By अनन्या मिश्रा | Nov 28, 2024
कुंडली का पंचम भाव संचित कर्म, प्रसिद्धि और पद का बोध कराता है। यह भाव खुशियों, संतान का सुख, मनोरंजन, रोमांस को प्यार को दर्शाता है। पंचम भाव से व्यक्ति के पूर्व जन्म में किए जाने वाले पुण्य फलों का पता चलता है। कालपुरुष की कुंडली में पंचम भाव के स्वामी सूर्य देवता होते हैं और इसे सिंह राशि का स्वामित्व प्राप्त होता है। पंचम भाव से फैलोशिप, लेखन, पोस्ट ग्रेजुएशन, उच्च शिक्षा, रिसर्च, मानसिक खोज और कौशल को देखा जाता है। ऋषि पाराशर के मुताबिक कुंडली का पंचम भाव, दशम भाव से अष्टम भाव पर स्थित होता है, तो यह पंचम भाव के प्रतिष्ठा और उच्च पद में गिरावट को दर्शाता है। पंचम भाव विज्ञान, कला और गणित आदि से होता है। इस भाव में व्यक्ति को अपने क्षेत्र और विषय में विशेषज्ञता को हासिल करना है।
बता दें कि कुंडली का पंचम भाव बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस भाव से व्यक्ति के पिछले कर्म और भविष्य का निर्धारण होता है। जो भी व्यक्ति अपने इस जन्म में अच्छे कर्म करता है, उसको अगले जन्म में वैसा फल मिलता है। यानी कि पंचम भाव संचित कर्म का भाव कहा जाता है। यह भाव यह बताता है कि गुरु और पिता से किस तरह का ज्ञान प्राप्त करेंगे। वैदिक ज्योतिष में कुंडली का पंचम भाव से नौकरी की शुरूआत और अंत को भी दर्शाता है। इस भाव से नौकरी के मिलने और खोने का भी विचार किया जाता है।
जन्म कुंडली के पंचम भाव को संतान सुख और शिक्षा का भी भाव माना जाता है। इस भाव में शुभ या अशुभ ग्रह के होने से व्यक्ति के शिक्षा और संतान के पहलुओं के बारे में भी विचार किया जाता है। यदि इस भाव में शुभ ग्रह होते हैं या फिर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती है, तो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। ज्योतिष में गुरु ग्रह को शुभ माना जाता है। यदि गुरु ग्रह कुंडली के पंचम भाव में बैठते हैं, तो व्यक्ति शिक्षा के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। क्योंकि गुरु बृहस्पति को उच्च शिक्षा का कारक माना जाता है। पंचम भाव शुभ होने पर व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में नया मुकाम और कीर्तिमान स्थापित करता है। ऐसे लोगों का करियर बहुत अच्छा होता है। वहीं अगर कुंडली का यह भाव अशुभ होता है, तो व्यक्ति की शिक्षा में परेशानियां आती हैं।