सबके भले, सबकी तरक्की की कामना करता है हिन्दू

By तरुण विजय | Apr 10, 2017

हिंदू का मूल स्वभाव ही 'सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया' वाला है। वह सबके सुख, सबकी शांति और मोक्ष की कामना करता है। जन्म से अंत्येष्टि तक के उसके मंत्र, उसकी प्रार्थनाएं विश्व कल्याण के लिए हैं- अपने, अपनी आस्था पद्धति के अनुयायियों मात्र के लिये नहीं।

वहीं हिन्दू आज सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप (जिसे अब विकृत कर साउथ एशिया कहा जाने लगा है) में आक्रांत है। नेपाल में वहां के संविधान में हिन्दू राष्ट्र शब्द का समावेश 1962 में हुआ। उसे भारतीय कम्युनिस्टों और नेपाली माओवादियों की दुरभिसंधि ने हटाया। नेपाल के राष्ट्रपति यदि किसी को कह सकते हैं तो उस महान स्थान पर, पृथ्वी नारायण शाह ही रखे जा सकते हैं। उन्होंने वर्तमान नेपाल का स्वरूप बनाया। एकीकरण किया। हिन्दुओं को बंटने और ईसाइयों के मतान्तरण से बचाया। यदि पृथ्वी नारायण शाह की कठोरता और दूरदृष्टि न होती तो वर्तमान नेपाल न होता, उसका हिन्दू स्वरूप न होता। बाद में कुछ महाराजा जन-मन को न पहचान सके और राजा के भक्तों ने जो लूटखसोट तथा भ्रष्टाचार किया उससे विरक्त जनता ने राज-तख्त पलट दिया। आज वहां लोकतंत्र फले-फूले यह हम सबकी कामना है। पर वहां जब राजभक्त अपनी शर्म और पुराने जन-द्रोही कृत्य छिपाने के लिए पृथ्वी नारायण शाह का नाम लेते हैं तो लोगों को संदेह होना स्वाभाविक ही है। पर वर्तमान नेपाल के जननायक, नेपाल के आदर्श शासक तो पृथ्वी नारायण शाह के अलावा किसे कहा जा सकता है?

 

आज उसी नेपाल में न केवल पृथ्वी नारायण शाह के प्रति असम्मान पैदा किया जा रहा है- उन ईसाई-कम्युनिस्ट विचार वालों द्वारा जो नेपाल में हिंदू मन पर आघात कर न सिर्फ वहां का सामाजिक तानाबाना तोड़ना चाहते हैं बल्कि उसकी भारत से युगों युगों की मैत्री भी खंडित करने के लिए प्रयासरत हैं, बल्कि ईसाई मिशनरी अरबों डॉलर का निवेश कर ऐसी एनजीओ अप-संस्कृति फैला रहे हैं जो नेपाल की राष्ट्रीयता पर सबसे बड़ा आक्रमण है। सिर्फ इसलिए कि वह हिन्दू बहुल देश है।

 

पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका में क्या स्थिति है? पिछले दिनों मैं पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित से मिला। उन्होंने पाकिस्तान में हिन्दू मंदिरों पर बड़ी शानदार पुस्तक दी। देख, पढ़कर तो अच्छा लगा। लेकिन वहां के हिन्दुओं की हर रोज की कराहपूर्ण कथाएं, हिंदू बच्चियों का दर्दनाक अपहरण और जबरन निकाह क्या बताता है? बांग्लादेश तो हिन्दू विरोधी जिहाद की फैक्ट्री बन चुका है। कोई हिन्दू कैबिनेट मंत्री नहीं, जब कि वहां एक करोड़ से ज्यादा हिन्दू हैं। वहां हिन्दुओं की कोई सुनवाई नहीं। हिन्दू संगठन चुपचाप किसी तरह अपने तीज त्योहार मनाते हैं, दबे-दबे से जीवन बिताते हैं। उनको जीवन का सबसे बड़ा मनोबलवर्द्धक अनुभव तब हुआ था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाका यात्रा पर गये और मां ढाकेश्वरी की पूजा की। हिन्दू समाज जो कभी भारत के विभाजन का समर्थक नहीं रहा, लेकिन विभाजन का सर्वाधिक आघात उसे ही सहना पड़ा, आज नेतृत्व एवं संरक्षण विहीन है।

 

श्रीलंका में हिन्दू तमिल आज भी विफल एवं आर्थिक, शौक्षिक समान अवसरों से वंचित हैं। 30 हजार हिन्दू तमिल शरणार्थी आज भी चेन्नई के पास नागरिकता विहीन विपन्नावस्था में जीवन बिताते हैं। भारत में स्थिति बदल रही है लेकिन जिहादी-माओवादी-चर्च का त्रिदंश हिन्दू समाज पर बहुआयामी आक्रमण कर रहा है। योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने पर विरोध का मुख्य कारण उनका हिन्दू धर्म निष्ठ- भगवा वस्त्र धारी संन्यासी होना ही था। कैराना से हिन्दुओं का पलायन कोई न भूला है, न भूलेगा। इस्लाम की किसी पुस्तक में गोवध और गोमांस न लिखा होने के बावजूद केवल विदेशी हमलावरों की दृष्टि से हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए किये जाने वाले गोवध-मांस के लिए नहीं बल्कि हिन्दुओं को गुलाम जैसा महसूस कराने के लिए ही किया जाता है। जेहादी और माओवादी केवल हिन्दुओं को ही अपनी कायराना हिंसा का शिकार बनाते हैं। उत्तर पूर्वांचल में चर्च द्वारा केवल हिंदुओं पर मतान्तरण का आक्रमण किया जाता है। यह सब क्या हम निगाहों से उपेक्षित करते हुए जीवन बिताते रह सकते हैं।

 

ऐसे लोगों का समर्थन अंग्रेजियत में ढले हिन्दू ही करते हैं जो हिन्दूओं पर हमला अपने सेकुलर प्रमाण पत्र पर मुहर जैसा मानते हैं, इसके कुछ ताजा उदाहरण भी हैं- अपने संघ-हिन्दुत्व और भगवा के प्रति गहरी घृणा, बल्कि शत्रुतापूर्ण विकृत लेखन के लिए चर्चित एक पत्रकार ने गीता प्रेस पर अत्यंत दुर्भावनापूर्ण पुस्तक लिखी। यह पुस्तक उन हिन्दू विरोधी वर्गों के लिये हैं जो सहमत द्वारा पूर्वकालीन प्रचारित संघ विरोधी इश्तहार-बाजी की श्रृंखला बनाते हैं। गीता प्रेस हिन्दू समाज की रक्षक संस्था है जो उन लोगों द्वारा चलायी गयी जिन्होंने वीतरागी, निस्पृह भाव से हिन्दू धर्म शास्त्रों का निर्दोष, शुद्ध अत्यंत परिश्रमपूर्वक शोध के उपरांत सत्य, सम्यक पाठ बेहद सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करवाया। यदि आज कोई ऐसी संस्था है जिसे संस्था के नाते भारत रत्न मिलना चाहिए तो यह असंदिग्ध रूप से गीता प्रेस होगी। लेकिन उसी गीता प्रेस पर वामपंथी पश्चिमी मानस में लेखक-पत्रकार आज क्यों आक्रमण कर रहे हैं? क्योंकि वे उभरते, सशक्त होते, संगठित हिन्दू धर्मानुयायियों को आहत करना चाहते हैं। यही वे लोग हैं जो हिन्दू नामधारी होते हुए भी भगवान कृष्ण का उस तरह उपहास उड़ाते हैं जैसे अरब हमलावर और ईसाई मिशनरी उड़ाते थे। इन हिन्दुओं से पूछना चाहिए कि यदि उन्हें सनातन धर्म से इतनी चिढ़ है कि उसे कन्जरवेटिव हिन्दुइज्म कहकर उन अनपढ़ पश्चिमी मानस के अंग्रेजी बोलने वालों से प्रशंसा पाना उन्हें ज्यादा बेहतर लगता है तो क्या वे शादी में संस्कृत मंत्र, अग्नि के फेरे बंद करेंगे या अंत्येष्टि के बजाय सेकुलर अंतिम क्रिया के नाते कब्रिस्तान में दफन किया जाना अपनी वसीयत में लिखेंगे? क्या वे कृष्ण का उपहास जिस आसानी से करते है वैसे ही अन्य किसी संप्रदाय के प्रमुख, पैगम्बर या नायक पर भी टिप्पणी करने का साहस दिखायेंगे?

 

भारत द्रोही इन तमाम हिन्दू नामधारी अहिन्दुओं की विकृत दृष्टि का ही नहीं, भारत के समग्र विकास एवं विश्व में उसकी श्रेष्ठता का सिक्का जमाने का मार्ग अयोध्या से गुजरता है। अयोध्या सिर्फ मंदिर नहीं भारत के नवोदय का पुण्य पंथ है। वह हिन्दू जो साहस, धैर्य और शौर्य के साथ खड़ा होकर भारत के नवोदय को हिन्दू सम्मान और अयोध्या से जोड़ेगा, उसका उभरना अब दिखने लगा है।

 

- तरुण विजय

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