आजादी के बाद 6 बार हुआ गठन, 3 बार पलटी सरकार, JPC होता क्या है जिसे बनाने पर मचा है रार

By अभिनय आकाश | Feb 04, 2023

एक कमेटी जिसके खुलासे ने मिस्टर क्लीन इमेज वाली सरकार को भी चुनाव में हार का स्वाद चखा दिया। उदारवाद का मार्ग प्रसस्त करने वाले प्रधानमंत्री को भी किनारे लगा दिया। दो साल बैक टू बै बहुमत के साथ आने वाली सरकार के दामन पर ऐसा दाग लगाया कि उसे फिर लाख मशक्त के बाद अब दोबारा सत्ता हासिल हो नहीं पाया।  दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स गौतम अडानी अब टॉप-20 अमीरों की लिस्ट से भी हुए बाहर हो गए हैं। अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद अडानी ग्रुप की कंपनी के शेयरों में जो सुनामी आई, उसने गौतम अडानी के साम्राज्य को हिला कर रख दिया है। वहीं देश की राजनीति भी इस मुद्दो को लेकर उबाल मार रही है। विपक्ष ने अडानी समूह के खिलाफ धोखाधड़ी और स्टॉक हेरफेर के आरोपों की सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) या भारत के मुख्य न्यायाधीश की निगरानी में जांच की मांग पर अड़ी है। संसद में दिन की कार्यवाही से पहले कांग्रेस द्वारा बुलाई गई बैठक में 13 अन्य दलों ने भाग लिया। हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी मामले को लेकर जेपीसी जांच की मांग की गई हो इससे पहले, विपक्ष ने राफेल सौदे और नोटबंदी की जेपीसी जांच की मांग की थी, लेकिन मांग नहीं मानी गई। वैसे तो संसद में बनने वाले कितने कानूनों की खामियां, बारिकियां परखने के लिए जेपीसी का गठन कई दफा हो चुका है। लेकिन भारत की आजादी के बाद से केवल और केवल 6 दफा ही हुआ जब किसी घोटाले की जांच ते लिए जेपीसी का गठन किया गया हो। दरअसल, 2014 में जब से बीजेपी सत्ता में आई है, तब से किसी जेपीसी का गठन नहीं किया गया है।

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संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) क्या है?

एक विशेष उद्देश्य के लिए संसद द्वारा एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की स्थापना किसी विषय या विधेयक की विस्तृत जांच के लिए की जाती है। इसमें दोनों सदनों और सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सदस्य होते हैं। इसका कार्यकाल समाप्त होने या इसका कार्य पूरा होने के बाद इसे भंग कर दिया जाता है।

जेपीसी की स्थापना कैसे होती है?

संसद के एक सदन द्वारा प्रस्ताव पारित करने और दूसरे सदन द्वारा इस पर सहमति जताए जाने के बाद जेपीसी का गठन किया जाता है। जेपीसी के सदस्य संसद द्वारा तय किए जाते हैं। सदस्यों की संख्या भिन्न हो सकती है - कोई निश्चित संख्या नहीं है।

जेपीसी क्या कर सकती है?

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च पर एक लेख के अनुसार जेपीसी का जनादेश इसे गठित करने वाले प्रस्ताव पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, "शेयर बाजार घोटाले पर जेपीसी के संदर्भ की शर्तों ने समिति को वित्तीय अनियमितताओं को देखने, घोटाले के लिए व्यक्तियों और संस्थानों पर जिम्मेदारी तय करने, नियामक खामियों की पहचान करने और उपयुक्त सिफारिशें करने के लिए भी कहा जा सकता है। अपने जनादेश को पूरा करने के लिए एक जेपीसी दस्तावेजों की जांच कर सकती है और लोगों को पूछताछ के लिए बुला सकती है। इसके बाद यह एक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है और सरकार को सिफारिशें करता है।

जेपीसी कितनी शक्तिशाली है?

जेपीसी की सिफारिशों का प्रेरक मूल्य है, वे सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। जेपीसी ने जो कहा है, उसके आधार पर सरकार आगे की जांच शुरू करने का विकल्प चुन सकती है, लेकिन उसे ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। जेपीसी और अन्य समितियों की सिफारिशों के आधार पर की गई अनुवर्ती कार्रवाई पर सरकार को रिपोर्ट करने की आवश्यकता है। समितियां तब सरकार के जवाब के आधार पर संसद में 'कार्रवाई रिपोर्ट' प्रस्तुत करती हैं। 

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कितनी बार जांच के लिए जेपीसी बनाई गई

लोकसभा की वेबसाइट के मुताबिक अब तक छह जेपीसी का गठन किया जा चुका है। ये हैं “दूरसंचार लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के आवंटन और मूल्य निर्धारण से संबंधित मामलों की जांच करने वाली जेपीसी, शीतल पेय, फलों के रस और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक अवशेषों और सुरक्षा मानकों पर जेपीसी, स्टॉक मार्केट घोटाले और उससे संबंधित मामलों पर जेपीसीबैंकिंग लेनदेन में अनियमितताओं की जांच, बोफोर्स सौदे की जांच; लाभ के पद से संबंधित संवैधानिक और कानूनी स्थिति की जांच करने के लिए संयुक्त समिति।

कब-कब किया गया जेपीसी का गठन और क्या आए परिणाम

बोफोर्स घोटाला

24 मार्च, 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। यह सौदा भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप की सप्लाई के लिए हुआ था। 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि कंपनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को घूस दिए हैं। 60 करोड़ रुपये घूस देने का दावा किया गया। 6 अगस्त, 1987 को  रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय कमिटी (जेपीसी) का गठन हुआ। इसका नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री बी.शंकरानंद ने किया। फरवरी 1988 में मामले की जांच के लिए भारत का एक जांच दल स्वीडन पहुंचा। 18 जुलाई, 1989 को जेपीसी ने संसद को रिपोर्ट सौंपी। हालांकि समिति ने अपनी रिपोर्ट में राजीव गांधी को क्लीन चिट दे दिया। एआईएडीएमके (जानकी गुट) के सांसद और इस कमेटी के सदस्य अलादी अरुणा ने इस रिपोर्ट में असहमति का नोट लगाया था और घोटाला होने की बात कही थी। चुनाव में राजीव गांधी की हार होती है। 26 दिसंबर, 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने बोफोर्स पर पाबंदी लगा दी।

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हर्षद मेहता

किसी दौर में कहा जाता था कि हर्षद मेहता जिस चीज को छू देता था, वो सोना बन जाता था। उसे ‘स्टॉक मार्केट का अमिताभ बच्चन’ और ‘बिग बुल’ भी कहा जाता था। बैंकिंग सिस्टम की कमियों का फायदा उठाकर हर्षद मेहता ने बैंकिंग लेनदेन में गोलमाल किया था। 1992 में हर्षद मेहता के इस राज से टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार सुचेता दलाल ने इस राज का पर्दाफाश किया। खुलासा होने के बाद मेहता के ऊपर 72 क्रमिनर चार्ज लगाए गए और सिविल केस फाइल हुए। हर्षद मेहता ने 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री और उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव पर केस से बचाने के लिए 1 करोड़ घूस लेने का आरोप लगाया था। उसने दावा किया कि पीएम को उसने एक सूटकेस में घूस की रकम दी थी। सदन में काफी हंगामे के बाद सरकार ने इस पर जेपीसी गठन का फैसला किया। कांग्रेस सांसद राम निवास मिर्धा को इसका अध्यक्ष बनाया गया. मिर्धा ने मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट दे दिया।

केतन पारिख केस

2001 में केतन पारेख की शेयर बाजार की अनियमितताओं को देखने के लिए एक और जेपीसी का आदेश दिया गया था। केतन पारेख पर 2 लाख करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का आरोप था। माधवपुरा मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक ने कथित तौर पर पारेख के साथ मिलीभगत कर बिना जरूरी फंड के पे ऑर्डर जारी किया था। घोटाले का दाग वाजपेयी सरकार पर भी आई, जिसके बाद बीजेपी सांसद रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी की अध्यक्षता में जेपीसी का गठन किया गया। इस समिति ने भी सरकार को क्लीन चिट दे दिया और शेयर बाजार के नियमों में फेरबदल की सिफारिश की।

सॉफ्ट डिक्स में पेस्टिसाइड

अगस्त 2003 में एक बार फिर से जेपीसी का गठन किया गया। इस बार सॉफ्ट ड्रिंक, फ्रूट जूस और अन्य पेय पदार्थों में पेस्टिसाइड के मिले होने की जांच का जिम्मा सौंपा गया। कमेटी की अध्यक्षता एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने की। कमेटी ने इस मामले में 17 बैठकें की और 4 फरवरी 2004 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में बताा गया कि शीतल पेय में पेस्टिसाइड था। कमेटी ने पीने के पानी के लिए कड़े मानकों की सिफारिश की। हालांकि उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

टू जी स्पेक्ट्रम

साल 2009-10 में स्पैक्ट्रम आवंटन मामले में रिश्वत लेने की बात सामने आई तो इन आरोपों से कांग्रेस बुरी तरह घिर गई। तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा को जेल भी जाना पड़ा। कई दिन संसद ठप होने के बाद मनमोहन सरकार ने 2011 में जेपीसी बनाने का ऐलान किया। जेपीसी की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद पीसी चाको को सौंपी गई। चाको ने कुछ ही दिन के अंदर ड्राफ्ट रिपोर्ट में पीएम मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन चिट दे दी। रिपोर्ट पर 15 सांसदों ने विरोध जताया। कांग्रेस के लिए ये घोटाला बहुत नुकसानदायक साबित हुआ था। 

वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला

यूपीए के दूसरे शासनकाल के दौरान एक और बड़ा घोटाला सामने आया। ये वीवीआईपी हेलिकॉप्टर की खरीद से जुड़ा है। ये हेलिकॉप्‍टर्स प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री जैसे वीवीआईपी लोगों के लिए खरीदे गए। भारत ने 12 अगस्‍ता वेस्‍टलैंड हेलिकॉप्‍टर्स खरीदने के लिए 3,700+ करोड़ रुपए का सौदा किया था। आरोप लगा कि सौदा कंपनी के पक्ष में हो, इसके लिए 'बिचौलियों' को घूस दी गई जिनमें राजनेता और अधिकारी भी शामिल थे। विपक्ष ने जेपीसी से जांच की मांग की। 27 फरवरी 2013 को जेपीसी बनाई गई। इस कमेटी में 10 सदस्य राज्यसभा और 20 लोकसभा से थे। इस कमेटी ने अपनी पहली बैठक के 3 महीने बाद ही रिपोर्ट सौंप दी थी।

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