बच्चियों व जवान महिलाओं की लिस्ट बना रहा है तालिबान, अपनी मेहनत पर पानी फिरता देख बाइडन पर भड़के बुश

By नीरज कुमार दुबे | Jul 16, 2021

यह तो सबको पता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले के बाद अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोड़कर अपने देश लौटने लगी है जिससे अफगानिस्तान एक बार फिर तालिबान के हाथों में जाता दिख रहा है। पूरी दुनिया अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंतित है लेकिन बाइडन को कोई फर्क नहीं पड़ता। बाइडेन की हर जगह आलोचना तो हो ही रही है और अब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने भी बाइडन पर हमला बोल दिया है और अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं की वापसी के फैसले को गलत करार दिया है। जॉर्ज बुश ने कहा है कि अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं को वापस बुलाकर अफगानी नागरिकों को तालिबान के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया गया है। जर्मनी के एक चैनल से बातचीत में बुश ने कहा, 'अफगानिस्तान की महिलाएं और लड़कियां ऐसी पीड़ा से गुजर रही हैं, जिसे वे बयां भी नहीं कर सकतीं। यह एक बड़ी गलती है। उन्हें बेहद क्रूर तालिबानियों के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया गया है। इससे मेरा दिल टूट रहा है।' हम आपको बता दें कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ही सन् 2001 में अमेरिका और सहयोगी देशों को अफगानिस्तान भेजने का फैसला लिया था। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद यह फैसला लिया गया था।

इसे भी पढ़ें: अफगान मुद्दे पर बगलें झाँक रहे हैं भारत और पाक, चीन भी घबराया हुआ है

देखा जाये तो बुश का यह डर गलत नहीं है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने ऐसी लड़कियां जिनकी उम्र 15 साल से ज्यादा है और ऐसी विधवा महिलाएं जिनकी उम्र 45 साल से कम है उनकी सूची बनाना शुरू कर दिया है ताकि उनकी शादी अपने लड़ाकों से करा सकें। यदि तालिबान ऐसा करने में सफल रहता है तो निश्चित ही यह अफगान महिलाओं और बच्चियों पर बड़ा अत्याचार होगा।


अपने फैसले के पक्ष में क्या कह रहे हैं बाइडन


दूसरी ओर अपने फैसले के समर्थन में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान में अमेरिका ‘राष्ट्र निर्माण’ के लिए नहीं गया था। अमेरिका के सबसे लंबे समय तक चले युद्ध से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने के अपने निर्णय का बचाव करते हुए बाइडन ने कहा कि अमेरिका के चाहे कितने भी सैनिक अफगानिस्तान में लगातार मौजूद रहें लेकिन वहां की दुसाध्य समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जा सकेगा। बाइडन ने अफगानिस्तान पर अपने प्रमुख नीति संबोधन में कहा कि अमेरिका ने देश में अपने लक्ष्य पूरे कर लिए हैं और सैनिकों की वापसी के लिए यह समय उचित है। बाइडन ने व्हाइट हाउस में दोहराया कि ‘‘अफगानिस्तान में हमारा सैन्य मिशन 31 अगस्त को पूरा हो जाएगा। सैनिकों की वापसी का काम सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से हो रहा है जिसमें वापस लौट रहे हमारे सैनिकों की सुरक्षा सर्वप्रथम है।’’ उल्लेखनीय है कि युद्ध का केंद्र रहे बगराम एयरबेस भी अमेरिकी सैनिकों ने छोड़ दिया है। बाइडेन ने कहा कि अफगानिस्तान के भविष्य के बारे में फैसला करने का और देश को किस तरह चलाना है, यह अधिकार और जिम्मेदारी सिर्फ अफगान लोगों की है।’’ बाइडन ने कहा कि इन बीस साल में एक हजार अरब डॉलर खर्च हुए, 2,448 अमेरिकी सैनिक मारे गए और 20,722 सैनिक घायल हुए। उन्होंने कहा कि दो दशक पहले, अफगानिस्तान से अल-कायदा के आतंकवादियों के हमले के बाद जो नीति तय हुई थी अमेरिका उसी से बंधा हुआ नहीं रह सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘बिना किसी तर्कसम्मत उम्मीद के किसी और नतीजे को प्राप्त करने के लिए अमेरिकी लोगों की एक और पीढ़ी को अफगानिस्तान में युद्ध लड़ने नहीं भेजा जा सकता।’’


भारत की भूमिका क्या होगी ?


अब अमेरिका ने तो अफगानिस्तानियों को तालिबान के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया है लेकिन भारत यह सब खामोशी से देखता नहीं रह सकता। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ताशकंद में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात कर युद्धग्रस्त देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां तेजी से बिगड़ रही स्थिति पर चर्चा की और अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और विकास के प्रति भारत का समर्थन दोहराया। अफगानिस्तान में हाल के सप्ताहों में तालिबान ने सिलसिलेवार हमलों को अंजाम दिया है। ऐसे में भारत किस तरह अफगान सरकार का समर्थन जारी रखता है यह देखने वाली बात होगी। इस बीच, भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के अफगानिस्तान में मारे जाने से वहां रह रहे या काम कर रहे भारतीयों की चिंता बढ़ गयी है।


अफगानिस्तान के पड़ोसियों की चिंता


दूसरी ओर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में अमेरिका के राजनयिकों ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद किसी भी बाहरी आतंकवादी के फिर से सिर उठाने पर प्रतिक्रिया देने के लिए पास के किसी स्थान को सुरक्षित रखने पर काम करने की दिशा में इस हफ्ते मध्य एशियाई नेताओं का समर्थन जुटाने के लिए अभियान को तेज कर दिया है। भले ही उच्च स्तरीय अमेरिकी राजनयिक क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं लेकिन उन्हें अफगानिस्तान के पड़ोसियों से ज्यादा संदेह का सामना करना पड़ रहा है जो अमेरिका के साथ किसी भी सुरक्षा भागीदारी को लेकर सतर्क हैं। यह 2001 के ठीक उलट है, जब मध्य एशियाई देशों ने अपने-अपने क्षेत्र अमेरिकी सैन्य अड्डों, सैनिकों और अन्य पहुंच के लिए उपलब्ध कराए थे जब अमेरिका अफगानिस्तान में अल-कायदा द्वारा रची गई 9/ 11 की साजिश का जवाब देने की तैयारी में था।


पाकिस्तान क्या कर रहा है?


दूसरी ओर, पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत से सटी अफगानिस्तान की सीमा के प्रमुख रास्ते को बंद कर दिया है। अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों द्वारा महत्वपूर्ण 'स्पिन बोल्डक क्रॉसिंग' पर कब्जा जमाने की रिपोर्ट के बाद पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है। चमन के सहायक आयुक्त आरिफ काकर ने मीडिया को इस बात की पुष्टि की कि अफगानिस्तान से सटे चमन बॉर्डर पर 'मैत्री द्वार' रास्ते को बंद कर दिया गया है। इस बीच एपी की खबर के मुताबिक, तालिबान ने पाकिस्तान से सटे अहम रणनीतिक बिंदु स्पिन बोल्डक पर अपना नियंत्रण होने की घोषणा की है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें कथित तौर पर तालिबानी लड़ाके दक्षिण-पूर्वी शहर स्पिन बोल्डाक में नजर आ रहे हैं। वहीं, अफगानिस्तान की सीमा से सटे पाकिस्तानी शहर चमन के लोगों ने भी सीमा रेखा के पार तालिबान के झंडे लहरते देखे और तालिबानी लड़ाकों के वाहन भी देखे गए। उल्लेखनीय है कि स्पिन बोल्डक पाकिस्तान के चमन शहर से सटी अफगान सीमा का एक अहम रणनीतिक बिंदु है, जिसके जरिए दोनों देशों के बीच बड़े स्तर पर व्यापार होता है। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में इस अहम बिंदु के आसपास तालिबानी लड़ाकों का नियंत्रण होने का दावा किया गया है। हालांकि, अफगान सरकार के अधिकारियों ने इसका खंडन किया है और कहा है कि स्पिन बोल्डक उनके नियंत्रण में है।

इसे भी पढ़ें: बड़े बेआबरू होकर अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान से बाहर निकली हैं

इस बीच, अफगानिस्तान के पहले उप राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने ट्विटर पर पाकिस्तान की पोल खोलते हुए कहा है कि पाकिस्तान वायु सेना कई इलाकों में तालिबान को नजदीकी हवाई सहायता प्रदान कर रही है। अमरुल्ला सालेह ने बताया "पाकिस्तानी वायु सेना ने अफगान सेना और अफगान वायु सेना को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि स्पिन बोल्डक क्षेत्र से तालिबान को हटाने के किसी भी कोशिश पर पाकिस्तान वायु सेना का सामना करना होगा।" 


चीन की चाल क्या है ?


अब अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है उस पर चीन क्या सोचता है। तो चलिये आपको यह भी बताये देते हैं। चीन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी का स्वागत किया है और कहा कि इससे देश को अपने लोगों की नियति अपने हाथों में लेने का एक नया मौका मिलेगा। चीन ने साथ ही विद्रोही तालिबान से आतंकवादी समूहों के साथ सभी तरह के संबंधों को खत्म करने का आह्वान भी किया है। चीन ने अफगानिस्तान में आक्रामक गतिविधियां तेज कर रहे तालिबान संबंधी अहम नीतिगत बयान में संगठन से विशेषकर ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (ईटीआईएम) समेत सभी आतंकवादी बलों से ‘‘पूरी तरह संबंध तोड़ने’’ को कहा है। हम आपको बता दें कि अलकायदा समर्थित उइगर मुसलमान आतंकवादी समूह ईटीआईएम चीन के शिनजियांग प्रांत की आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है। चीन ईटीआईएम के सैंकड़ों लड़ाकों को लेकर चिंतित है। ईटीआईएम उइगर मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में विद्रोह भड़काने की कोशिश कर रहा है। शिनजियांग की सीमा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और ताजिकिस्तान से भी लगती है। उधर, तालिबान ने कहा है कि वह चीन को अफगानिस्तान के ‘मित्र’ के रूप में देखता है और बीजिंग को आश्वस्त किया है कि वह अशांत शिनजियांग प्रांत के उइगुर इस्लामी चरमपंथियों को अपने यहां पनाह नहीं देगा। मीडिया में आई एक खबर में यह जानकारी दी गई है। यह भी खबर है कि अफगानिस्तान में चीन बड़े पैमाने पर निवेश करने की सोच रहा है क्योंकि वहां अब तक दोहन नहीं किये गये तांबा, कोयला, लोहा, गैस, कोबाल्ट, पारा, सोना, लिथियम और थोरियम का विश्व का सबसे बड़ा भंडार है।


हालात बहुत विकट हैं


बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संबंधी मामलों की एजेंसी ने बताया है कि अफगानिस्तान में असुरक्षा तथा हिंसा के कारण जनवरी से करीब 2,70,000 लोग विस्थापित हुए हैं। साथ ही एजेंसी ने तालिबान लड़ाकों द्वारा बड़ी संख्या में क्षेत्रों पर तेजी से कब्जा करने और युद्धग्रस्त देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर सुरक्षा चिंताओं के बढ़ने पर अफगानिस्तान में एक आसन्न मानवीय संकट को लेकर आगाह किया है। संयुक्‍त राष्‍ट्र शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय ने कहा, ‘‘अफगानिस्तान में बढ़ते मानवीय संकट के कारण मानवीय पीड़ा और नागरिकों के विस्थापन में वृद्धि हुई है।’’ एजेंसी ने कहा, ''हालिया सप्ताह में अपने घरों से भागने के लिए मजबूर परिवारों ने इसके लिए बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को बड़ा कारण बताया है।’’ यह एक चेतावनी है कि अफगानिस्तान में शांति समझौते तक पहुंचने तथा वर्तमान हिंसा को रोकने में विफलता से देश के भीतर साथ ही पड़ोसी देशों और उससे आगे भी विस्थापन होगा। अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के मिशन के अनुसार, 2020 की तुलना में इस साल पहली तिमाही में लोगों के हताहत होने के मामलों में 29 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इनमें से अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। इस समय वहां जो लोग घर छोड़ रहे हैं वह बहुत विपरीत परिस्थितियों में हैं दुनिया को इस पर ध्यान देना चाहिए और अमेरिका चाहे तो अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे क्योंकि खुद अमेरिकी सेना के बड़े पदों पर रहे अधिकारियों ने चेताया है कि अफगानिस्तान को इस हालात में छोड़ना बेहद भयावह होगा।


- नीरज कुमार दुबे

प्रमुख खबरें

Hair Growth Toner: प्याज के छिलकों से घर पर बनाएं हेयर ग्रोथ टोनर, सफेद बाल भी हो जाएंगे काले

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा