क्या है प्रभाकरन की पूरी कहानी और इसका संगठन LTTE तीन दशकों तक श्रीलंका के लिए कैसे बना रहा चुनौती

By अभिनय आकाश | Jun 16, 2021

लॉकडाउन में नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, ZEE5, डिज्नी हॉटस्टार, वूट स्पेशल, MX प्लेयर, सोनी लिव सहित कई ओटीटी प्लैटफॉर्म्स मनोरंजन के सबसे बड़े जरिए के रूप में सामने आए हैं। बड़ी संख्या में फिल्में और वेब सीरीज ओटीटी को ध्यान में रखते हुए बनाई जाने लगी हैं। इस फेहरिस्त में कई नाम शामिल हैं। इसी कड़ी में अमेजन प्राइम वीडियो की फैमिली मैन 2 जिसको लेकर चर्चा चारो ओर है। लेकिन भारत के दक्षिणी हिस्से में इस वेब सीरिज के आने के बाद से ही लगातार विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं। वहां कि तमिल जनता के साथ ही तमिलनाडु सरकार ने भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय से इसे रुकवाने की मांग की थी। इसके अलावा तमिलनाडु की तमिलर काची नामक पार्टी के लीडर सीमन ने भी फैमली मैन-2 को लेकर अमेजन प्राइम वीडियो की प्रमुख को पत्र लिखकर आंदोलन करने और अमेजन के उत्पादों का बहिष्कार करने की चेतावनी दी थी। आप सोच रहे होंगे कि आज हम एमआरआई के इस विश्लेषण में वेब सीरिज को लेकर चर्चा करने वाले हैं। जवाब है- नहीं, इस वेब सीरिज के विरोध के स्वर आखिर भारत के दक्षिण के राज्य में क्यों उठ रहे हैं पहले इसके बारे में आपको फटाफटा बता देते हैं। इसके बाद विश्लेषण के मुख्य विषय की तफ्सील से चर्चा करेंगे। दरअसल, फैमिली मैन-2 में दो आतंकवादी संगठन दिखाए गए हैं। एक है आईएसआई, वही हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान वाला, जो आए दिन जम्मू कश्मीर को अव्यवस्थित करने की योजना में लगा रहता है। दूसरा संगठन है रेबेल्स (बागी) और इसका सरगना तमिल भाषी श्रीलंका से है। जिसके चीफ का नाम  है भास्करन। बस सारा विवाद यहीं आकर फंसा है। तमिल लोगों का कहना है कि इस वेब सीरिज में निर्माता ने रेबेल्स और आईएसआई का अपरोक्ष रुप से या कहें आईएसआई और लिट्टे के संबंधों को दिखाया है। वो भी गलत ढंग से। इसके साथ ही उनकी आपत्ति गलत तथ्यों को पेश किए जाने  से भी है। ऐसे में आज हम बात करेंगे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे ) नामक संगठन की जिसे इसके सदस्य और समर्थक तो आंदोलनकारी संगठन बताते हैं, लेकिन भारत, श्रीलंका, अमेरिका, इंग्लैंड समेत दुनिया के 32 देशों ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। साथ ही इसके प्रमुख प्रभाकरन, उसकी भारत यात्रा और राजीव गांधी की हत्या से जुड़े पहलुओं से भी अवगत कराएंगे। 

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क्या है लिट्टे

श्रीलंका में तमिलों के साथ कथित भेदभाव और नस्लीय सफाए के बीच स्थापित अलगाववादी संगठन एलटीटीई यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम करीब तीन दशकों तक अपने आतंक और दहशत से श्रीलंका को दहलाता रहा। अपनी अलग राज्य की मांग को पूरा करने के लिए इस संगठन ने न केवल सबसे पहले आत्मघाती दस्ते की शुरुआत की बल्कि हजारों निर्दोष लोगों के साथ कई राजनीतिक हस्तियों को भी मौत के घाट उतार दिया। एक दौर में लिट्टे का उत्तरी श्रीलंका पर पूरा नियंत्रण था और वहां उसकी समांनतर सरकार चलती थी। हालांकि श्रीलंका सरकार और सेना ने साल 2009 में लिट्टे के मुखिया वेणुपिल्लई प्रभाकरन समेत लिट्टे का श्रीलंका से सफाया कर दिया। लेकिन लिट्टे समर्थक और अलग ईलम राज्य को चाहने वाले अभी भी दुनियाभर में फैले हुए हैं, जो आज भी लिट्टे समर्थकों की मदद करते हैं। वेलुपिल्लई प्रभाकरन वेल्वेत्तिथूरै के उत्तरी तट पर 26 नवम्बर 1954 को, थिरुवेंकदम वेलुपिल्लई और वल्लिपुरम पार्वती के यहां पैदा हुए। वो अपने माता-पिता और चार बच्चों में सबसे छोटे थे। श्रीलंकाई सरकार द्वारा दिखाये गए तमिल लोगों के प्रति भेदभाव को देख, नाराज़ हो कर, वह छात्र संगठन टीआईपी में मानकीकरण बहस के दौरान शामिल हो गए। 1972 में प्रभाकरन ने तमिल न्यू टाइगर्स की स्थापना की, जो अनेक संगठनों के उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया, जो देश में औपनिवेशिक राजनीतिक दिशा के खिलाफ जाने वालों का विरोध करता था, इनमें श्री लंकाई तमिलों को सिंहली लोगों से नीचा दिखाया जाता था। वर्ष 1975 में, तमिल आंदोलन में गंभीर रूप से शामिल होने के बाद वह एक तमिल आतंकवादी समूह द्वारा, एक ह्त्या में शरीक हुए, जाफना के मेयर, अल्फ्रेड दुरैअप्पा की उस समय गोली मार कर ह्त्या कर दी गई जब वे पोंनालाई में एक हिंदू मंदिर में प्रवेश करने वाले थे। 1976 में प्रभाकरन ने लिट्टे की स्थापना की जो सशस्त्र संगठन था। इस संगठन ने 1983 में जाफना के बाहर श्रीलंकाई सेना के एक गश्ती दल पर घात लगाकर हमला किया जिसमें 13 सैनिकों की मौत हो गई। इस हमले के बाद श्रीलंका में भीषण नरसंहार हुआ जिसके परिणामस्वरूप हजारों तमिल नागरिकों की मौत हुई। यहीं से श्रीलंका में गृहयुद्ध की शुरुआत हो गई।  लिट्टे, जिसे तमिल टाइगर्स के रूप में भी जाना जाता था उसने प्रभाकरन के नेतृत्व में उत्तरी श्रीलंका में बड़े हिस्से को नियंत्रित कर लिया. इतना ही नहीं पूर्वी श्रीलंका में प्रभाकरन सरकार के खिलाफ अपना स्वतंत्र राज्य चलाने लगे. श्रीलंकाई सेना ने वार्ता असफल होने के बाद 2006 में लिट्टे को हराने के लिए एक सैन्य अभियान शुरू किया।

हर वक्त काले धागे से टंगा रहता साइनाइड कैप्सूल 

प्रभाकरन का आदेश था कि लिट्टे का हर लड़ाका अपने गले में साइनाइड कैप्सूल पहनकर चले और पकड़े जाने की स्थिति में उसे खाकर अपनी जान दे दे। प्रभाकरन के गर्दन में भी काले धागे से एक साइनाइड कैप्सूल टंगा रहता था, जिसे वो अक्सर अपनी कमीज की जेब में एक आईडी कार्ड की तरह डाल देते थे। इसके अलावा प्रभाकरन को खाना पकाने का भी शौक था और प्रिय भोजन चिकर करी था। 

काले पैर वाला व्यक्ति

साल 1972 में जब वो एक पेड़ के नीचे कुछ लोगों को बम बनाते देख रहा था तो एक बम में विस्फोट हो गया था और प्रभाकरन बाल-बाल बच गया था। इस दुर्घटना में उसका दांया पैर जलकर काला पड़ गया था। तभी से उनका नाम 'करिकलन' पड़ गया था जिसका अर्थ होता है काले पैर वाला व्यक्ति। चॉकलेट और केकड़ों को उबाल कर खाने के शौकीन प्रभाकरन ने अपने अनुयायियों के सिगरेट और शराब पीने और यौन संबंध स्थापित करने पर पाबंदी लगा दी थी। उसके निजाम में एलटीटीई सैनिकों को प्रेम संबंध बनाने की मनाही थी। गद्दारी की सिर्फ एक ही सजा थी, मौत। उन्होंने अपने दो पुरुष और महिला अंगरक्षकों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतारने का आदेश दिया था क्योंकि उन्होंने संबंध बनाने की जुर्रत की थी। दिलचस्प बात ये है कि जब अपने ऊपर बात आई तो प्रभाकरन ने ये नियम तोड़ा और मतिवत्थनी इराम्बू से विवाह किया। 

गृहयुद्ध की गंभीरता

वर्ष 1985- सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच शांति वार्ता की पहली कोशिश नाकाम हो गई।

वर्ष 1987- सरकारी सेनाओं ने उत्तरी शहर जाफना में तमिल विद्रोहियों को और पीछे हटा दिया। सरकार ने एक ऐसे समझौते पर दस्तखत किए जिनके तहत तमिल बाहुल्य इलाकों में नई परिषदों का गठन किया जाना था। भारत के साथ भी समझौता हुआ जिसके तहत वहां भारत की शांति सेना की तैनाती हुई।

वर्ष 1988 - वामपंथी धड़े और सिंहलों की राष्ट्रवादी पार्टी, जनता विमुक्ति पैरामुना (जेवीपी) ने भारत-श्रीलंका समझौते के खिलाफ अभियान शुरू किया।

वर्ष 1990- उत्तरी क्षेत्र में काफी लड़ाई को देखते हुए भारतीय सेना ने देश छोड़ दिया। श्रीलंका की सेना और पृथकतावादी तमिल विद्रोहियों के बीच हिंसा और बढ़ गई। 

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प्रभाकरन की भारत यात्रा और राजीव का स्पेशल गिफ्ट 

साल 1986 का दौर जब भारत-श्रीलंका समझौते को लेकर चर्चओं का दौर था। प्रभाकरन को भारत लाने के लिए श्रीलंका की अनुमति से वायुसेना के दो विमान जाफना पहुंचते हैं। उस विमान में भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हरदीप पुरी भी गए थे। दिल्ली पहुंचने पर प्रभाकरन को अशोका होटल में ठहराया गया। प्रभाकरन ने बातचीत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रण को भी शामिल करने की मांग की। राजीव गांधी ने प्रभाकरण की ये मांग मान ली और एमजीआर दिल्ली पहुंचे। जुलाई 1987 को दिल्ली के 10 जनपथ में राजीव गांधी के निवास पर एक बैठक हो रही थी। उस बैठक में राजीव गांधी के ठीक सामने लिट्टे का कमांडर प्रभाकरण बैठा था। दिल्ली के अशोका होटल में ठहरे प्रभाकरण को खुफिया निगरानी में राजीव गांधी के समक्ष लाया गया था। प्रभाकरण ने कहा कि श्रीलंता सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। राजीव गांधी ने कहा कि वह तमिलों के हितों के लिए काम कर रहे हैं। अंतत: प्रभाकरण भारत- श्रीलंका समझौते को एक मौका देने के लिए तैयार हो गए। जिससे राजीव गांधी बेहद ही खुश हुए। उन्होंने तुरंत प्रभाकरण के लिए खाना मंगवाया। खाना खाने के बाद प्रभाकरण जब वहां से रवाना होने लगे तो राजीव गांधी ने राहुल गांधी को बुलाया और अपना बुलेट प्रूफ जैकेट लाने को कहा। प्रभाकरण को जैकेट देते हुए राजीव ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप अपना ख्याल रखिएगा। राजीव गांधी के मंत्रिमंडल के एक सदस्य ने उनसे कहा कि प्रभाकरन को तब तक भारत में रखा जाए, जब तक एलटीटीई के लोग हथियार नहीं डाल देते। लेकिन राजीव गांधी नहीं माने और कहा कि प्रभाकरन ने मुझे अपनी जुबान दी है। मैं उन पर विश्वास करता हूं। 21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में तीस बरस की एक छोटे कद की लड़की चंदन का एक हार लेकर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरफ़ बढ़ी। जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए झुकी, एक जोरदार धमाके ने वहां सन्नाटा कर दिया। हालांकि प्रभाकरन की कोशिश थी कि इस हत्याकांड में उसका नाम न आए लेकिन लिट्टे का एक फोटोग्राफर मौके से भाद नहीं पाया और उसी धमाके की चपेट में आ गया। बाद में उसके कैमरे में प्रभाकरन समेत कई लोगों की तस्वीक पाई गई थी। राजीव गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए भारत ने श्रीलंका सरकार की मदद भी की और उसे एम-17 हेलीकॉप्टर समेत कई अन्य मिलिट्री इक्विपमेंच भी मुहैया करवाएं।

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ऐसे हुई मौत 

वर्ष 2008 - श्रीलंका सरकार ने 2002 के शांति समझौते को बेमानी बताते हुए इससे अपने हाथ खींच लिए। जुलाई में सरकार ने दावा किया कि उन्होंने तमिल विद्रोहियों के देश के उत्तर में स्थित नौसेना बेस पर कब्जा कर लिया है। इसी वर्ष अक्टूबर में हुए आत्मघाती हमलों में एक पूर्व जनरल समेत 27 लोग मारे गए। इसका भी आरोप एलटीटीई पर लगा। यहां से खुली लड़ाई की बात शुरू हो गई। श्रीलंका की सेना और एलटीटीई की ओर से एक दूसरे के लोगों को मारने की दावेदारियां शुरू हो गईं। साल 2009 के जनवरी में 10 वर्षों से एलटीटीई के कब्जे में रहे किलिनोच्चि शहर पर अपना कब्जा कर लिया। यह शहर एलटीटीई का प्रशासनिक मुख्यालय था। राष्ट्रपति ने तमिल विर्दोहियों से समर्पण करने को कहा। अप्रैल और मई में सेना का अभियान अपने चरम पर पहुंच गया। एलटीटीई का दायरा लगातार घटता गया। एक छोटे से इलाके में सिमटे तमिल विद्रोहियों के बीच फंसे हजारों लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का मुद्दा उठता रहा। हजारों लोग खुद युद्ध क्षेत्र में भागकर बाहर आए। सैकड़ों मारे गए। अपनी अंतिम लड़ाई में प्रभाकरन मोलाएतुवू क्षेत्र में तीन तरफ़ से घिर गया और चौथी तरफ़ समुद्र था जहां श्रीलंका की सेना ने अपना जाल बिछा रखा था। श्रीलंकाई सेना रेडियो पर उनकी बातचीत सुन रही थी, इसलिए उन्हें प्रभाकरन की लोकेशन का अंदाज़ा था। 21 मई 2009 को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई या लिट्टे) के संस्थापक वेलुपिल्लई प्रभाकरण को श्रीलंका की सेना ने मौत के घाट उतार दिया था। इसी के साथ श्रीलंका का जाफना क्षेत्र लिट्टे के आतंक से आजाद हो गया था। प्रभाकरण के मार जाने के बाद लिट्टे ने हार मानते हुए अपनी बंदूकें शांत करने की घोषणा की थी। एक गोली उनके माथे को चीरती चली गई थी, जिसने उनके कपाल को क्षतविक्षत कर दिया था. इसके अलावा उनके शरीर पर चोट का एक भी निशान नहीं था। प्रभाकरन की मौत के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे ने संसद में ऐलान किया था, "आज से श्रीलंका में कोई अल्पसंख्यक नहीं होगा. अब से यहां सिर्फ़ दो किस्म के लोग होंगे, एक जो अपने देश को प्यार करते है और दूसरे वो जिन्हें उस धरती से कोई प्यार नहीं है, जहां उनका जन्म हुआ है।" अभिनय आकाश

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