इंदिरा को स्वीटी कहकर बुलाने वाला जनरल, जिसने 1000 रुपये के बदले आधा पाकिस्तान ले लिया

By अभिनय आकाश | Dec 17, 2021

एक युवा जिसे लंदन नहीं जाने दिया तो गुस्सा होकर सेना में जाने का फॉर्म भर दिया। एक सैन्य अफसर जो देश के प्रधानमंत्री को स्वीटी कहकर बुलाता था। वीरों के वीर जिसने 1000 रुपये के बदले में आधा पाकिस्तान ले लिया। एक फील्ड मार्शल जिससे तख्तापलट का डर इंदिरा गांधी को सताने लगा था। एक महावीर जिसने पड़ोसी मुल्क को कहा था याद कर लो 71 वरना टुकड़े होंगे 72। आज बात करेंगे उस नाम की जिसे सुनकर पाकिस्तान आज भी थर्रा जाता है। वीरों के वीर हिन्दुस्तान के सबसे महान सैनिक और भारतीय सेना के सबसे लोकप्रिय जनरल की कहानी सुनाते हैं। कहानी सैम बहादुर यानी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की। देश की आजादी के बाद अभी तक शौर्य और साहस की जितनी कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं, उनमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वीरगाथा सबसे अलग है। भारत के सबसे बड़े दुश्मन मुल्क पाकिस्तान की कमर तोड़कर दो हिस्सों में विभाजित कराने वाले सैम मानेकशॉ शूरता और वीरता की मिसाल थे।

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सैम मानेकशाॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बहुत दिलचस्प रहा। अमृतसर में पला-बढ़ा एक पारसी बच्चा पापा की तरह एक डॉक्टर बनना चाहता था। इसलिए वो लंदन जाना चाहता था क्योंकि उसके दो भाई पहले से वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। पापा ने कहा कि तुम अभी छोटे हो इस बात से गुस्सा होकर सैम ने इंडियन मिलिट्री में शामिल होने के लिए फॉर्म भर दिया। उसका चयन भी हो गया, मेरिट लिस्ट में छठे नंबर पर। यहां से शुरू हुआ सैम का करियर दूसरे वर्ल्ड वॉर से लेकर भारत की आजादी, बंटवारा, भारत चीन युद्ध के बाद भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद खत्म हुआ। 1971 वॉर में उनकी भूमिका का खास जिक्र किया जाता है। क्योंकि पूरी तरह से उनकी प्लानिंग और स्ट्रैटजी के मुताबिक लड़ा गया था। 

सात गोलियां लगी और डॉक्टर से इलाज करने से कर दिया था मना...

कमीशन हासिल करने के बाद साल 1934 में सैम भारतीय सेना में भर्ती हो गए। उस वक्त भारत अंग्रेजों का गुलाम था, तो सेना भी उसके ही अंडर में थी। दूसरे वर्ल्ड वॉर के लिए सैम को बर्मा के मोर्चे पर भेजा गया। वहां फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर जापानियों से मुकाबला करते हुए वह गंभीर रूप से घायल हो गए। बताया जाता है कि मानेकशॉ को सात गोलियां लगी थीं। उनकी गंभीर हालत देख डॉक्टर ने इलाज करने से ही मना कर दिया। यह देख एक सैनिक ने डॉक्टर पर रायफल तान दी और कहा, 'मेरे साब का हुक्म है जब तक जान बाकी है तब तक लड़ो। यदि तुमने इनका इलाज नहीं किया तो मैं तुम्हे गोली मार दूंगा।' जान जाती देख डॉक्टर ने इलाज शुरू किया। उनकी आंत का क्षतिग्रस्त हिस्सा काट दिया। आश्चर्यजनक रूप से सैम बच गए।

मानेकशॉ ने बदल दिया पाकिस्तान का नक्शा

कैसे इस जनरल ने 1971 के युद्ध में भारत की जीत की स्किप्ट लिखी थी ये बताते हैं। साल था 1971 का और जगह थी पूर्वी पाकिस्तान जो आज का बांग्लादेश। जहां पाकिस्तानी शासन के जुल्म से हालात बेकाबू थे। कमजोर बांग्लादेश जल्लाद पाकिस्तान के साथ क्या करता। पड़ोसी होने के नाते हमारा फर्ज था कि जल्लादों से एक उभरते मुल्क को बचाएं। इसकी कमान मानेकशॉ को सौंपी गई। जिसका नतीजा हुआ पाकिस्तान के दो टुकड़े। दरअसल, 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया। पाकिस्तान ने अमृतसर, आगरा सहित कई शहरों पर बमबारी की। पाकिस्तान की इसी कारिस्तानी के बाद 1971 के युद्ध की शुरुआत हुई। पाकिस्तान ये भूल गया था कि वो एक ऐसे देश से टकरा रहा है जिसकी सेना की ताकत पाकिस्तान से कहीं अधिक है। अंजाम ये रहा कि 16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा और पाकिस्तान का नक्शा ही बदल गया। लेकिन ये क्या आपको बता है कि जनरल मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी को पाकिस्तान से जंग लड़ने से इनकार कर दिया था। मानेकशॉ के इनकार की वजह क्या थी और इंदिरा गांधी ने इनकार के बाद क्या किया अब आपको आगे बताते हैं। 

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जब मानेकशॉ ने जंग लड़ने से कर दिया था इनकार

आपको बता दें कि 1971 का युद्ध लड़ने के लिए पहले मानेकशॉ तैयार नहीं थे। पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं पर सितम का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा था। पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू किया तब उनका पहला निशाना हिन्दू ही थे। 1971 ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ क्रिएशन ऑफ बांग्लादेश पलायन पर एक बात दर्ज की है। उन्होंने लिखा है कि ऑपरेशन के शुरुआती दिनों में पूर्वी पाकिस्तान से पलायन करने वाले 80 फीसदी लोग हिन्दू थे। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्च लाइट को हरी झंडी दिखाई थी। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवाद के आंदोलन को कुचलने की शुरुआत की गई थी। आंदोलन के प्रणेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया था।अत्याचार के शिकार लोग भागकर भारत आने लगे।  तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ से पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई करने को कहा। इंदिरा गांधी ने बंगाल के मुख्यमंत्री की एक रिपोर्ट जिसमें शरणार्थियों की बढ़ती समस्या पर गहरी चिंता जताई गई थी। जनरल मानेकशॉ की तरफ फेंकते हुए सवालिया लहजे में कहा- क्या कर रहे हो सैम? मानेकशॉ ने जवाब दिया- इसमें मैं क्या कर सकता हूं। इंदिरा गांधी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा- "I want you to march in East Pakistan"जनरल ने बड़े इत्मिनान से जवाब दिया- इसका मतलब तो जंग है मैडम। प्रधानमंत्री ने भी अपने अंदाज में कहा- जो भी है, मुझे इस समस्या का हल चाहिए। इंदिरा गांधी के इस आदेश को सुनकर मानेकशॉ चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा- मैडम आपने बाइबल पढ़ी है? मीटिंग में इस सवाल को चुनकर स्वर्ण सिंह ने विरोध करते हुए कहा इसका बाइबल से क्या संबंध है। मानेकशॉ ने जवाब दिया- पहले अंधेरा था, ईशा बोले उन्हें रौशनी चाहिए और रौशनी हो गई। लेकिन ये बाइबल जितना आसान नहीं है कि आप कहे कि मुझे जंग चाहिए और जंग हो जाए। मीटिंग में मौजूद वित्त मंत्री यशवंत चौव्हाण ने वो सवाल किया जो जनरल की डिक्शनरी में था ही नहीं। उन्होंने पूछा कि क्या तुम डर गए हो जनरल?  मानेकशॉ ने कहा मैं एक फौजी हूं, बात डरने की नहीं समझदारी और फौज की तैयारी की है। इस समय हम तैयार नहीं हैं। अगर आप चाहती हैं तो हम लड़ लेंगे। लेकिन मैं गारंटी देता हूं हम हार जाएंगे। दरअसल, सैम जानते थे कि गर्मियों के मौसम में हिमालय में बर्फ पिघलना शुरू हो गई है। वहां मौजूद दर्रे खुलने लगेंगे और पाकिस्तान की मदद के लिए उसका पड़ोसी दोस्त चीन आ खड़ा होगा। सैम मानेकशॉ एक ऐसे योद्धा थे जो जानते थे कि युद्ध के लिए केवल नीयत ही नहीं नीति की भी जरूरत होती है इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री जैसी शख्सियत को ना करने का माद्दा दिखाया।  जिसका फायदा ये हुआ कि भारतीय सेना को युद्ध में उतरने के लिए तैयारी करने का अतिरिक्त समय मिल गया। नतीजा जब पाकिस्तान ने हवाई हमला किया तो उसका मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी की जा चुकी थी। 16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान ने 92 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर की वो तस्वीरें इतिहास के पन्नों में एक अहम अध्याय की तरह दर्ज हैं। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान का नया नामकरण हुआ और बांग्लादेश के नाम से एक आजाद मुल्क अस्तित्व में आया। भारत बांग्लादेश को मान्यता देने वाला पहला देश था। जनरल सैम मानेकशॉ के सिर पर जीत का सेहरा बंधा। इस जीत के लिए मानेकशॉ को अनेक सम्मान प्राप्त हुए। 1972 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। इससे पहले वो पद्म भूषण से भी सम्मानित किए गए। 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया। लेकिन 27 जून 2008 वो काला दिन था जब इस महायोद्धा ने हम सबको अलविदा कह दिया। 

मोटरसाइकिल कीमत पाकिस्तान ने आधा देश देकर चुकाई

मानेकशॉ और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान एक साथ फौज में थे और दोस्त हुआ करते थे। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार साल 1947 में मानेकशॉ और यहया ख़ां दिल्ली में सेना मुख्यालय में तैनात थे। यहया ख़ां को मानेकशॉ की मोटरबाइक बहुत पसंद थी। वह इसे ख़रीदना चाहते थे लेकिन सैम उसे बेचने के लिए तैयार नहीं थे। यहया ने जब विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने का फ़ैसला किया तो सैम उस मोटरबाइक को यहया ख़ां को बेचने के लिए तैयार हो गए। दाम लगाया गया 1,000 रुपए। यहया मोटरबाइक पाकिस्तान ले गए और वादा कर गए कि जल्द ही पैसे भिजवा देंगे। सालों बीत गए लेकिन सैम के पास वह चेक कभी नहीं आया। बहुत सालों बाद जब पाकितान और भारत में युद्ध हुआ तो मानेकशॉ और यहया ख़ां अपने अपने देशों के सेनाध्यक्ष थे। लड़ाई जीतने के बाद सैम ने मज़ाक किया, "मैंने यहया ख़ां के चेक का 24 सालों तक इंतज़ार किया लेकिन वह कभी नहीं आया। आखिर उन्होंने 1947 में लिया गया उधार अपना आधा देश देकर चुकाया।

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इंदिरा गांधी को कहते थे स्वीटी 

सैम मानेकशॉ की शख्सियत इतनी जोरदार थी कि किसी से भी आंखे मिलाकर उसके वजूद को झकझोड़ देता था। चेहरे पर रौबिले मूंछ और हाजिरजवाब मानेकशॉ के पास प्रधानमंत्री को स्वीटी कहने का हुनर था। जब 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से पूछा था कि क्या लड़ाई की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं? इस पर मानेकशॉ ने तपाक से कहा था ‘I am always ready Sweety’। उस दौर में जब इंदिरा गांधी से लोग खौफ खाते थे तब सैम इंदिरा को बड़ी बेबाकी से जवाब देते थे। वहीं जब लड़ाई के मैदान में सात गोलियां लगने के बाद जब जनरल मानेकशॉ मिलिट्री अस्पताल पहुंचाए गए, तब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या हुआ है। मानेकशॉ का कहना था कि अरे कुछ नहीं, एक गधे ने लात मार दी।

जब मिजोरम में बटालियन को भेजी चूड़ियां

बात 1962 की है जब मिजोरम की एक बटालियन ने उग्रवादियों से लड़ाई में हिचकिचाहट दिखाई। जब इस बारे में मानेकशॉ को पता  चला तो उव्होंने चूड़ियों का एक पार्सल बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को एक नोट के साथ भेजा। नोट में लिखा था अगर आप दुश्मन से लड़ना नहीं चाहते हैं तो अपने जवानों को ये चूड़िया पहनने को दे दें। जिसके बाद बटालियन ने इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। 

इंदिरा को हुई तख्तापलट की आशंका

जब सेना द्वारा तख्तापलट की अफवाह फैली तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने सैम मानेकशॉ से पूछा। उन्होंने बोल्ड अंदाज में जवाब दिया, ‘आप अपने काम पर ध्यान दो और मैं अपने काम पर ध्यान देता हूं। राजनीति में मैं उस समय तक कोई हस्तक्षेप नहीं करूंगा, जब तक कोई मेरे मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

-अभिनय आकाश 

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