गणेश चतुर्थी 2020 पर ऐसे मिलेगा मनवाँछित फल, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

By शुभा दुबे | Aug 21, 2020

इस वर्ष गणेश चतुर्थी 22 अगस्त को पड़ रही है लेकिन कोरोना काल में इस बार दस दिवसीय गणेशोत्सव की धूम कम ही दिखाई पड़ रही है क्योंकि अधिकतर राज्यों में पंडालों को लगाने की अनुमति नहीं दी गयी है। इसलिए बप्पा अधिकतर मंदिरों से ऑनलाइन ही दर्शन देंगे। कई पूजा समितियाँ पंडाल अगर लगा भी रही हैं तो एक या दो दिन ही मूर्ति रखने का कार्यक्रम है। खास बात यह है कि इस बार गणपति बप्पा की छोटी मूर्तियों और इको फ्रैंडली मूर्तियों की ही ज्यादा माँग है ताकि उन्हें आसानी से घर में बाल्टी या अन्य किसी बड़े बर्तन आदि में विसर्जित किया जा सके।

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मूर्ति स्थापना व पूजन का शुभ समय


गणेश चतुर्थी 2020 पर मूर्ति स्थापित आप अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं लेकिन यदि पूजन और स्थापना का शुभ समय जानना चाहते हैं तो यह 22 अगस्त को सुबह 11 बजकर 6 मिनट से लेकर लेकर दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक है। गणेश चतुर्थी को चंद्रमा देखने की भी मनाही रहती है ताकि किसी प्रकार का झूठा कलंक नहीं लग जाये। इस दिन ध्यान रखें कि रात्रि 9 बजकर 25 मिनट तक चंद्रमा का दर्शन नहीं करें। इस वर्ष चतुर्थी का आरम्भ 21 अगस्त को रात्रि 11 बजकर 2 मिनट से हो रहा है जोकि 22 अगस्त 2020 को 7 बजकर 56 मिनट तक रहेगी।


पूजन विधि


इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि के बाद सोने, तांबे, मिट्टी आदि की गणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनका आह्वान किया जाता है। प्रतिमा स्थापित करने के बाद गणेश जी का ध्यान करके पंचामृत स्नान, शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, सिंदूर, आभूषण, दूर्वा, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, पान, नारियल, मेवे आदि से विधिवत पूजन करें। पूजन के समय घी से बने हुए इक्कीस पूए या इक्कीस लड्डू गणेश जी के पास रखें। पूजन समाप्त करके उनको गणेश जी की मूर्ति के पास रहने दें। दस पूए या लड्डू ब्राह्मण को दे दें और शेष ग्यारह अपने लिए रखकर बाद में प्रसाद के रूप में बांट दें। ब्राह्मण को जिमाकर उसे दक्षिणा प्रदान करें।

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गणेशजी का पूजन करने से रिद्धि−सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है जीवन के सभी कष्ट भी दूर होते हैं। इसके अलावा जीवन में शुभ अवसरों का आगमन होने लगता है। गणेशजी भक्तों को विशेष रूप से प्रेम करते हैं यदि आप सच्चे मन से उनका ध्यान लगाएंगे तो वह किसी न किसी रूप में आपकी मदद करने अवश्य आएंगे। उनसे किसी का कष्ट नहीं देखा जाता। वह अत्यंत दयालु हैं। वह सभी के मन की इच्छा को पूर्ण करने वाले हैं।


गणेश चतुर्थी का महत्व


प्राचीन काल में बालकों का विद्या अध्ययन भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को पड़ने वाली गणेश चतुर्थी के दिन से ही प्रारम्भ होता था। विनायक, सिद्ध विनायक और कर्पादि विनायक भी गणेशजी के ही नाम हैं और यही कारण है कि कई नामों से इस व्रत को पुकारा जाता है। यह त्योहार वैसे तो पूरे देश भर में उल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है जहां दस दिनों के लिए सब कुछ गणेशमय हो जाता है। छोटी जगहों से लेकर बड़े−बड़े होटलों तक में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। शायद ही गणेशजी का कोई अनुयायी हो जो इस दिन अपने घर में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं करता हो। ओम गण गण गणपते नमः का उच्चारण दस दिनों तक जहां देखो वहीं सुनाई देता है। गणेशजी को चढ़ाए जाने वाले लड्डुओं की इन दिनों भरमार रहती है।


गणेश प्रतिमा विसर्जन


गणेश उत्सव भाद्रपद मास की अनंत चतुर्दशी तक चलता है। इन दस दिनों तक भगवान गणेश की भव्य और आकर्षक प्रतिमाओं की स्थापना कर पूजा की जाती है। खासकर महाराष्ट्र में भव्य पंडालों में मनमोहक गणेश प्रतिमाओं की छटा देखते ही बनती है। मुंबई के मशहूर लाल बाग के राजा की प्रतिमा को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इसके अलावा देशभर के मंदिरों में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति को विशेष रूप से सजाया जाता है और सुबह-शाम विभिन्न तरह के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। गणेश उत्सव के दौरान श्रद्धालु अपनी सहूलियत के हिसाब से डेढ़ दिन के बाद या पांचवें दिन अथवा दसवें दिन भगवान गणेश की प्रतिमा का धूमधाम के साथ विसर्जन करते हैं और अगले वर्ष पुनः अपने घर में खुशियां लेकर आने का आग्रह करते हैं। विसर्जन से पहले श्रद्धालु भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। कहीं-कहीं विसर्जन से पहले हवन एवं भंडारा भी आयोजित किया जाता है। इसके बाद ढोल नगाड़ों के साथ नाचते गाते श्रद्धालु 'गणपति बप्पा मोरया' का शंखनाद करते हुए नदियों, तालाबों में प्रतिमा के विसर्जन के लिए समूह में निकलते हैं। मुंबई में तो समुद्र के किनारों पर इस दौरान उत्सव जैसा माहौल होता है। लेकिन इस बार कोरोना काल में उत्सव मनाने का तरीका बदला है इसीलिए लोग इको फ्रैंडली और छोटी मूर्तियाँ ही ला रहे हैं क्योंकि इनसे स्वास्थ्य या पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।

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गणेश चतुर्थी की कथा


एक दिन महादेवजी स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती गये। पीछे से स्नान के पहले उबटन लगाकर पार्वतीजी ने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसे तंत्र बल से सजीव कर आज्ञा दी कि तुम मुद्गर लेकर द्वार पर बैठ जाओ, किसी भी पुरुष को अंदर मत आने देना। लौटने पर जब शिवजी पार्वतीजी के पास भीतर जाने लगे तो उस बालक ने उन्हें रोक लिया। महादेवजी ने अपने इस अपमान से कुपित होकर बालक का सिर काट लिया और स्वयं भीतर चले गये। पार्वतीजी ने शंकरजी को क्रोधित देखकर समझा कि वे कदाचित भोजन में विलम्ब हो जाने के कारण क्रुद्ध हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत भोजन तैयार करके दो थालों में परोसा और महादेवजी के सम्मुख रख दिया। शिवजी ने देखा कि भोजन दो थालों में परोसा गया है, तो उन्होंने पार्वतीजी से पूछा कि यह दूसरा थाल किसके लिए है। 


पार्वतीजी ने कहा कि यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर शिवजी ने कहा कि मैंने तो उसका सिर काट डाला है। शिवजी की बात सुन पार्वतीजी बहुत व्याकुल हुईं और उन्होंने उनसे उसे जीवित करने की प्रार्थना की। पार्वतीजी को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया और उसे जीवित कर दिया। पार्वतीजी अपने पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने पति और पुत्र दोनों को प्रेमपूर्वक भोजन कराने के बाद खुद भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए इसका नाम गणेश चतुर्थी पड़ा तभी से यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।


गणेश जी की आरती


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता तेरी पार्वती पिता महादेवा। जय गणेश...

एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी।

माथे पर सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी। जय गणेश...

अन्धन को आंख देत, कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया। जय गणेश...

हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करे सेवा। जय गणेश...

दीनन की लाज राखो, शम्भु पुत्र वारी।

मनोरथ को पूरा करो, जाये बलिहारी। जय गणेश...


- शुभा दुबे

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