By नीरज कुमार दुबे | Jul 07, 2022
भाजपा भले दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी हो लेकिन इसके बारे में कुछ लोग प्रचारित करते हैं कि यह मुस्लिमों के खिलाफ रहती है। भाजपा के विरोधी यह भी कहते हैं कि भगवा पार्टी मुसलमानों को चुनाव में टिकट नहीं देती और उन्हें मंत्री भी नहीं बनाती। यह आरोप तब और लगाये जाने लगे जब भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आठ साल के अब तक के कार्यकाल में यह पहला मौका है, जब मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाला एक भी सदस्य उनकी मंत्रिपरिषद का हिस्सा नहीं है। यही नहीं, संसद के दोनों सदनों में भाजपा के 395 सदस्य हैं लेकिन इनमें से एक भी सदस्य मुस्लिम समुदाय का नहीं है।
जहां तक नकवी के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे की बात है तो हम आपको बता दें कि पिछले महीने 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों पर चुनाव हुआ था। जिन 57 सदस्यों का राज्यसभा में कार्यकाल खत्म हो रहा था उनमें नकवी के अलावा भाजपा सांसद एमजे अकबर और सैयद जफर इस्लाम भी शामिल थे। भाजपा ने इन तीनों ही मुस्लिम नेताओं को दोबारा राज्यसभा का उम्मीदवार नहीं बनाया। हम आपको याद दिला दें कि वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उनकी मंत्रिपरिषद में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर नजमा हेपतुल्लाह और मुख्तार अब्बास नकवी को शामिल किया गया था। नजमा हेपतुल्लाह को अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री और नकवी को राज्यमंत्री बनाया गया था। 2016 में जब नजमा हेपतुल्लाह को मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया तब नकवी को पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। वर्ष 2016 में ही मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य एमजे अकबर को विदेश मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि एक महिला पत्रकार द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद उन्हें मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देना पड़ा था। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में वह पहले मंत्री थे जिन्हें इस प्रकार पद छोड़ना पड़ा। एमजे अकबर के इस्तीफे के बाद नकवी ही अभी तक केंद्रीय मंत्रिपरिषद में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि थे।
उधर, जहां तक संसद में भाजपा का एक भी सदस्य ना होने की बात है तो संसद में भाजपा के मुस्लिम सदस्यों की मौजूदगी हमेशा बेहद कम ही रही है। अब लंबे अरसे बाद ऐसा हो रहा है कि संसद में भाजपा का कोई मुस्लिम सदस्य नहीं होगा। भाजपा के मुस्लिम नेताओं की बात करें तो नकवी तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे जबकि एक बार वह रामपुर से चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे। नजमा हेपतुल्लाह दो बार राज्यसभा की सदस्य बनीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मंत्रिपरिषद के सदस्य रहे शाहनवाज हुसैन दो बार लोकसभा के सदस्य चुने गए। पहली बार उन्होंने किशनगंज से जीत दर्ज की और दूसरी बार वह भागलपुर से चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने। वह फिलहाल, बिहार सरकार में उद्योग मंत्री हैं। भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे सिकंदर बख्त भी दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। वह अटलजी की सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। बाद में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था। वह भाजपा के पहले तीन महासचिवों में से एक थे। राज्यों की भाजपा सरकारों में मुस्लिम मंत्रियों की बात करें तो बिहार में जहां शाहनवाज हुसैन मंत्री हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में दानिश आजाद अंसारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री हैं। योगी सरकार के पिछले कार्यकाल में राज्यमंत्री रहे मोहसिन रजा को इस बार दोबारा मौका नहीं मिला। इसके अलावा वर्तमान में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
हम आपको याद दिला दें कि इस साल के शुरू में जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हो रहे थे तब भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा था। इस बारे में जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से सवाल पूछा गया कि भाजपा का मुसलमानों के साथ क्या रिश्ता है तो उन्होंने कहा था कि सरकार और एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के नाते उसका जो रिश्ता होना चाहिए वही रिश्ता है। उन्होंने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद अगर उनके कल्याण में कोई भेदभाव हो तो आरोप लगाया जा सकता है।
देखा जाये तो भाजपा ने सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के मूलमंत्र पर आगे बढ़ते हुए सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अल्पसंख्यक वर्ग तक तेजी से पहुँचाया है और मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति दिलायी है, इसीलिए इस समुदाय के वोट उसे लगातार मिल रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के रामपुर और आजमगढ़ संसदीय सीटों के उपचुनाव में भी भाजपा की जीत हुई जबकि यह दोनों सीटें अल्पसंख्यक बहुल हैं। भाजपा लगातार यह साबित करने में जुटी है कि मुस्लिमों का कल्याण सिर्फ चुनावों में टिकट देकर, इफ्तार की दावत करके या तुष्टिकरण करके नहीं बल्कि योजनाओं का लाभ उन तक पहुँचाने से होगा।
बहरहाल, यह सही है कि राजनीति में सभी वर्गों की पर्याप्त भागीदारी होनी चाहिए लेकिन यह भी गलत है कि किसी सांसद को जाति या धर्म के चश्मे से देखा जाये। संसद के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं ना कि किसी धर्म विशेष के।
-नीरज कुमार दुबे