By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 07, 2025
जन्मजात विकृति और गहरे रंग के कारण सहपाठियों से ‘एलियन’ का ताना सुनने वाली भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी तुलसीमति मुरुगेसन ने पेरिस पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के बाद अर्जुन पुरस्कारों की सूची में जगह बनाकर बचपन की अपनी कड़वीं यादों को पीछे छोड़ दिया है। इस 22 साल की लड़की की कहानी अथक दृढ़ता की है जो दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अपने पिता डी. मुरुगेसन के अटूट समर्थन से प्रेरित है। उनके पिता ने समाज के विरोध के बावजूद अपनी बेटियों (तुलसीमति और किरुट्टीघा) को खेलों में आगे बढ़ना जारी रखा।
तुलसीमति ने ‘पीटीआई’ से कहा, ‘‘उन्होंने हमें कभी भी अपने संघर्षों को देखने नहीं दिया। वह नहीं चाहते थे कि हमें पता चले कि उन्होंने हमारे सपनों को साकार करने के लिए कितनी मेहनत की या कितना बलिदान दिया। यही कारण है कि हर पदक, हर पुरस्कार जो मैं जीतती हूं, वह उनका है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ रिश्तेदार और पड़ोसी मेरे पिता से कहते थे कि हमें खेल के मैदान पर क्यों ले जा रहे हैं। वे लड़कियां हैं और वे शादी कर के चली जायेंगी।’’
डी.मुरुगेसन पर हालांकि इसका कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने अपनी बेटियों को हॉकी, टेनिस, फुटबॉल, वॉलीबॉल खेलने के लिए प्रेरित किया। तुलसीमति और उनकी बहन को हालांकि बैडमिंटन सबसे चुनौतीपूर्ण लगा इसलिए उनके पिता ने इस खेल को चुनने का फैसला किया। उन्होंने कहा, ‘‘जब हमने कहा कि यह कठिन है, तो मेरे पिता ने कहा कि ‘यही खेल तुम्हारा पेशा होगा’। और फिर उस फैसले ने हमारी जिंदगी बदल दी।’’
परिवार की मुश्किल वित्तीय स्थिति के बीच भी मुरुगेसन ने अपनी बेटियों के सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस दौरान छोटे टूर्नामेंटों से मिलने वाली इनामी राशियों का इस्तेमाल उन्होंने खेल से जुड़े उपकरण खरीदने में किया। अपने बचपन के बारे में पूछे जाने पर तुलसीमति ने कहा, ‘‘ मैंने कई मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया है। मेरे सहपाठी मेरी दिव्यांगता के कारण मुझे चिढाते थे। वे मेरे रंग, मेरे हाथ और मेरी पृष्ठभूमि के कारण मुझे ‘एलियन’ कहते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने एक बार जिला स्तर के एक छोटे टूर्नामेंट में भाग लिया था और जब जीत कर लौटी तो कुछ सहपाठी मुझ से बात करने आये। उसी समय मैंने अपनी कड़वी यादों को पीछे छोड़ने के लिए जीवन में कुछ बड़ा हासिल करना के बारे में सोचा।’’ ‘मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ के कारण तुलसीमति का बायां हाथ काम नहीं करता था लेकिन 2022 में एक सड़क दुर्घटना ने उनके इस हाथ को पूरी तरह से खराब कर दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘ इस दुर्घटना के बाद मेरे माता-पिता कई दिनों तक रोते रहे। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरे साथ क्या हुआ था।’’ इस चोट से उबरने के बाद तुलसीमति ने 15 देशों की यात्रा की और 16 स्वर्ण, 11 रजत और सात कांस्य पदक जीते। इसमें एशियाई पैरा खेलों में उल्लेखनीय उपलब्धि भी शामिल है। उन्होंने कहा, ‘‘चेन्नई हवाई अड्डे पर मैंने पदक अपने पिता को समर्पित किए। मैंने घुटनों के बल बैठकर उन्हें ये पदक अर्पित किए। यह मेरे लिए सबसे यादगार पल था।’’
पेरिस पैरालंपिक में हालांकि उन्होंने पदक जीतकर अपने करियर की सबसे बड़ी सफलता हासिल की। जब अर्जुन पुरस्कार की घोषणा की गई तब तुलसीमति नमक्कल में अपनी पशु चिकित्सा कक्षा में थी। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी कक्षाएं आम तौर पर शाम पांच बजे समाप्त होती हैं, लेकिन मुझे लगता है कि घोषणा दोपहर तीन बजे के आसपास की गई थी। मैं कक्षा में थी और मुझे इसके बारे में पता नहीं था। मेरी कक्षाएं समाप्त होने के बाद मैंने अपना फोन देखा तो वह बधाई संदेशों से भरा हुआ था। मेरे पास दोस्तों के भी कई फोन आये।