पहले अधीर रंजन, अब राघव चड्ढा: सदन से कैसे निलंबित होते हैं सांसद, जानें पूरी प्रक्रिया

By अभिनय आकाश | Aug 12, 2023

फर्जी हस्ताक्षर मामले में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा को शुक्रवार को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया। चड्ढा का निलंबन नियम के घोर उल्लंघन, कदाचार, उद्दंड रवैया और अवमाननापूर्ण आचरण के लिए विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट लंबित होने के कारण सदन के नेता पीयूष गोयल के एक प्रस्ताव के बाद आया। यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपमान करने के आरोप में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा से निलंबित किए जाने के ठीक एक दिन बाद आया है। चौधरी के निलंबन का प्रस्ताव प्रल्हाद जोशी ने पेश किया था। विशेषाधिकार समिति को चौधरी के निलंबन की सूचना दे दी गई है। लेकिन सांसदों को संसद से कब निलंबित किया जाता है और उसके बाद क्या होता है?

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सांसदों को संसद से कब निलंबित किया जाता है?

हंगामा करने, कामकाज में बाधा डालने और घोर कदाचार सहित अनियंत्रित व्यवहार के लिए सांसदों को संसद से निलंबित किया जा सकता है। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को सदनों को सुचारू रूप से चलाने का काम सौंपा जाता है। प्रक्रिया और आचरण के नियमों के अनुसार, लोकसभा अध्यक्ष नियम 373 के तहत अव्यवस्थित आचरण के लिए किसी सदस्य को तुरंत सदन छोड़ने का आदेश दे सकते हैं। अध्यक्ष नियम 374 के तहत किसी सदस्य को लगातार और जानबूझकर कार्य में बाधा डालने के लिए 'नाम' भी दे सकता है। इस प्रकार नामित सदस्य तुरंत सदन छोड़ देगा और शेष सत्र के लिए सदन से निलंबित रहेगा। अध्यक्ष, नियम 374ए के तहत, किसी सदस्य को 'घोर उल्लंघन' के लिए सदन से लगातार पांच बैठकों या शेष सत्र के लिए निलंबित कर सकता है। नियम 255 के तहत राज्यसभा के सभापति किसी सदस्य को घोर और अव्यवस्थित आचरण के लिए तुरंत सदन छोड़ने के लिए कह सकते हैं।

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क्या है नियम 374 (ए) 

नियम 374 (ए) कहता है, ‘नियम 373 और 374 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से सभा की कार्यवाही में बाधा डालकर लगातार और जानबूझकर सभा के नियमों का दुरुपयोग करते हुए घोर अव्यवस्था उत्पन्न किए जाने की स्थिति में अध्यक्ष द्वारा सदस्य का नाम लिए जाने पर वह सभा की सेवा से लगातार पांच बैठकों के लिए या सत्र की शेष अवधि के लिए, जो भी कम हो, स्वत: निलंबित हो जाएगा। 

आगे क्या होगा

चड्ढा और चौधरी दोनों पर विशेषाधिकार हनन का आरोप लगाया गया है। उनके निलंबन की अधिसूचना सदनों में संबंधित विशेषाधिकार समिति को भेज दी गई है। संसदीय विशेषाधिकार एक अवधारणा है जो बताती है कि संसद सदस्यों के पास सदन के कामकाज का संचालन करने के लिए कुछ अधिकार हैं। इनमें बोलने की आज़ादी भी शामिल है, जिसके तहत उन्हें अदालती कार्यवाही से छूट मिलेगी। राज्यसभा में विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। इसमें अध्यक्ष द्वारा नामित दस सदस्य शामिल होते हैं। दोनों सदनों में विशेषाधिकार समिति अब चड्ढा और चौधरी के मामलों की जांच करेगी। समितियाँ लोगों को गवाही देने के लिए बुला सकती हैं और यहाँ तक कि उनके पास प्रासंगिक दस्तावेज़ प्राप्त करने की शक्ति भी है। फिर वे रिपोर्ट तैयार करेंगे और आगे कैसे बढ़ना है इसके बारे में सिफारिशें जारी करेंगे। राज्यसभा में सभापति या उनकी अनुपस्थिति में उनकी समिति का कोई सदस्य सदन में रिपोर्ट पेश करेगा। फिर सदन को रिपोर्ट पर विचार करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करना होगा। लोकसभा में विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट फिर अध्यक्ष को प्रस्तुत की जाती है - जो स्वयं एक आदेश पारित करेगा या इसे पेश करने का निर्देश देंगे।

सदन विशेषाधिकार हनन के दोषी पाए गए सांसद पर निम्नलिखित दंड लगा सकता है:

सांसद को डांटा या फटकारा जा सकता है।

किसी सांसद को संसद भवन से निलंबित किया जा सकता है।

किसी सांसद को संसद भवन से निष्कासित किया जा सकता है।


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