जम्मू-कश्मीर में सत्तारुढ़ नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने आतंकवादी घटनाओं पर एक आश्चर्यजनक बयान दिया है। अब्दुल्ला ने बडगाम, बांदीपुरा में और श्रीनगर में आतंकी घटनाओं को लेकर कहा है कि इसमें उन्हें साजिश की बू आती है। उन्होंने कहा कि क्या कोई एजेंसिया तो नहीं है इन हमलों के पीछे जो उमर अब्दुल्ला सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। अनुभवी राजनेजा फारूक के इस बयान से फरेबी मासूमियत झलकती है। एक ऐसा शख्स जिसने पूरा जीवन राजनीतिक के दावपेच में बिताया और वोट बैंक के भय से खुल कर कभी भी आतंकियों और पाकिस्तान की निंदा नहीं, वह सवाल उठा रहा है कि आतंकी घटनाओं की जांच हो कि इसमें कोई एजेंसियां तो शामिल नहीं हैं।
87 वर्षीय फारूक अब्दुल्ला करीब 50 से अधिक वर्षों से राजनीति में हैं। वे केंद्र में मंत्री और जम्मू-कश्मीर में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इतने अनुभवी राजनीतिज्ञ से ऐसे बचकाने बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्या अब्दुल्ला इतने भोले हैं कि उन्हें पता नहीं है कि ये हमले कौन और क्यों करवा रहा है। इससे पहले इन्हीं अब्दुल्ला ने हमले करवाने के लिए पाकिस्तान पर आरोप लगाया था और यहां तक कहा था कि जम्मू-कश्मीर कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनेगा। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि सीनियर अब्दुल्ला को अब इन हमलों में पाकिस्तान के अलावा किसी ओर पर शक होने लगा है।
दरअसल फारूक अब्दुल्ला ने जब सत्ता संभाली थी तभी पिता-पुत्र को इस बात बखूबी अंदाजा था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं को रोकना आसान काम नहीं हैं। सत्ता में आने से पहले दोनों ऐसी वारदातों का ठीकरा केंद्र पर फोडऩे में कसर बाकी नहीं रखी। हालांकि केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इन्हें रोकने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। इस प्रयास में आम नागरिकों के अलावा सैकड़ों सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं। तब अब्दुल्ला पिता-पुत्र ने यह सवाल नहीं उठाया है। इसके विपरीत इन आतंकी घटनाओं को नेशनल कांफ्रेंस की सरकार को अस्थिर करने के चश्मे से देखा जा रहा है। गौरतलब है कि इन्हीं पिता-पुत्र ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद बड़ा हो-हल्ला मचाया था। यहां तक कि पिछले महीने हुए जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के चुनावी घोषणा पत्र में इसे वापस लाने का वादा किया गया था।
पाकिस्तान को फारूक अब्दुल्ला ने ही भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका दिया है। पाकिस्तान भी धारा 370 की बहाली की मांग करता आ रहा है। अब्दुल्ला और पाकिस्तान के सुर एक ही हैं। अब्दुल्ला ने यह मांग दोहरा कर एक तरह से पाकिस्तान की मांग का ही समर्थन किया है। जबकि यह सर्वविदित है कि इस धारा के हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं बंद हो गई हैं। विकास के कामों में जबरदस्त तेजी आई है। इस पर अब्दुल्ला पिता-पुत्र एक बार भी नहीं बोले। कारण साफ है, उस वक्त जम्मू-कश्मीर में केंद्र का शासन था। अब जब उनकी पार्टी सत्ता में है तो उन्हें आतंकी घटनाओं के पीछे साजिश नजर आ रही है।
अब्दुल्ला ने कहा कि आतंकियों को मारने के बजाए जीवित पकडऩा चाहिए, ताकि पता लगाया जा सके कि वे किसके लिए काम करते हैं। फारूक अब्दुल्ला से ऐसे बचकाने बयान की उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती। फारूक को यह भी बताना चाहिए कि घातक हथियारों से लैस आतंकियों को कौन जीवित पकड़ेगा। जिस तरह का बयान फारूक अब्दुल्ला की तरफ से आया है दरअसल वह कहीं न कहीं सुरक्षा बलों और एजेंसियों के मनोबल को प्रभावित करेगा। फारूक ने शक की सुई इन्हीं पर उठाई है। अब जम्मू-कश्मीर के लोग इन आतंकी घटनाओं के लिए फारूक अब्दुल्ला सरकार पर वही सवाल उठा रहें हैं, जो सवाल पूर्व में ये केंद्र सरकार से करते रहे हैं। ऐसे में इनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। सर्वविदित है कि पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई ये हमले करवा रही है। यह बात फारूक अब्दुल्ला और उनके मुख्यमंत्री पुत्र भी अ'छी तरह से जानते हैं। आईएसआई का आतंकी को पालने-पोसने का लंबा इतिहास रहा है। जम्मू-कश्मीर पर सीमा पार पाकिस्तान में आतंकी कैम्प मौजूद हैं। भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक इसकी गवाह है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आतंकियों को भर्ती करके न सिर्फ ट्रेनिंग देती हैं, बल्कि हथियार और रूपए भी मुहैया कराती हैं।
फारूक अब्दुल्ला भारत की विदेश नीति के मामले में हमेशा से हस्तक्षेप करते रहे हैं। अब्दुल्ला ने कई बार कहा है कि आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर भारत को पाकिस्तान से वार्ता करनी चाहिए। ऐसे बयानों ने पाकिस्तान को हौसले ही बढ़ाए हैं, यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान कई बार भारत से हुई बातचीत के बावजूद सीमा पार से आतंकी भेजने की हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। मौजूदा मोदी सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत बंद करके पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है। इसकी पहल भी पाकिस्तान ने ही की थी।
इसका परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान लगभग भुखमरी के कगार पर आ पहुंचा है। पाकिस्तान दबे-छिपे तरीके से कई बार भारत से संबंध बहाल करने का प्रयास कर चुका है, किन्तु भारत की तरफ से उसे हर एक ही जवाब मिला है कि आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते।
फारूक अब्दुल्ला के इस शगुफे के दूसरे निहितार्थ भी हो सकते हैं। अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कई बार कर चुके हैं। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर उमर अब्दुल्ला सरकार को पुलिस प्रशासन की कमान मिल जाएगी। इसके अलावा भी दूसरे अधिकार मिल जाएंगे। सवाल यही है कि जम्मू-कश्मीर में पुलिस और सेना मिलकर भी आतंकवादी पूरी तरह काबू नहीं कर पा रहे हैं, तब फारूक सरकार कानून-व्यवस्था कैसे संभाल पाएगी। इसके विपरीत संभावना इस बात की ज्यादा है कि पुलिस का अधिकार मिलने के बाद सिफारिश और सरकार के हस्तक्षेप करने से भेदभाव की घटनाएं होंगी। यहां तक की आतंकियों के समर्थकों पर कार्रवाई नहीं हो सकेगी। ऐसे में जरूरी है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने से पहले इस बात की अच्छी तरह ताकीद कर ले कि ऐसा करना कहीं आतंकियों के लिए फायदे का सौदा नहीं साबित हो।
- योगेन्द्र योगी