By अभिनय आकाश | Feb 22, 2022
अक्सर देश की राजनीति को लेकर एक बात उठती है Their is no alternative यानी सियासत का टीना फैक्टर देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के हक में अनुकूल तरीके से है। लेकिन क्या ये टीना फैक्टर खत्म होने वाला है। इस तरह के सवाल इन दिनों सियासी फिजांओं में बहने लगे हैं। वजह साफ है केसीआर से जिस तरह से महाराष्ट्र के मुखयमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की और उसके बाद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से भी मिले। एक तरह से नया मोर्चा खड़ा करने की तैयारियां दिखाई दे रही हैं। जिसकी हवा इस बार दक्षिण भारत से चलती दिखाई दे रही है। जिसमें पहले केसीआर तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन से मिले। जिसके बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री मुंबई पहुंचकर दो घंटे तक उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। केसीआर से मुलाकात के बाद बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस भी हुई है। ऐसी की तरह की कोशिश पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से भी की गई थी। ममता बनर्जी ने बंगाल में 'पोरिबोर्तन' का नारा देकर बीजेपी को शिकस्त देने के बाद दिल्ली दरबार का चक्कर भी लगाया। विपक्षी एकता जुटाने की कोशिश भी की। बीते दिनों यूपी चुनाव में ममता बनर्जी ने जरूर लखनऊ का दौरा किया है और अखिलेश यादव के सपोर्ट में साथ बैठ कर प्रेस कांफ्रेस भी की।
10 मार्च पर टिकी सभी की निगाहें
वैसे तो 10 मार्च की तारीख बेहद ही अहम मानी जा रही, जिसके पीछे की वजह है पांच राज्यों के नतीजे आने हैं इस दिन। इन नतीजों से राजनीतिक परिदृश्य में भी काफी बदलाव देखने को मिल सकता है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी का इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा है। अगर पंजाब के चुनाव में उसे जीत हासिल होती है तो वो ऐसी क्षेत्रीय पार्टी होगी जिसकी दो राज्यों में सरकार होगी। ऐसी सूरत में विपक्षी एकता में आप की अहमियत काफी बढ़ जाएगी। आम आदमी पार्टी पहले भी गैर बीजेपी, गैर कांग्रेसी दलों की एकता की पक्षधर रही है। लेकिन केवल आप ही नहीं इन चुनावों से समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अकाली दल का भविष्य भी इन चुनावी नतीजों पर टिका है। इन परिणामों के जरिये ही मोर्चे में इनकी भागीदारी की दिशा निर्धारित होगी। कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है ये चुनाव। कांग्रेस अगर इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करती है (जिसकी उम्मीद बहुत सीमित नजर आती है) क्षेत्रीय क्षत्रपों को उसे नजरअंदाज करना और अलग विपक्षी खेमा आगे बढ़ाना बेहद ही कठिन हो जाएगा। लेकिन नतीजा इसके उलट रही तो यह प्रक्रिया और तेज हो सकती है।
राष्ट्रपति चुनाव पर नजर
इस साल के मध्य में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। ऐसे में क्षेत्रीय दलों का मेल-मिलाप भी रणनीति बनाने का एक जरिया है। इन दलों को लगता है कि पांच राज्यों के चुनाव के परिणाम आने के बाद बीजेपी के लिए बिना उन्हें समर्थन में लिए किसी भी राष्ट्रपति को बनाना आसान नहीं होगा। साथ ही इन क्षत्रपों की अपनी सियासी समझ भी यह कहती है कि 2024 आम चुनाव से पहले विपक्ष को एक मंच पर आने का यह अंतिम बड़ा मौका होगा। अगर इस मौके का सही विशुद्ध राजनी ढंग से इस्तेमाल हो गया तो 2024 आम चुनाव से पहले विपक्ष को एक नई दिशा मिल सकती है। साफ है कि हड़बड़ी का पहला कारण राष्ट्रपति चुनाव में ताकत दिखाना है। तेलंगाना के सीएम ने कहा है कि अब सभी समान विचार वाली पार्टियां एक मंच पर आएंगी।
कांग्रेस के सामने अस्तित्व बचाने की चुनौती
पंजाब, उत्तराखंड और एक हद तक गोवा और मणिपुर में कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी कई सारे समीकरण निर्भर करेंगे। अगर कांग्रेस का प्रदर्शन खराब बढ़ेगी। अगर कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा तो पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं की संख्या बढ़ेगी।इससे गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी आगामी चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। इन राज्यों में आम चुनाव 2024 से पहले चुनाव होने हैं, जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच करीब-करीब सीधी भिड़ंत है। कुल मिलाकर कहा जाए तो कांग्रेस आज ऐसे मुकाम पर है जहां सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उसका वजूद दांव पर लगा है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से पता चलेगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले किस राजनीतिक दल का ग्राफ ऊपर की ओर है। इनसे विपक्षी दलों के बीच गठबंधन भी तय होंगे। इंटरवल आ चुका है और चुनावी नतीजों से पता चलेगा की हवा किस ओर बह रही है।