गेम चेंजर साबित हो सकता है ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान

By प्रह्लाद सबनानी | Jun 30, 2020

भारत में कोरोना महामारी की वजह से लाखों की संख्या में श्रमिक विभिन्न महानगरों से गृह राज्यों की तरफ़ रवाना हुए थे। इन श्रमिकों के गावों में पहुँचने के बाद उन्हें रोज़गार प्रदान कराये जाने के उद्देश्य से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 जून 2020 से ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान की शुरुआत की। इस अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री महोदय ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बिहार के खगड़िया से की। इस अभियान को विशेष रूप से महानगरों से पलायन किए लगभग 67 लाख प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रारम्भ किया गया है ताकि इन्हें गावों में न केवल रोज़गार उपलब्ध कराया जा सके बल्कि इन गावों में परिसंपतियों का निर्माण भी किया जा सके। साथ ही, ताकि आगे आने वाले समय में इन श्रमिकों को सतत रूप से रोज़ी रोटी भी मिल सके। ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान को लागू करने के लिए 6 राज्यों के 116 जिलों का चयन किया गया है। ये 6 राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, ओड़ीसा एवं झारखंड। 30 मई 2016 तक जिन जिलों में 25,000 से अधिक प्रवासी श्रमिक महानगरों से वापिस ग्रामों में आए थे, उन जिलों का चयन इस अभियान को लागू करने के लिए किया गया है। इस अभियान के अंतर्गत रोज़गार उपलब्ध कराने की दृष्टि से 25 मुख्य क्षेत्रों का चयन किया गया है एवं इन क्षेत्रों से सम्बंधित मंत्रालय एवं राज्य सरकारें इस अभियान के साथ जोड़े गए हैं। इन श्रमिकों को गावों में ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाएँगे। यह अभियान अगले 125 दिनों तक चलेगा एवं इस अभियान के लिए 50,000 करोड़ रुपए के फ़ंड की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है। ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान 12 विभिन्न मंत्रालयों/विभागों यथा, ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायती राज, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, खनन, पेयजल और स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, नई और नवीकरणीय ऊर्जा, सीमा सड़क, दूरसंचार और कृषि मंत्रालय का एक समन्वित प्रयास होगा। ग्रामीण विकास मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय बनाया गया है।

 

इसे भी पढ़ें: आत्मनिर्भर भारत अभियान से बढ़ रहे हैं रोजगार, विकसित हो रहे हैं तरक्की के विभिन्न आयाम

दरअसल इस तरह के रोज़गार अभियान की देश में बहुत लम्बे समय से ज़रूरत थी। महानगरों से ग्रामों की ओर पलायन किए गए श्रमिकों में से दो तिहाई पलायनकर्ता श्रमिक कुशल हुनर वाले हैं। इसलिए यह विशेष योजना कुशल एवं अर्धकुशल श्रमिकों के लिए ही लाई गई है। दूसरी ओर अकुशल श्रमिकों के लिए पूर्व में ही मनरेगा योजना गावों में कार्यरत है जिसके अंतर्गत अकुशल श्रमिकों को रोज़गार प्रदान किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत कुशल श्रमिकों को गावों में ही उनके कौशल के अनुसार उसी क्षेत्र में रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाएँगे ताकि वे ग्राम भी इनके कौशल का लाभ उठा सकें। इससे गावों में आधारिक संरचना भी मज़बूत होगी। साथ ही, सरकार जब इतनी बड़ी राशि ख़र्च करेगी और इन श्रमिकों के हाथों में पैसा आएगा तो इससे विभिन्न उत्पादों की माँग में भी वृद्धि होगी। यह ख़र्च मिशन मोड में होने जा रहा है और 125 दिन में यह पैसा व्यवस्था तंत्र में आ जाएगा।

 

राज्य सरकारें इन प्रवासी श्रमिकों के कौशल का मानचित्रण करेंगी और इनके कौशल के आधार पर प्रयास करेंगी कि उन्हें उनके कौशल के अनुसार रोज़गार मिले। यदि कुछ श्रमिक अकुशल हैं तो उन्हें इसी आधार पर कार्य प्रदान कराया जाएगा। प्रवासी कुशल श्रमिकों का महानगरों से पलायन देश के लिए एक अवसर भी माना जाना चाहिए क्योंकि जब ये कुशल श्रमिक गावों में आए हैं तो इनकी कुशलता का उपयोग करते हुए इन ग्रामों को भी लाभ दिलवाये जाने का प्रयास हो रहा है। इस प्रकार, लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिकों के कौशल का अनुकूलतम उपयोग गांवों में भी जारी रहेगा एवं देश इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों के कौशल के उपयोग से वंचित नहीं रह पाएगा। 

 

राज्य सरकारों द्वारा इस योजना का क्रियान्वयन करवाया जाना है। अतः इस योजना को सफल बनाने का लिए राज्य सरकारों को केंद्र बिंदु बनाया गया है। केंद्र सरकार ने इस सम्बंध में दिशा-निर्देश राज्य सरकारों को जारी कर दिए हैं। प्रवासी श्रमिक निकटतम ग्राम पंचायत से सम्पर्क करेंगे ताकि उनको उनके कौशल के अनुसार कार्य उपलब्ध कराया जा सके।

 

महानगरों से पलायन करने वाले श्रमिकों की पूरी सूची तैयार कर ली गई है और इस सूची में इन श्रमिकों के कौशल का ज़िक्र भी किया गया है, ताकि इनको इसी क्षेत्र में रोज़गार उपलब्ध करवाया जाए। अतः इस बात की पूरी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि यह अभियान अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल होगा। देश के आर्थिक विकास में गावों में उत्पादों की माँग का बहुत अच्छा ख़ासा प्रभाव रहता है। इस वर्ष चूँकि मानसून की बारिश समय पर प्रारम्भ हो गई है एवं इसका फैलाव भी बड़ी तेज़ी से पूरे देश में हो रहा है। अतः इस वर्ष कृषि की पैदावार भी बहुत अच्छी होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। मनरेगा योजना के लिए भी केंद्र सरकार ने धनराशि का आवंटन बढ़ा दिया है। साथ ही, ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान के अंतर्गत भी 50,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि ख़र्च की जा रही है तो कुल मिलाकर ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से इस वर्ष बहुत पैसा पहुँच रहा है। इस सबका मिलाजुला असर यह होगा कि इस वर्ष ग्रामीण क्षेत्र से उत्पाद की भारी माँग उत्पन्न होगी। अतः देश की अर्थव्यवस्था में जिस कमी होने के बात की जा रही है उसे शायद इस बार ग्रामीण अर्थव्यवस्था बचा ले जाएगी, इस बात की सम्भावना अब स्पष्टतः दिखने लगी है।

 

इसे भी पढ़ें: इस तरह गूगल और एपल मिलकर तोड़ेंगी कोरोना संक्रमण की चेन

देश की अर्थव्यवस्था में शीघ्र ही शायद एक परिवर्तन और हो सकता है। चूँकि देश की 60 प्रतिशत आबादी आज भी गावों में निवास करती है अतः कुशल, अर्धकुशल एवं अकुशल श्रमिक प्रचुर मात्रा में गावों में ही उपलब्ध हैं। इस कारण शायद अब उद्योग क्षेत्र अपनी औद्योगिक इकाईयों को गावों के आस पास स्थापित करें क्योंकि उन्हें कुशल एवं अर्धकुशल एवं अकुशल श्रमिक तो गांवों से ही मिलना है। इस प्रकार के पुनर्संतुलन की आवश्यकता बहुत लम्बे समय से महसूस की जा रही है। अब यह समय आ गया है कि उद्योग जगत मज़दूरों के पास पहुँचे। इससे न केवल गाँवों से शहरों की हो रहे मज़दूरों के पलायन को रोका जा सकेगा बल्कि इस क़दम से ग्राम विकास को भी तेज़ किया जा सकेगा। अंततः इससे समावेशी विकास एवं आत्म निर्भर भारत के लक्ष्य को भी शीघ्रता से हासिल किया जा सकेगा।

 

-प्रह्लाद सबनानी

सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

 

 

प्रमुख खबरें

Swiggy Instamart पर इस प्रोडक्ट की बिक्री हुई सबसे अधिक, 10 मिनट में सबसे अधिक खरीदते हैं ये

Lawrence Bishnoi Gang के निशाने पर Shraddha Walker हत्याकांड का आरोपी Aftab Poonawala, उसके शरीर के भी होंगे 35 टुकडें? धमकी के बाद प्रशासन अलर्ट

अफगान महिलाओं की क्रिकेट में वापसी, तालिबान के राज में पहली बार खेलेंगी टी20 मैच

भूलकर भी सुबह नाश्ते में न करें ये 3 गलतियां, वरना सेहत को हो सकता है भारी नुकसान