चतुर्थी पर इस समय इस विधि से करें गणेश पूजन, आपके घर में रिद्धि-सिद्धि वास करेंगी

By शुभा दुबे | Sep 09, 2021

भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण तिथि है इसलिए देशभर में इस दिन से गणपति उत्सव की धूम हो जाती है। शिवपुराण और गणेशपुराण में भी उल्लेख मिलता है कि गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को ही हुआ था। विघ्न विनायक गणेश जी के आगमन का यह त्योहार वैसे तो पूरे देश भर में उल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है जहां दस दिनों के लिए सारा वातावरण गणेशमय हो जाता है। छोटी जगहों से लेकर बड़े−बड़े होटलों तक में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। शायद ही कोई ऐसा श्रद्धालु हो जो इस दिन गणेश जी की प्रतिमा स्थापित नहीं करता हो। ओम गण गण गणपते नमः और गणपति बप्पा मोरया का जयघोष दस दिनों तक गूंजता रहता है। गणेशजी को चढ़ाए जाने वाले लड्डुओं की इन दिनों भरमार रहती है। हालांकि कोरोना काल में उत्सवों की चमक कुछ फीकी पड़ी है लेकिन भक्त अपने दिलों पर राज करने वाले बप्पा का पूजन पूरे मनोभाव से कर रहे हैं।

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गणेश पूजन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त


इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 10 सितम्बर को पड़ रहा है। वैसे तो गणेश पूजन किसी भी समय किया जा सकता है लेकिन यदि आप भी भगवान की मूर्ति अपने घर पर स्थापित कर पूजन करते हैं तो 10 सितम्बर को गणेश पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय सुबह 11:03 से लेकर दोपहर 01:32 तक है यानि लगभग ढाई घंटे का शुभ मुहूर्त है। गणपति प्रतिमा का लोग अपनी श्रद्धानुसार विसर्जन करते हैं कोई उसी दिन कर देता है तो कोई तीन दिन बाद तो कोई पूरे दस दिन बाद। वैसे दस दिवसीय गणेशोत्सव संपूर्ण होने के बाद इस बार गणेश प्रतिमा विसर्जन रविवार 19 सितम्बर को किया जायेगा।


भगवान गणेश के विभिन्न रूप


भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। उनके अनन्त नामों में सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन− ये बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह−नगरों में प्रवेश तथा गृह नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।


श्रीगणेशजी की महत्ता


देवसमाज में गणेशजी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भगवान श्री गणेशजी की पूजा किसी भी शुभ कार्य के करने के पहले की जाती है। मोदक इनका मनभावन भोग है और चूहा इनका प्रिय वाहन है। इनकी शादी ऋद्धि तथा सिद्धि के साथ हुई। इस पर्व से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन के रात्रि में चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी पर सुबह 9 बज कर 12 मिनट से लेकर रात्रि 8 बज कर 53 मिनट तक चंद्र दर्शन वर्जित बताया गया है।

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गणेश पूजन विधि


गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल स्नान आदि के बाद सोने, तांबे, मिट्टी आदि की गणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनका आह्वान किया जाता है। उनका तिलक कर पान, सुपारी, नारियल, लड्डु तथा मेवे चढ़ाए जाते हैं। उन्हें कम से कम 21 लड्डुओं का भोग लगाने की परम्परा है। इनमें से पांच लड्डुओं को गणेशजी के पास ही रहने देना चाहिए बाकी लड्डुओं का प्रसाद बांट देना चाहिए। सुबह और शाम को गणेशजी की आरती की जानी चाहिए और पूजन के बाद नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्म्णों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिए। गणेशजी का पूजन करने से रिद्धि−सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है जीवन के सभी कष्ट भी दूर होते हैं। इसके अलावा जीवन में शुभ अवसरों का आगमन होने लगता है। गणेशजी भक्तों को विशेष रूप से प्रेम करते हैं यदि आप सच्चे मन से उनका ध्यान लगाएंगे तो वह किसी न किसी रूप में आपकी मदद करने अवश्य आएंगे। उनसे किसी का कष्ट नहीं देखा जाता। वह अत्यंत दयालु हैं। वह सभी के मन की इच्छा को पूर्ण करने वाले हैं।


गणेश चतुर्थी व्रत कथा


एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिये भोगवती नामक स्थान पर गये। उनके चले जाने के पश्चात माता पार्वती ने अपने मैल से एक पुतला बनाया जिसका नाम उन्होंने गणेश रखा। माता ने गणेश को द्वार पर बैठा दिया और कहा कि जब तक मै स्नान करूं किसी भी पुरुष को अन्दर मत आने देना। कुछ समय बाद जब भगवान शंकर वापस आये तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया, जिससे क्रुद्ध होकर भगवान शंकर ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया और अन्दर चले गये। पार्वती जी ने समझा कि भोजन में विलम्ब होने से भगवान शंकरजी नाराज हैं सो उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोस कर शंकरजी को भोजन के लिये बुलाया।


शंकरजी ने दो थालियों को देखकर पूछा कि यह दूसरा थाल किसके लिये है, तो पार्वती ने जबाब दिया कि यह दूसरा था पुत्र गणेश के लिये है जो बाहर पहरा दे रहा है। यह सुनकर भगवान शंकर बोले कि मैंने तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है। यह सुनकर पार्वती जी को बहुत दु:ख हुआ और वह भगवान महादेव से अपने प्रिय पुत्र गणेश को जीवित करने की प्रार्थना करने लगीं। तब शंकरजी ने हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया जिससे बालक गणेश जीवित हो उठा और माता पार्वती बहुत हर्षित हुईं। उन्होंने पति और पुत्र को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया। चूंकि यह घटना भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुयी थी इसलिये इस तिथि का नाम गणेश चतुर्थी रखा गया।


-शुभा दुबे

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