्या है इस क्षेत्र का इतिहास
19वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह के सिख साम्राज्य का समय चल रहा था। 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद साम्राज्य बिखरने लगा। 1845 के आंग्र-सिख युद्ध में सिखों की हार हुई। मार्च 1846 में लाहौर की संधि हुई और व्यास और सतलुज के मध्य में पड़ने वाला बड़ा हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ा और साथ में मुआवजा भी मांगा गया। पैसे के बदले कश्मीर का हिस्सा हाथ से निकल गया कुछ वक्त बाद जम्मू के राजा गुलाब सिंह ने पैसे देकर कश्मीर के हिस्से को अंग्रेजों से खरीद लिया। कश्मीर खरीदने से पहले से ही गिलगित बाल्टिस्तान का इलाका डोगरा राजाओं के पास था। लेकिन 1846 के बाद वो भी जम्मू कश्मीर का हिस्सा हो गया। 19वीं सदी में क्षेत्रीय अहमियत को इस तरह से समझ सकते हैं कि इसको लेकर दो महाशक्तियों के बीच होड़ लगी थी। रूस को डर था कि ब्रिटेन इस रास्ते से बढ़ते हुए सेंट्रल एशिया में उसके नजदीक न आ जाए।
ब्रिटेन हर हाल में इस रास्ते से भारत आने के रास्तों को सुरक्षित करना चाहता था। इस लिहाज से गिलगित बाल्टिस्तान की बड़ी अहमियत हो गई। तब अंग्रेजों ने प्रांत के साथ मिलकर एक साझी व्यवस्था बनाई। 1889 में अंग्रेजों ने एक गिलगित एजेंसी बनाई जो उनकी तरफ से वहां का प्रशासन देखती है। सोवियत संघ का गठन हुआ जिसमें गिलगित के पड़ोसी देश किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान भी थे। 1935 में अंग्रेजों ने गिलगित को लीज पर ले लिया। 1947 में अंग्रेजों ने जाते-जाते लीज वाला इलाका महाराजा हरिसिंह को लौटा दिया।
ब्रिटिश अफसर ने किया था महाराज हरि सिंह से विश्वासघात
गिलगित बाल्टिस्तान को महाराज हरि सिंह ने 1935 में 60 साल के लिए ब्रिटिश सरकार को पट्टे पर दिया था. ब्रिटिश सरकार ने 1 अगस्त, 1947 को पट्टा निरस्त करके महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया था। महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किए। उस समय एलेक्जेंडर ब्राउन गिलगित-बाल्टिस्तान के सुरक्षा प्रमुख थे। वे गिलगित स्काउट फोर्स के प्रमुख भी थे। अलेक्जेंडर ब्राउन ने महाराजा हरि सिंह से विश्वासघात करके वहां पर पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया था।
मेजर विलियम ब्राउन की किताब गिलगित रिबैलियन जिसमें उन्होंने लिखा था कि उन्हें हरिसिंह के भारत में विलय का आभास हो गया था। इसलिए मेजर ब्राउन और उनके साथियों ने मिलकर प्लानिंग शुरू की। सबसे पहले राजा के गवर्नर को बंदी बनाया जाए और फिर वहां रह रहे सिखों और हिन्दुओं को रिफ्यूजी कैंप में शिफ्ट किया जाए। फिर पाकिस्तान को खबर की गई कि गिलगित बाल्टिस्तान में बगावत हो गई है और लोग पाकिस्तान में मिलने की मांग कर रहे हैं। सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ और 4 नवंबर 1947 को पाकिस्तान ने इस इलाके पर कब्जा कर लिय़ा। अप्रैल 1949 में पीओके और पाकिस्तान के हुक्मरानों के बीच कराची एग्रीमेंट नामक समझौता हुआ। जिसके माध्यम से गिलगित बाल्टिस्तान का कंट्रोल पीओके से लेकर पाकिस्तान की सरकार को सौंप दिया गया।
क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?
भारत पूरे जम्मू कश्मीर को अपना ‘अभिन्न अंग’ मानता है जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान दोनों आते हैं. इसलिए भारत जम्मू कश्मीर के किसी भी हिस्से को एक अलग पाकिस्तानी राज्य बनाए जाने के बिलकुल खिलाफ है।
बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध पाकिस्तान के चार प्रांत हैं।
पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान दोनों अलग-अलग इलाके हैं, जबकि भारत इन्हें जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा मानता है।
इन दोनों क्षेत्रों की अपनी विधानसभाएँ हैं और तकनीकी रूप से यह पाकिस्तान संघ का हिस्सा नहीं है।
पाकिस्तान कश्मीर के लिये एक विशेष मंत्री और संयुक्त परिषदों के ज़रिये उनका शासन करता है।
प्रत्यक्षतः दोनों क्षेत्र स्वतंत्र हैं, लेकिन विदेश और रक्षा मामले पाकिस्तान के नियंत्रण में हैं।
अभी तक गिलगित-बाल्टिस्तान स्वायत्त क्षेत्र है, जहाँ प्रादेशिक असेंबली के अलावा एक चुना हुआ मुख्यमंत्री भी है।
इसका कुल क्षेत्रफल 72,971 वर्ग किमी. है और इसका प्रशासनिक केंद्र गिलगित शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ढाई लाख है।
कुल लगभग 20 लाख की जनसंख्या में 14% शहरी आबादी वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में शिया मुस्लिमों की संख्या अधिक है।
पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर की 5 हजार वर्गमील वाली शक्सगाम घाटी का इलाका चीन को दे दिया था, जिससे होकर चीन ने कराकोरम राजमार्ग बना लिया।
1970 में पाकिस्तान ने गिलगित एजेंसी, बाल्टिस्तान, हुंजा और नगर इलाकों को मिलाकर नार्दन एरियाज़ का गठन किया था।
गिलगित-बाल्टिस्तान में कुल 7 ज़िले हैं, जिनमें से 5 गिलगित में और 2 बाल्टिस्तान में हैं तथा गिलगित और स्कर्दू से इनका प्रशासन चलाया जाता है।
पाकिस्तान ने एक योजना के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश जारी कर 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान में विधानसभा बनाई थी, ताकि इस क्षेत्र को अलग प्रांत बनाया जा सके।
गिलगित-बाल्टिस्तान की सीमाएँ पश्चिम में खैबर-पख्तूनख्वा से, उत्तर में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से, दक्षिण में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और दक्षिण-पूर्व में भारतीय जम्मू-कश्मीर राज्य से लगती हैं।
क्या है पाकिस्तान का मकसद
पाकिस्तान में चार प्रांत हैं- बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध. सरकार के नए क़ानून को अब गिलगित-बाल्टिस्तान को पांचवां प्रांत बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। 1 नवंबर को, गिलगित-बाल्टिस्तान में हर साल "स्वतंत्रता दिवस" के रूप में मनाया जाता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने घोषणा की कि उनकी सरकार इस क्षेत्र को "अस्थायी प्रांतीय दर्जा" देगी। जब ऐसा होगा, गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान का पांचवा प्रांत बन जाएगा हालाँकि यह क्षेत्र भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर की पूर्व रियासत के हिस्से के रूप में दावा किया जाता है, क्योंकि यह 1947 में भारत में अपने प्रवेश के समय मौजूद था।
पाकिस्तान ने बाद में गिलगित-बाल्टिस्तान के उत्तर में मौजूद एक इलाके को कारकोरम राजमार्ग के निर्माण के लिए चीन को दे दिया। चीन ने इस इलाके के खनिजों और संसाधनों के दोहन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किए हुए हैं। इस क्षेत्र में चीन की पहुंच और पाकिस्तान के अवैध शासन ने वहां पर अलगाववादी आंदोलन को भी जन्म दिया।
इस क्षेत्र के लोग तीन हजार किलोमीटर लंबे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपेक का विरोध कर रहे हैं। इस परियोजना में चीन ने 46 अरब डॉलर का निवेश किया है। चीन का प्लान यह है कि दक्षिण पाकिस्तान को सड़क, रेलवे और पाइपलाइन के एक जाल के जरिए पश्चिमी चीन से जोड़ दिया जाए। चीन अपनी इस नीति के जरिए पूरे क्षेत्र पर कंट्रोल कर लेना चाहता है।
पाकिस्तान के डॉन अखबार ने सितंबर में खबर दी थी कि सरकार और विपक्ष इस क्षेत्र को "अस्थायी प्रांतीय दर्जा" देने पर "लगभग एक आम सहमति" पर पहुंच गए थे। अखबार के अनुसार पाकिस्तान सेना भी दिलचस्पी ले रही है, और सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने इस मामले पर राजनीतिक नेतृत्व के साथ चर्चा भी की।
गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान ऐसी चालें क्यों चल रहा है?
- गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा है
- इस पर 1947 में पाकिस्तान ने अवैध कब्जा किया था
- 73 हजार वर्ग किलोमीटर के इस इलाके में करीब 20 लाख लोग रहते हैं
- इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है, इसकी सीमाएं उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से जुड़ती हैं.
- अपने इसी भूगोल की वजह से ये इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है
- अफगानिस्तान और चीन का बॉर्डर होने से ये इलाका रणनीतिक रूप से अहम है
- इस इलाके से ही होकर पाकिस्तान के अंदर चीन का आर्थिक कॉरिडोर जाता है
ये हो सकती हैं वजहें
पाकिस्तान का संविधान गिलगित-बाल्टिस्तान या पीओके को पाकिस्तान में मिलाने की इजाजत नहीं देता। इसके बावजूद अगर इमरान खान और जनरल बाजवा अचानक गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम सूबा बनाने का स्टंट कर रहे हैं तो इसके पीछे कई वजह हैं।
पहली वजह- गिलगित-बाल्टिस्तान में इसी नवंबर में स्थानीय चुनाव होने वाले हैं
दूसरी वजह- गिलगित-बाल्टिस्तान सहित पीओके की आवाज दबाने की कोशिश है
तीसरी वजह- इमरान सरकार और पाकिस्तानी सेना पर उठे सवालों से बचने की कोशिश है।
चौथी वजह- इमरान और जनरल बाजवा की लड़खड़ाती कुर्सी को संभालने की कोशिश है।
पांचवीं वजह- गिलगित-बाल्टिस्तान के स्टेटस को लेकर चीन की तरफ से आया दबाव है।
भारत के लिए क्यों है महत्वपूर्ण?
यह इलाका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से लगा हुआ है। इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से यह इलाका भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत, उत्तर में चीन और अफगानिस्तान और पूरब में भारत है, जिसमें दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का स्थल सियाचिन भी शामिल है। गिलगित-बाल्टिस्तान 1947 तक वजूद में रही जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा रहा था इसलिए यह पाकिस्तान के साथ क्षेत्रीय विवाद का हिस्सा है। वहां की मूल आबादी के हितों की रक्षा की आवाज विश्व स्तर पर भी उठाते रहना चाहिए. दुनिया के सामने जोर शोर से यह बात रखनी चाहिए कि यह क्षेत्र भारत का हिस्सा है और षड्यंत्र व धोखे से पाकिस्तान द्वारा हथियाया गया है।- अभिनय आकाश