देवी कूष्मांडा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कूष्मांडा देवी अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं

By विजयेन्दर शर्मा | Oct 10, 2021

नवरात्रि का चौथा दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है।   देवी कूष्मांडा की पूजा  का विशेष महत्व होता है। क्योंकि ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कूष्मांडा देवी अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं 

 


ज्वालामुखी में शारदीय नवरात्र मेला के दौरान देश दुनिया से श्रद्धालु आ रहे हैं।  बीते दिन दो नवरात्रि  एक साथ होने की वजह से भीड़ में इजाफा हुआ है।  ज्वालामुखी में शनिवार रात से ही बड़ी तादाद में श्रद्धालु कतारों में अपने दर्शनों के इंतजार कर हैं।  माता के जयकारों से मंदिर परिसर गूंज रहा है। माता के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा हो रही है। 

 

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पंडित प्रबल शास्त्री ने बताया कि नवरात्रि का चौथा दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है।   देवी कूष्मांडा की पूजा  का विशेष महत्व होता है। क्योंकि ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कूष्मांडा देवी अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं।   इनकी आठ भुजाएं है और इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है । हिंदू शास्त्रों के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व भी था तब इन्हीं देवी अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी और इनका एक नाम आदिशक्ति भी है। देवी कूष्मांडा का तेज और प्रकाश दसों दिशाओं को प्रकाशित करता है।   इनकी आठ भुजाओं में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत पूर्ण कलश, चक्र, गदा और जप माला हैं । इनका वाहन सिंह है और कहा जाता है कि इनकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं  । लोग निरोगी होते हैं और आयु व यश में बढ़ोत्तरी होती है। 

 

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नवरात्रि के चौथे दिन  देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है । जो व्यक्ति शांत और संयम भाव से मां कुष्मांडा की पूजा उपासना करता है उसके सभी दुख होते हैं।   निरोगी काया के लिए भी मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है।   देवी कूष्मांडा   भय दूर करती हैं और इनकी पूजा से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। 

 

 

 देवी कूष्मांडा अपने भक्तों के हर तरह के रोग, शोक और दोष को दूर करती हैं । इन दिन देवी कुष्मांडा को खुश करने के लिए मालपुआ का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।  इन दिन सुबह नहाकर साफ वस्त्र पहनें और मां कूष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें।   इसके बाद मां कुष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं।   मां को मालपुआ बेहद पसंद है और संभव हो तो उन्हें मालपुए का भोग लगाएं।   फिर उसे प्रसाद स्वरूप आप भी ग्रहण कर सकते हैं. पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें । 

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