By प्रज्ञा पांडेय | Nov 18, 2024
आज गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी व्रत है, इस व्रत से भक्त के सभी कष्टों का अंत होता है, तो आइए हम आपको गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में
गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी का ग्रंथों में खास महत्व है। संकष्टी का अर्थ है- समस्याओं से मुक्ति। पंडितों के अनुसार इस उपवास को रखने से भगवान गणेश जीवन के सभी दुखों को दूर करते हैं। इसके साथ ही उनका आशीर्वाद सदैव के लिए प्राप्त होता है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस शुभ दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से उपासना की जाती है। जीवन के संकटों को दूर करने के लिए गणपति बप्पा के निमित्त व्रत भी किया जाता है। इस साल गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी 18 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है। यह व्रत सुबह से लेकर शाम को चंद्रोदय होने तक किया जाता है। संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद किया जाता है। प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा का विधान है।
गणाधिपति संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का आरंभ- 18 नवंबर 2024 को शाम 6 बजकर 55 मिनट से
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का समापन- 19 नवंबर को शाम 5 बजकर 28 मिनट पर
संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय का समय- शाम 7 बजकर 39 मिनट पर
गणाधिप संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत के पारण का नियम
पंडितों के अनुसार जो साधक गणाधिप संकष्टी व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इस व्रत का पारण समय और विधिपूर्वक करना चाहिए। सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र स्नान करें। फिर अपने मंदिर की साफ-सफाई करें। भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप भक्तिपूर्वक करें। उन्हें फल, फूल, मोदक, अन्य घर पर मिष्ठान आदि चीजें अर्पित करें। आरती से पूजा को समाप्त करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए माफी मांगे। अपनी क्षमता के अनुसार, दान करें। फिर चढ़ाए गए प्रसाद जैसे- मोदक, केला, खीर आदि प्रसाद को ग्रहण करें। इसके बाद सात्विक भोजन करें, जिसमें लहसून, प्याज न डला हो। बप्पा का आभार प्रकट करें। साथ ही इस दिन पूरी तरह से तामसिक चीजों से दूर रहें। इससे आपको व्रत का पूरा फल प्राप्त होगा।
गणाधिप संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व
गणाधिप संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का अर्थ होता है- संकटों को हरने वाली। भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य को देने वाले हैं। इनकी उपासना शीघ्र फलदायी मानी गई है। कहते हैं कि जो व्यक्ति संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का व्रत करता है, उसके जीवन में चल रही सभी समस्याओं का समाधान निकलता है और उसके सुख- सौभाग्य में वृद्धि होती है।
गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी व्रत का ऐसे करें पारण
शास्त्रों के अनुसार गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी के व्रत का पारण करने के अगले दिन भी केवल सात्विक भोजन या फलाहार ही ग्रहण करें और तामसिक भोजन से परहेज करें। संकष्टी चतुर्थी में व्रत खोलने के लिए चंद्रमा दर्शन और पूजन को जरूरी माना गया है। इस व्रत को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पूर्ण माना जाता है। चंद्रोदय के बाद अपनी सुविधा के अनुसार अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें और अपनी मनोकामना के लिए पूजा अर्चना करें। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश चालीसा का पाठ करना शुभ रहेगा।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान राम के पिता दशरथ एक प्रतापी राजा थे, उन्हें शिकार करना बहुत ही अच्छा लगता था। एक बार अनजाने में उनसे एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का वध हो गया। उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा दशरथ को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी तरह तुम्हारी भी पुत्र वियोग में मृत्यु होगी। इससे राजा बहुत परेशान हो गए। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया, फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में उनके यहां अवतार लिया। वहीं भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुईं।
पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण वन को गए जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षसों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। फिर सीता की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग किया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव से मित्रता की। इसके बाद सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। उन्हें ढूंढते-ढूंढते गिद्धराज संपाती को देखा, वानरों को देखकर संपाती ने उनकी पहचान पूछी कहा कि तुम कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? किसने तुम्हें भेजा है?
संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडक वन में आए हैं. जहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपरहण हो गया है. हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां हैं?
संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो। सीता जी का जिसने हरण किया है वह मुझे मालूम है। सीता जी को बचाने के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है। यहां से थोड़ी ही दूर पर ही समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहीं अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हैं। सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं। सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए, क्योंकि सिर्फ हनुमान जी ही अपने पराक्रम से इस विशाल समुद्र को लांघ सकते हैं।
संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं कैसे पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उसे पार करने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं? संपाति ने हनुमान जी को उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करो। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लोगे। संपाती के कहने पर ही हनुमान भगवान ने संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को किया। इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में ही समुद्र को लांघ गए। अत: इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।
गणाधिपति संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत पर ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार भगवान गणेश जी का जलाभिषेक करें उसके बाद गणेश भगवान को पुष्प, फल चढ़ाएं और पीला चंदन लगाएं। तिल के लड्डू या मोदक का भोग लगाएं और गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ करें। ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें और पूरी श्रद्धा के साथ गणेश जी की आरती करें। चंद्रोदय पर चंद्रमा के दर्शन करें और अर्घ्य दें, इसके बाद व्रत का पारण करें।
जानें गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी कुछ खास बातें
इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और इस दिन गणेश जी को मोदक, लड्डू, या कोई और मिठाई का भोग लगाया जाता है। इस दिन शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है। पंडितों के अनुसार चतुर्थी तिथि का व्रत करने से सभी विघ्न से मुक्ति मिलती है। इस दिन सच्चे मन से ऋणहर्ता श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करने से कर्ज से छुटकारा मिलता है और धन संबंधी समस्या दूर होती है। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। पूजा करते समय अपना मुंह उत्तर की ओर रखना चाहिए।
- प्रज्ञा पाण्डेय