एक के बाद एक पांच जजों ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद का अलग कर लिया। गौतम नवलखा ने इस मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने से इंकार करने संबंधी बंबई हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।
सबसे पहले 30 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और 1 अक्टूबर को न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति बी आर गवई ने नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। जिसके बाद गुरुवार को यह मामला न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट्ट की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए पहुंचा। और फिर न्यायमूर्ति भट्ट ने भी खुद को सुनवाई से अलग कर लिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस तरह के मामले को लेकर वरिष्ठ न्यायाधीश मदन लोकुर की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले की सुनवाई से किसी न्यायाधीश के खुद को अलग करने की एक प्रक्रिया तय होनी चाहिए।
हालांकि न्यायाधीश ने अपनी टिप्पणी का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि आजकल इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं, इसी वजह से इसके लिए भी एक नियम होना चाहिए। ताकि जब कोई न्यायाधीश खुद को किसी मामले से अलग करे तो संविधान पीठ के किसी दूसरे न्यायाधीश के लिए असहज स्थिति न पैदा हो।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कानूनी विशेषज्ञ भी इस मुद्दे पर बंटे हुए नजर आ रहे हैं कि जजों के किसी मामले से खुद को दूर करने की क्या प्रक्रिया होनी चाहिए। अमूमन होता यही है कि एक वकील के रूप में किसी का पक्ष रख चुका व्यक्ति जब न्यायाधीश के पद पर होता है तो वह उस व्यक्ति (पूर्व मुवक्किल) के मामले की सुनवाई से खुद को अलग रखना चाहते हैं।
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क्या है मामला ?
2017 के कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में हाई कोर्ट ने जनवरी, 2018 में गौतम नवलखा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने से 13 सितंबर को इंकार कर दिया था। इस मामले में नवलखा के साथ ही वरवरा राव, अरूण फरेरा, वर्णन गोन्साल्विज और सुधा भारद्वाज भी आरोपी हैं।
आपको बता दें कि पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर, 2017 को एलगार परिषद के बाद 1 दिसंबर को कोरेगांव-भीमा में हुई कथित हिंसा के मामले में जनवरी, 2018 को एफआईआर दर्ज की थी।
जिसके बाद गौतम नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर की है और निजी स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की गुहार लगाई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल दी राहत
इस मामले की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि जब तक कोर्ट में सुनवाई जारी है गौतम नवलखा को गिरफ्तार नहीं किया जाए। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से नवलखा के खिलाफ सबूत भी मांगे हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी।
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने गौतम नवलखा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि 438 (अग्रिम जमानत) के तहत याचिका दाखिल क्यों नहीं की ? साथ ही न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने कहा कि इस मामले की जांच चल रही है। क्या पुलिस ने इस मामले में नवलखा के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए हैं। जिसके बाद सिंघवी ने जवाब दिया कि दूसरे लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर हुए हैं।
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सुनवाई के दौरान सिंघवी ने अपनी दलीलें देते हुए न्यायालय से कहा कि आप नवलखा को चार हफ़्तों के लिए गिरफ्तारी से राहत दें वो अग्रिम जमानत याचिका निचली अदालत में दाखिल करेंगे। मामले में महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि जिन लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हुए है वो जेल में बंद है।
आपको बता दें कि इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने कैविएट दाखिल कर रखी है ताकि उसका पक्ष सुने बगैर कोई आदेश पारित नहीं किया जाए।