मुझे वर्तमान कांग्रेस से कतई मोह नहीं है। आज़ादी की लड़ाई में जिस कांग्रेस ने जन-आंदोलन का रूप 'महात्मा गांधी' के नेतृत्व में लिया, उससे जरूर प्रेम है। 'कांग्रेस' उस समय पार्टी नहीं थी। कांग्रेस अंग्रेजों से गुलाम भारत की मुक्ति के विरुद्ध एक जन-आंदोलन का नाम था। नेतृत्व जरूर बापू का था, पर प्रत्येक भारतीय उस जनांदोलन का हिस्सा था। जब भारत आज़ाद हुआ तब बापू ने कहा था कि अब कांग्रेस का काम खत्म हो गया। कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। तत्कालीन कांग्रेसियों ने और बापू की खासकर नेहरूजी ने नहीं सुनी। नेहरूजी ने सोचा कांग्रेस को राजनैतिक दल के रूप में यदि चलाएंगे तो देश की जनता के सामने कांग्रेस को लोग, आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी के नाम से जानते रहेंगे। 'बापू' महात्मा गांधी इसके विरोध में थे। उनका कहना था कि कांग्रेस यानी आज़ादी की लड़ाई और यह हर भारतीय ने लड़ी है, इसे कभी राजनैतिक दल का नाम नहीं दिया जाना चाहिए था।
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बापू का कहना था कि 'राजनैतिक दल' किसी और नाम से चलाया जाए। यहां पर गांधीजी (बापू) की नहीं चली। कांग्रेस जिसने 'गुलाम भारत' को आज़ाद कराया अब वह एक राजनैतिक दल बन गयी। वर्षों तक इसका लाभ नेहरूजी ने उठाया। सन् 1952, 1957 और 1963 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को इसका लाभ मिला। सन् 1963 तक देश में यही चलता रहा कि 'कांग्रेस' वही पार्टी है, जिसने आज़ादी दिलाई। उसके बाद सन् 1964 में जब नेहरूजी का निधन हो गया तो आगे के कांग्रेस नेताओं ने 'कांग्रेस' का दोहन किया।
आज अगर वर्तमान पीढ़ी समझना चाहे तो वह अरविन्द केजरीवाल की चालाकी से समझ सकती है। जैसे देश के प्रख्यात समाजसेवी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के प्रणेता अन्ना हजारे ने देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चलाया। लोकपाल स्थापित करने के लिए आमरण अनशन पर बैठे। उसी आंदोलन से अन्ना हजारे के प्रति जो श्रद्धा उपजी उस पर 'अरविन्द केजरीवाल' ने राजनैतिक फसलें उगाकर एक 'आप' नामक राजनैतिक पार्टी बना ली।
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आज क्या स्थिति है। 'अन्ना हजारे' का इस आप पार्टी से कोई लेना देना नहीं। पर अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजी श्रद्धा पर एक बार तो अरविन्द केजरीवाल ने अपनी राजनैतिक फसल तो काट ही ली। 'अन्ना हजारे' को देखकर लोगों ने अरविन्द केजरीवाल को वोट दिया। आज आप पार्टी की स्थिति क्या है? स्वयं 'अन्ना हजारे' अपनी सूची से इस पार्टी को बाहर कर चके हैं। वहीँ आज दिल्ली की सबसे अविश्वसनीय पार्टी 'आप' हो चकी है और सबसे अविश्वसनीय नेता अरविन्द केजरीवाल। अंतर सिर्फ इतना है कि कांग्रेस ने भारत को गुलामी से मुक्ति दिला दी थी, तो वह लम्बे समय तक चली गयी और 'आप पार्टी' अब सिर्फ एक बार। महात्मा गांधी की श्रद्धा का, उनके द्वारा किये गए संघर्ष और उनके समर्पण का जितना शोषण कांग्रेस ने किया, उतना कभी किसी ने नहीं किया।
आज कांग्रेस है पर कांग्रेस के घर से बापू का विचार निकल चुका है। कांग्रेस जिसने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाई, आज वही कांग्रेस एक परिवार के घर से मुक्ति के लिए सिसक रही है। कांग्रेस की यह दुर्गति किसने की ? आज़ादी दिलाने वाली 'कांग्रेस' को 'सत्ताभोगी' कांग्रेस किसने बनाया ? महात्मा गांधी से राहुल गांधी तक आते-आते 'कांग्रेस' कहां पहुंच गयी। यह देश देख रहा है कि बापू वाली कांग्रेस में सत्ता दूर दूर तक नहीं थी उस समय सिर्फ आज़ादी के संघर्ष का नाम था कांग्रेस। कांग्रेस भोग विलास से दूर सर पर कफ़न बांधकर अंग्रेजों को दौड़ाने और भारत से भगाने वाले आंदोलन का नाम था कांग्रेस।
स्थिति बाद में बद से बदतर कब हो जाती है जब आप अपनी विचार धारा के साथ बेईमानी करते हैं। व्यक्ति के खिलाफ की गयी बेईमानी तो चल सकती है पर अपनी विचारधारा से बेईमानी करने वालों को ईश्वर भी माफ़ नहीं करता है और ईश्वर रूपी जनता भी माफ़ नहीं करती।
'महात्मा गांधी' एक वैश्य परिवार से थे। इतिहास जानता है कि उन्होंने 'गांधी' नाम कैसे दिया और क्यों दिया ? यह स्वयं महात्मा गांधी और उस समय के लोग जानते हैं। हम इस विषय की गहराई जानते हुए भी इसके भीतर नहीं जाना चाहते। एक ओर आप देखें कि 'महात्मा गांधी' ने अपना (सरनेम) 'टाइटल' नहीं दिया होता तो क्या यह गांधी के रूप में चला राजनैतिक दल चल पाता। 'इंदिरा गांधी' को गांधी नाम किसने दिया ? कैसे दिया ? और क्यों दिया ? इसका भी लाभ कांग्रेस को मिला। लोगों ने माना कि गांधी यानी महात्मा गांधी की पार्टी। जबकि ऐसा नहीं था। 'कांग्रेस' और 'गांधी' के नाम पर आज कांग्रेस कहां चली गयी है। आखिर कौन है इसके लिए दोषी ? कांग्रेस अगर भारत के नारों पर नहीं होती और उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि नहीं मिली होती तो आज 'बापू' की आत्मा किसी कोने में सुबक-सुबक कर रो रही होती। लेकिन भारत राष्ट्र सदैव बापू का कृतज्ञ रहा। 'बापू' राजनैतिक दल के नहीं, राष्ट्र के लिए जिए और राष्ट्र के लिए ही अपनी जान दे दी।
विरासत में कांग्रेस और गांधी सरनेम मिलने के बाद आज दो दशक में जो कांग्रेस की दुर्गति राजनैतिक दल के रूप में उपहार में मिले 'गांधी' परिवार ने जो किया है, इसके लिए इनसे बड़ा और कोई जिम्मेदार नहीं हो सकता। देश के सामने यह बात स्पष्टता से आनी चाहिए कि एक जन आन्दोलन रूपी कांग्रेस को राजनैतिक दल के रूप में चुराकर वर्तमान कांग्रेसियों ने उसे कहां पंहुचा दिया। वहीं गांधी सरनेम लेकर महात्मा गांधी की श्रद्धा के साथ वर्तमान गांधी परिवार ने कितना बड़ा खिलवाड़ किया।
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कांग्रेस आज मुक्ति की छटपटाहट से गुजर रही है। वह एक परिवार से मुक्त होकर जनता के बीच आना चाहती है। काश ! देश के वे कांग्रेसी जो कांग्रेस का इतिहास और विचार जानते हैं वे इस विषय पर सोचते आज की स्थिति कितनी भयावह है कि इस्तीफा देकर भी आज का गांधी पद से नहीं हट रहा। वहीं आजादी के पहले के गांधी ने अपने तन पर मात्र लंगोटी और काठी की लाठी लेकर अंग्रेजों को भारत से भगाने में सबको जोड़ लिया। व्यक्ति चाहे जितना बड़ा हो जाये वह विचार का प्रतीक और आधार हो सकता है, पर विचार नहीं। व्यक्ति चाहे जितना बड़ा हो जाये वह पार्टी या संगठन नहीं हो सकता। देश में जब कांग्रेस ने एक व्यक्ति के परिवार को कांग्रेस मान लिया तो जनता ने भी तय किया कि यह पार्टी अब जनता की नहीं परिवार तक ही सिमट कर रह जाएगी। सच यह है कि कांग्रेस आज पूरी तरह से सिमटती जा रही है और इसका वैचारिक अनुष्ठान ही समाप्त हो चुका है। आज कांग्रेस रूपी संस्कृति की पहचान ही मिट रही है। अब देखना है कि राहुल गांधी के परिवार से कांग्रेस आज़ाद होती है या नहीं। यह तो समय ही तय करेगा।
-प्रभात झा
(सांसद एवं भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)