सुरक्षा के लिहाज से कॉरिडोर का रोल अहम
पूर्वोत्तर के राज्य जिसमें आठ राज्य सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघायल आते हैं। इनमें से सिक्किम को हटा दें तो सात राज्य बचते हैं। जिन्हें सेवन सिस्टर्स कहा जाता है। ऐसे में चिकेन नेक कटने से पूर्वोत्तर जाने का कोई रास्ता ही नहीं रह जाएगा। चीन की नजर इसी सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर है और जिसकी वजह से उसकी तरफ से डोकलाम पर कब्जा करने की कोशिश की गई। डोकलाम भूटान का है लेकिन इसकी ऊंचाई ही सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है क्योंकि इसकी वजह से ही सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर आराम से नजर रखा जा सकता है। डोकालाम से सिलीगुड़ी कॉरिडोर की दूरी करीब 30 किलोमीटर है। ऐसे में अगर डोकालाम पर कब्जा हो गया तो वहां से सिलीगुड़ी पर आराम से नजर रखी जा सकती है। इसलिए डोकालाम विवाद में भारत भूटान की ओर से चीन से लड़ गया था। तिब्बत से इसकी निकटता भारत के लिए एक लाभ के रूप में कार्य करती है क्योंकि यह चीन पर कड़ी नजर रख सकता है जिसने इस क्षेत्र में कई सड़कों और हवाई पट्टियों का निर्माण किया है।
युद्ध की स्थिति में निभा सकता है अहम भूमिका
युद्ध की स्थिति में सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से आसानी से हथियार और सैनिकों को लामबंद किया जा सकता है। बीजिंग अपनी बेल्ट एंड रोड योजना के लिए अपनी वैश्विक व्यापार पहुंच में सुधार के बहाने भारत के पड़ोसी देशों में भारी निवेश कर रहा है लेकिन ये देश चीनी कर्ज के जाल में फंस गए हैं। ज्यादातर पश्चिमी देश चीन की आलोचना इस बात को लेकर करते हैं कि है यह गरीब, विकासशील देशों पर ऋण थोपता है। जिनके वापस भुगतान करने की कोई उम्मीद नहीं है और इसका राजनीतिक प्रभाव का लाभ उठाने के लिए उपयोग करने की कोशिश कर रहा है।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी को बढ़ावा देने में कर रहा मदद
चिकन नेक कॉरिडोर से तिब्बत की चुंबी घाटी महज 130 किमी दूर है। भारत, नेपाल और भूटान का ट्राइजंक्शन इस घाटी के सिरे पर पाया जाता है और इसे डोकलाम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जो एक गतिरोध बिंदु बन गया है। हिमालय पर्वत जैसे कंचनजंगा पर्वत दो प्रमुख नदियों का स्रोत हैं जिन्हें तीस्ता और जलदाखा के नाम से जाना जाता है जो बांग्लादेश में प्रवेश करते समय ब्रह्मपुत्र नदी में विलीन हो जाती हैं। भारत के पूर्वोतर क्षेत्र में 50 मिलियन लोगों की आबादी है और ज्यादातर नेपाली और बंगाली अप्रवासी पाए जाते हैं। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से यह कॉरिडोर उत्तर-पूर्वी राज्यों और शेष भारत के व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से, यह गलियारा उत्तर-पूर्वी राज्यों और शेष भारत के व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह उनके बीच एकमात्र रेलवे फ्रेट लाइन भी होस्ट करता है। दार्जिलिंग की चाय और इमारती लकड़ी इस क्षेत्र के महत्व को और बढ़ा देती है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सड़क मार्ग और रेलवे सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़े हुए हैं। उन्हें सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति इसी कॉरिडोर के माध्यम से ही की जाती है। यह भारत और इसके पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान देशों के बीच संपर्क को सुगम बनाकर भारत को अपनी 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है। यह गलियारा पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध अप्रवास, सीमा पार आतंकवाद और इस्लामी कट्टरपंथ का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
2021 के आखिर तक पूरा करने की डेडलाइन
प्रोजेक्ट में लगातार देरी भी हो रही है। इसकी डेडलाइन कई बार बढ़ी। फिर 2021 के आखिर तक पूरा करने की डेडलाइन तय की गई लेकिन अभी काफी काम बाकी है और अब माना जा रहा है कि यह 2031 तक पूरा हो पाएगा। यह भारत को साउथ ईस्ट एशिया से जोड़ने का छोटा रास्ता तो होगा ही जिससे व्यापार के नए मौके मिलेंगे इसके अलावा यह सामरिक रूप से भी काफी अहम है। इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 33 पुल हैं जिनमें 8 भारत में बन रहे हैं। सभी पुल इस तरह बन रहे हैं जिसमें सेना के टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां जैसे भारी सैन्य साजो सामान भी आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं।
-अभिनय आकाश