By अभिनय आकाश | Dec 30, 2020
‘’तानाशाह कभी भी उतने मजबूत नहीं होते जितना कि वे खुद को बताते हैं। लोग कभी इतने कमजोर नहीं होते जितना कि वे खुद को कमजोर सोचते हैं।’’
जीन शार्प
उम्र करीब 83 साल, डंडे के सहारे चलने वाले वयोवृद्ध जिनके नाम से तानाशाह भी कांपने लग जाते। नाम- 'जीन शार्प' जिन्होंने 'तानाशाही से लोकतंत्र तक' नामक किताब लिखी जिसे शांतिपूर्ण प्रतिरोध की ऐतिहासिक पुस्तक माना जाता है। जीन शार्प अहिंसक क्रांति पर दुनिया के सबसे अग्रणी विशेषज्ञ हैं। उनके काम का 30 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है, उनकी किताबें सीमाओं के पार गई है।
कौन हैं जीन शार्प
1950 के दशक में जब सैनिक के रूप में शार्प को कोरिया युद्ध में जाने का आदेश दिया गया था, तो उन्होंने इस आदेश को नहीं माना और इसकी वजह से उन्हें 9 महीने जेल में काटने पड़े। 30 साल तक वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्यापक रहे। 1973 में उनकी पुस्तक आई, जिसका नाम था "अहिंसात्मक आंदोलन की राजनीति"। वेनेजुएला, ईरान या बर्मा में उनके खिलाफ सीआईए एजेंट होने के आरोप लगाए गए। इसके जवाब में एक थकी सी मुस्कान के साथ वह कहते हैं, "मैं कभी भी किसी सरकार से हाथ मिलाकर नहीं चलूंगा।" और हां, अपनी पुस्तकों से उन्होंने एक पैसा भी नहीं कमाया है। उनके दो आदर्श पुरुष हैं, महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग।
उन्होंने एक किताब लिखी थी The Politics of Nonviolent Action जिसमें बताया कि सरकार को कैसे अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीके से ध्वस्त किया जा सकता है। राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर जीन शार्प महात्मा गांधी, हेनरी डेविड के बारे में अध्ययन करना उनके पीएचडी विषय का हिस्सा था। जिसके बाद वो कुछ तरीकों को लेकर सामने आए जिसमें अहिंसक रूप से किसी देश को कैसे ध्वस्त किया जा सकता है। अगर हम इसे पहली नजर में देखें तो ये आंदोलन हमें अहिंसक, लोकतांत्रिक और एक वैध मांगों को पूरा करने वाला चित्रण वाला लगे।
जीन शार्प के विचार गांधी, डेरी हेविड के ऊपर गहन अध्यन और अन्य स्रोतों से प्रेरित है। शार्प ने 1972 में प्रकाशित पुस्तक The Politics of Nonviolent Action के फुटनोट्स में इस बात का जिक्र किया है। जो कि उनके 1968 के शोध पत्र का हिस्सा रहा है। उन्होंने स्वयं की लिखी पुस्तक 'Three volume classic on civil disobedience' में एक व्यावहारिक राजनीतिक विश्लेषण के माध्यन से किसी विवाद में अहिंसा का मार्ग अपना कर कैसे कार्रवाई की जा सकती है इसे बताया है। कुछ लोग उन्हें अहिंसा का मैकियावेली कहते हैं, जबकि अन्य उसे अहिंसक रणनीतिकार कहते हैं।
जीन शार्प का नुस्खा है- "सबसे पहले पता लगाओ कि सरकार कहां मजबूत और कहां कमजोर है"। वह कहना नहीं भूलते कि हर तानाशाही की कमजोरियां होती हैं। और उनकी सबसे बड़ी सीख है कि अपनी आजादी की खातिर हिंसा के बदले अहिंसक प्रतिरोध।
मिस्र का आंदोलन
मिस्र और ट्यूनीशिया में जिस तरह से अहिंसक आंदोलन हुए और जिस तरह से आंदोलन का नेतृत्व किया गया, उससे पूरी दुनिया हैरान थी। जब साल 2011 में काहिरा में तहरीर स्कवेयर पर ढाई लाख लोगों ने जमा होकर राष्ट्रपति होस्नी मुबारक से सत्ता छोड़ने की मांग की। मिस्र में अनुवाद पुस्तिकाएं वितरित की गईं। पर्चे के जरिये तानाशाही के दिल पर हमला करने का संदेश दिया गया। इससे आम लोग काफी प्रभावित हुए। भारी विरोध प्रदर्शनों की वजह से मिस्र की सत्ता पर 30 वर्ष से काबिज हुस्नी मुबारक को पद छोड़ना पड़ा था। इस मार्च का उद्देश्य राष्ट्रपति को सत्ता से बेदखल करना था। जेने शार्प थ्योरी का मिस्त्र में प्रयोग किया गया था। जेनी शार्प, संयुक्त राज्य अमेरिका के एक बुजुर्ग आधुनिक गांधीवादी विचारक और अहिंसा के प्रस्तावक, बाद की रिपोर्टों के अनुसार मिस्र और ट्यूनीशिया में लोकप्रिय विद्रोह के लिए प्रेरणा का स्रोत थे।
कुछ इसी तरह का प्रयोग यूक्रेन में रूस के विरूद्ध अपनाया गया। बैंक, सरकारी कार्यालय,उद्योग धंधे को ठप्प करना, लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाना। इस तरह के प्रयोग सरकारों को अस्थिर करने में काफी कारगर भी सिद्ध हुए हैं।
किर्गिज़स्तान में विपक्षी समर्थकों ने कई सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया और नये सिरे से चुनाव कराने की मांग की। इस दौरान हुई झड़प में सैकड़ों लोग घायल हुए जबकि एक व्यक्ति की मौत हुई है। किर्गिज़स्तान के केंद्रीय चुनाव आयोग ने राजधानी बिश्केक और अन्य शहरों में भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद सप्ताहांत में हुए संसदीय चुनाव के नतीजों को अमान्य करार दिया।
अहिंसक कार्रवाई क्या है?
अहिंसक कार्रवाई सामाजिक राजनीतिक कार्रवाई की एक तकनीक है जिसका इस्तेमाल किसी भी विवाद में बगैर बल का प्रयोग करने के लिए किया जाता है। अहिंसक कार्रवाई किसी भी तरह की भूल चूक या किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन नही किये जाने, आदेश का पालन नही किये जाने की स्थिति में भी लागू होनी चाहिए। या फिर कोई व्यक्ति अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का काम कर देता है या फिर मना करने के बाद भी किसी कार्य मे हस्तक्षेप करता है, उस स्थिति में भी अहिंसक तरीकों का ही इस्तेमाल कर स्थिति को काबू में रखना चाहिए। गैर-हिंसक प्रतिरोध के अभ्यास में उपयोग किए जा सकने वाले तरीकों को विकसित करने और एकत्र करके, यह अहिंसक परिवर्तन लाने के लिए एक अत्यधिक प्रभावी उपकरण बन गया है।
इस नए गांधीवादी दर्शन में क्या नया है जो दुनिया भर में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए अहिंसक कार्यकर्ताओं को प्रभावित करता है?
शार्प के अनुसार भ्रष्ट, हिंसक और दमनकारी सरकारों को उखाड़ फेंकने के लिए अहिंसा सबसे अच्छा साधन है; लेकिन उनकी राय में, इसके पीछे का कारण नैतिकता नहीं बल्कि इसकी व्यावहारिकता है। उनके अनुसार, किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में हिंसा का उपयोग अधिक समस्याएं, अधिक अन्याय और अधिक दुख पैदा करता है। इसलिए, अन्यायपूर्ण सरकार के खिलाफ सबसे प्रभावी उपकरण अहिंसक कार्रवाई है। इतिहास का विश्लेषण करते हुए, वह कहते हैं कि अहिंसक विपक्ष को अत्यधिक समर्पण, साहस और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। हालाँकि, अहिंसा को हाल ही में विरोध का सबसे अच्छा हथियार माना गया है। क्योंकि अहिंसात्मक विरोधों की शायद ही कभी महिमा हुई हो। उस तुलना में, योद्धाओं, आतंकवादियों और उनके नाटकीय काम के उदाहरण भविष्य की पीढ़ियों को दिए गए थे।
शार्प के अनुसार इतिहासकार भी मानते हैं कि सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार, हिंसा ही संघर्ष का एकमात्र समाधान है। शासक वर्ग की मिलीभगत से, उन्होंने लोगों को अपनी अव्यक्त शक्तियों के बारे में अंधेरे में रखने की साजिश रची। उनका मानना है कि इसके अलावा, पश्चिमी संस्कृतियां हमेशा हिंसा की शिकार रही हैं, और आज एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस नए दृष्टिकोण को अपनाने का समय आ गया है।
किताब के अनुसार जीन शार्प थ्योरी के कुछ तरीके
पुलिस पर पत्थरबाजी करना
सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करना
सुरक्षाबलों के रास्ते में रूकावटें पैदा करना जिससे व अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सके।
फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को पहले जलाने के पश्चात दुकानों, गाड़ियों और घरों को आसानी से निशाना बनाया जा सके।
इस तरह की घटना आपको सुनी-सुनी और कुछ-कुछ देखी सी महसूस हो रही होगी। इस जीन शार्प थ्योरी ने कई देशों की सरकारों को गिराने का काम किया है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे में भी कुछ इसी तरह पत्थरबाजी, आगजनी और प्रशासनिक व्यवस्था में रूकावट पैदा करने की बात देखने को मिली थी। दिल्ली में धार्मिक दंगे की आड़ में एक तरह का सरकार को ध्वस्त करना का प्रयोग था। सरकारी तंत्र को अप्रभावी कर राष्ट्रीय राजधानी को पंगु बनाना। जो कुछ भी घटित हुआ वो एक षड़यंत्र का हिस्सा रहा और ये 70-80 जीन शार्प मेथेड में से एक है। प्रदर्शन में महिलाओं और बच्चों को आगे कर देना। आम रास्ता और सड़कों को जाम कर आवागमन को बाधित करना। ये सारे जीन शार्प थ्योरी का हिस्सा हैं। जीन शार्प की किताब में कई बातों पर जोर दिया गया। जैसे फर्जी खबरें फैलाना, नेगेटिव ट्रेंड चलाया जाना और लोगों को गुमराह करना। अपने ही लोगों को सरकार के खिलाफ खड़ा करने के लिए मीडिया का उपयोग करना। उन्हें सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया जाए यही जीन शार्प थ्योरी है।
लेकिन भारत के लिहाजे से देखा जाए तो न तो यहां तानाशाही है और न ही यहां पर इस थ्योरी के प्रयोग कारगर होने की संभावना है। हालिया के शाहीन बाग में सड़क को ब्लॉक कर प्रदर्शन की बात हो या उसके बाद कई जगहों पर छोटे-छोटे शाहीन बाग बनाने की कवायद। इसकी गंभीरता को भांपते हुए पहले ही देश के प्रधानमंत्री ने इसे संयोग नहीं प्रयोग की संज्ञा दी। मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों से लेकर समाज के अन्य सभी वर्गों के महत्वपूर्ण लोग धरने को खत्म करने के लिए हाथ जोड़ रहे थे। पर धरने देने वाली औरतें किसी की भी सुनने को तैयार ही नहीं थी। शाहीन बाग में कुछ दिग्भ्रमित समाज विरोधी तत्वों के द्वारा बैठा दी गईं औरतों ने बाद में पूरी सड़क घेर ली और फिर अपनी जगह से हिलने के लिए तैयार ही नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तो बार-बार यह कह ही रहे थे कि भारत के नागरिकों पर (सीएए) या एनआरए का कोई असर ही नहीं होगा। इसके बावजूद शाहीन बाग की आदरणीय दादियां टस से मस होने के लिए तैयार नहीं थीं। इनकी जिद तब तो सारी सीमाओं को पार गई जब कोरोना काल में जनता कर्फ्यू के आह्वान के समय भी धरना स्थल पर मौजूद थीं। आखिर जब ये नहीं हट रही थीं तो दिल्ली पुलिस ने इस गैर क़ानूनी धरने को जबरदस्ती हटा दिया। शाहीन बाग़ के कारण आलोचना का शिकार हो रही दिल्ली पुलिस ने बड़ा कदम उठाते हुए शाहीनबाग़ के धरने को लोगों की परेशानी का सबब बन चुके धरना स्थल से उखाड़ फेंका। शाहीन बाग प्रकरण के सात महीने बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इस विरोध प्रदर्शन के नाम पर सड़क को ब्लाक करने को गलत करार दिया। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की। कोर्ट ने यह भी उम्मीद जताई है कि भविष्य में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी।
विरोध प्रदर्शनों के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान का अनिश्चितकाल के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, चाहे वो शाहीन बाग़ हो या कोई और जगह। प्रदर्शन निर्धारित जगहों पर ही होने चाहिए। ऐसा सुप्रीम कोर्ट का भी मानना है। ऐसे में कह सकते हैं कि सरकार के विरोध या फिर कहे कि मोदी विरोध को धरने का नाम देकर जो ड्रामा हुआ वो किसी से छुपा नहीं। शाहीन बाग़ पर फैसला देकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख स्पष्ठ कर दिया है साफ हो जाता है कि इस फैसले के जरिये 'शाहीनबाग़' को अराजकता का पर्याय बनाने वाले बड़ी लिबरल गैंग, जेएनयू के वामपंथियों और बुद्धिजीवियों के मुंह पर सुप्रीम कोर्ट ने करारा तमाचा जड़ा है। साथ ही प्रदर्शन के नाम पर सरकारों को अस्थिर करने की कवायद को भी जमींदोज कर दिया।
- अभिनय आकाश